Tuesday 22 June 2021

पवार कोई काम किसी और के फायदे के लिए नहीं करते




चुनाव रणनीतिकार के रूप में सफलता अर्जित कर चुके प्रशान्त किशोर अब राजनीतिक गठबंधन बनाने के काम में भी जुट गए हैं। बीते एक पखवाड़े में उन्होंने राकांपा नेता शरद पवार से दो बार मुलाकात कर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तीसरी ताकत के तौर पर राष्ट्र मंच  नामक मोर्चे को खड़ा करने की कोशिश तेज कर दी है। हालांकि ये मंच पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा द्वारा 2018 में गठित किया गया था जो बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले तृणमूल में शामिल हो गए थे। जैसे कि संकेत हैं प्रशांत ये कवायद ममता बैनर्जी की पहल पर कर रहे हैं , जो आगामी लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विपक्ष का चेहरा बनने की महत्वाकांक्षा पाल बैठी हैं। हालिया सफलता ने उनके हौसले को और मजबूत किया है। सर्वविदित है कि बंगाल में मुकाबला मोदी विरुद्ध ममता बन गया था।  उनकी धमाकेदार जीत से गैर कांग्रेसी विपक्ष को भी उनमें सम्भावनाएँ नजर आने लगीं । कुछ समय पहले तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल  को श्री मोदी के मुकाबले खड़ा करने की चर्चा होती थी किन्तु दिल्ली की स्थिति महानगर की होने से वे उस दौड़ से बाहर हो गए। बाकी गैर कांग्रेस विपक्षी नेताओं में शरद पवार ही हैं लेकिन आयु और स्वास्थ्य उनके आड़े आ जाता है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो राहुल गांधी चूंकि अपनी पार्टी ही नहीं सम्भाल पा रहे इसलिये उनको लेकर शेष विपक्ष में ज्यादा उम्मीदें नहीं बचीं।  उप्र और बिहार के बाद बंगाल में भी कांग्रेस का जिस तरह सूपड़ा साफ हुआ उसके कारण उनके प्रति निराशा का भाव प्रबल होता जा  रहा है । कांग्रेस से कुछ युवा चेहरों के बाहर आने से भी श्री गांधी की छवि कमजोर नेता की बनती जा रही है। 2019 में अमेठी सीट हारने के बाद उनकी चमक उतर गई । यद्यपि केरल से लोकसभा सीट जीतने पर वे वहां सक्रिय जरूर  हुए किन्तु अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से दूर रह गई जबकि उन्होंने वहां पूरी ताकत लगाई थी। इसीलिए कांग्रेस को दरकिनार करते हुए बाकी विपक्ष अब सुश्री बैनर्जी पर दांव लगाने सोच सकता है। विधानसभा चुनाव के दौरान एक पैर में चोट लगने से व्हील चेयर पर प्रचार करते हुए उन्होंने श्री मोदी को चुनौती देते हुए कहा भी था कि एक पांव से बंगाल और दोनों पांवों से दिल्ली जीतूंगी। दरअसल बंगाल चुनाव के दौरान कांग्रेस और वामपंथियों को छोड़कर अन्य विपक्षी नेता ममता के समर्थन में कूद पड़े थे । माना जाता है इसकी शुरुवात श्री पवार द्वारा की गई थी जिसे अन्य दलों ने भी समर्थन दिया । कहा जा रहा है प्रशांत को ममता ने ही श्री पवार के पास भेजा है क्योंकि वे ही ऐसे नेता हैं जिनका संपर्क और सम्मान सभी विपक्षी दलों में है। यहां तक कि वे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह के भी करीबी हैं । कुछ समय पहले ही गुजरात में अचानक उनकी श्री शाह से हुई मुलाकात ने हड़कम्प मचा दिया था। लेकिन प्रशान्त से हुई भेंट के बाद श्री पवार ने भाजपा विरोधी विपक्षी नेताओं की जो बैठक बुलाई उससे ये साफ हो रहा है कि वे कांग्रेस को एक बार फिर झटका देने के मूड में हैं । ये भी चर्चा है कि ममता के मन में राष्ट्रीय राजनीति में कूदने की चाहत यशवंत सिन्हा ने ही जगाई