Saturday 19 June 2021

केवल पद्मश्री से ही टरका दिए गये उड़न सिख




साठ के दशक में उड़न सिख के नाम से मशहूर हुए मिल्खा सिंह नहीं रहे |  91 वर्षीय मिल्खा आज की युवा पीढ़ी के लिए अनजान बने रहते यदि 2013 में उन पर  भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म न बनती जिसमें  फरहान अख्तर ने उनके चरित्र को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से निभाया था | 1960 के रोम ओलम्पिक में चौथे स्थान पर रहे मिल्खा चन्द सेकेण्ड से चूक गये वरना ओलम्पिक  पदक जीतने वाले पहले भारतीय धावक बन जाते | उसके बाद ही पूरे देश में वे दौड़ के पर्याय बन गए  | लेकिन उनको उड़न सिख की उपाधि किसी भारतीय ने नहीं बल्कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा दी गयी थी | ओलम्पिक पदक जीतने का गौरव वे भले ही हासिल न कर सके हों लेकिन एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों में मिल्खा ने अनेक स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया | ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्वाधीनता के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी ही वह खेल था जिसमें भारत का दबदबा था लेकिन 1956 , 60 और 64 के ओलम्पिक खेलों के बाद एथलीट के क्षेत्र  में मिल्खा ने ही भारत को पहिचान दिलवाई | लेकिन उन्हें भारत सरकार द्वारा केवल पद्मश्री तक ही सीमित रखा  गया  | प्रश्न ये है कि क्या मिल्खा सिंह इससे और बड़े सम्मान के पात्र नहीं थे ? ये दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जावेगा कि साठ के दशक में विश्व स्तर के धावकों के समकक्ष माने जाने वाले मिल्खा को 2001 में अर्जुन पुरस्कार देने की घोषणा हुई जिसे उन्होंने ये कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वह बहुत देर से दिया गया | उनकी पीड़ा अनुचित नहीं थी | 1960 के रोम ओलम्पिक में 400 मीटर दौड़ में सेकेण्ड के दसवें हिस्से के अंतर से पदक चूक जाने वाले  खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार देने की सुध यदि हमारे देश के हुक्मरानों को चार दशक बाद आई तो वह सम्मान एक तरह की भीख जैसा ही था  जिसे ठुकराकर मिल्खा ने अपमे स्वाभिमानी होने का परिचय दिया | ऐसे और भी  उदाहरण  हैं जिनमें पद्म अलंकरण  और खेल पुरस्कारों के लिए  चयन करते समय प्रतिभा और वरिष्ठता को नजरअंदाज किया गया | राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार को लेकर इसीलिये हर वर्ष विवाद की स्थिति बनती है | मिल्खा को अंतर्राष्ट्रीय दौड़ प्रातियोगिताओं में 77 पदक मिले थे जो उनकी श्रेष्ठता का प्रमाण हैं | लेकिन उसके लिए उन्हें केवल पद्म श्री देकर टरका दिया गया जबकि सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट से सन्यास लेने के साथ ही भारत रत्न और राज्यसभा की सदस्यता से उपकृत करने की  दरियादिली दिखाई गयी | 2013 में तत्कालीन खेलमंत्री ने प्रधानमंत्री मनमोहन  सिंह  को भारत रत्न हेतु  हॉकी के जादूगर स्व. ध्यानचंद के नाम की सिफारिश भेजी लेकिन उसे रद्दी की टोकरी के हवाले करते हुए तेंदुलकर को देश का सर्वोच्च नागरिक  सम्मान दे दिया गया | यद्यपि सचिन के योगदान को नकारना तो गलत होगा लेकिन ध्यानचंद भारत रत्न के सबसे मजबूत दावेदार थे और हैं | इसी तरह मिल्खा सिंह एथलीट्स के क्षेत्र में आजाद भारत की युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत बने। लेकिन चालीस साल बाद उनको अर्जुन पुरस्कार के लिए चुना जाना  खेल और खिलाड़ियों के प्रति व्यवस्था की  घटिया सोच के  सबसे बड़े प्रमाणों में से है | इसका रंज उन्हें मरते दम तक रहा ,  जिसे उन्होंने ये कहते हुए व्यक्त किया था कि लन्दन  में भाग मिल्खा भाग फिल्म के प्रदर्शन के बाद उन्हें  संसद के उच्च सदन हॉउस ऑफ लॉर्ड्स में बुलाया गया था , लेकिन क्या हिन्दुस्तान की सरकार नहीं जानती कि मिल्खा कौन है ? उनके उस सवाल का जवाब देने की फुर्सत किसी के पास नहीं है क्योंकि राजनीति के खिलाड़ी असली खिलाड़ियों के हक पर डाका डालने में जुटे हुए हैं | विभिन्न खेल संगठनों पर नेताओं का कब्ज़ा इसका प्रमाण है |

उड़न सिख को विनम्र श्रद्धांजलि |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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