जो श्री मोदी से जबरदस्त खुन्नस पाल बैठे हैं। यद्यपि उनके पुत्र जयंत अब भी हजारीबाग से भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं। बीते काफी समय से श्री सिन्हा मोदी विरोधी मुहिम चला रहे थे लेकिन कोई तवज्जो नहीं मिलने से अंततः ममता को बैसाखी बनाकर आगे बढ़ने के लिए तैयारी करने लगे। लेकिन इस मुहिम में श्री पवार ने  आज जो आभासी बैठक बुलाई है उसमें फ़ारुख अब्दुल्ला को छोड़ कोई चर्चित चेहरा नहीं है। कहा तो ये जा रहा है कि राष्ट्र मंच गैर राजनीतिक है लेकिन श्री पवार के हर क़दम में  केवल और केवल राजनीति रहती है। जहां तक बात ममता को आगे करने की है तो वे कथित धर्म निरपेक्ष ताकतों का नया चेहरा बनकर उभरी हैं। बंगाल चुनाव में उन्होंने मुस्लिम मतों का जिस सफलता के साथ ध्रुवीकरण किया उसके बाद वे मुलायम सिंह  और लालू प्रसाद की तरह से ही अल्पसंख्यक समुदाय की चहेती कही जाने लगी हैं। उनकी आक्रामकता और महिला होना भी काफी मायने रखता है । लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस के बगैर भी कोई विपक्षी मोर्चा आज के हालात में  श्री मोदी का विकल्प बन सकता है ? इस बारे में ये भी सोचने वाली बात है कि क्या सोनिया गांधी इतनी आसानी से अपने बेटे को प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने देंगी ?  ऐसे में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं पर सवालिया निशान लगते रहेंगे। महाराष्ट्र में कांग्रेस द्वारा अगले चुनाव में अकेले लड़ने की घोषणा से उद्धव सरकार के बारे में अटकलें लगने लगी हैं। हो सकता है श्री पवार उसी का जवाब देने ये सब कर रहे हों। असलियत जो भी हो लेकिन कांग्रेस को छोड़कर बनने वाले विपक्षी गठबंधन से तो भाजपा को और लाभ होगा क्योंकि ममता की स्वीकार्यता राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बन सकेगी और उनकी मुस्लिम परस्त छवि हिंदुओं को एकमुश्त भाजपा के साथ जोड़ने का कारण बन सकती है। बंगाल में वे भले ही तीसरी बार सत्ता हासिल करने में कामयाब हो गईं किन्तु वहां भाजपा ने जो जड़ें जमाईं वे बेहद महत्वपूर्ण हैं । श्री पवार राष्ट्र मंच के संयोजक बनकर ममता को आगे कर भले दें लेकिन वह मंच मोदी विरोधी मतों के विभाजन का कारण बनेगा। और फिर श्री केजरीवाल के अलावा अखिलेश यादव  , मायावती , तेजस्वी , कैसी रेड्डी और वामपंथी दल सुश्री बैनर्जी के पीछे चलने राजी होंगे , इसमें संदेह है। बड़ी बात नहीं श्री पवार दोहरा खेल खेल रहे हों , जिसमें वे माहिर हैं । ये भी चर्चा है कि प्रधानमंत्री बनने की इच्छा अधूरी रह जाने के बाद अब वे राष्ट्रपति बनकर राजनीति से विश्राम लेना चाह रहे हैं । और उनकी इस इच्छा को मोदी -  शाह की जोड़ी ने और हवा दे दी है । वैसे भी श्री पवार अनिश्चितता और धोखेबाजी के पर्याय हैं। ऐसे में वे कब और किसकी टाँग खींच दें कहना कठिन है। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ने और तोड़ने के बाद वे फिर।उन्हीं के साथ सियासी रिश्ता जोड़ बैठे। महाराष्ट्र में कांग्रेस को शिवसेना का दामन थामने राजी करना उनका ही कमाल था। उनके अगले निर्णय पर सभी की निगाहें लगी हैं । लेकिन याद रखने वाली बात ये है कि पवार साहब कोई भी काम किसी और के फायदे के लिए नहीं करते । प्रशांत किशोर कितने भी सफल रणनीतिकार हों लेकिन इस मराठा नेता के मन की थाह पाना उनके बस की बात नहीं है । 

- रवीन्द्र वाजपेयी



No comments:

Post a Comment