Wednesday 9 June 2021

शिवराज जैसे अनुभवी नेता को पांचाल की क्या ज़रूरत पड़ गई



मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि एक लोकप्रिय जननेता की है | वे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो सीधे जनता से सम्वाद करने में पारंगत हैं | ऐसा बहुत कम होता है जब वे लगातार कुछ दिन भोपाल में रहें |  पूरे प्रदेश में उनका दौरा चलता रहता है | ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में वे निरंतर जाते  हैं | दमोह का हालिया विधानसभा उपचुनाव छोड़ दें तो उसके पहले तक वे महिंदर सिंह धोनी की तरह मैच जिताऊ कप्तान माने जाते थे | जमीन से जुड़े होने और विनम्रता जैसे गुण के कारण वे आसानी से लोगों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो जाते हैं | भले ही 2018 के चुनाव में वे सत्ता में वापिस आने से चूक गये लेकिन उसके बाद भी वे भाजपा का निर्विवाद चेहरा बने रहे | यही कारण था कि गत वर्ष जब कांग्रेस में बगावत हुई और भाजपा के हाथ दोबारा सत्ता आई तो तमाम संभावनाओं को नकारते हुए शिवराज ही मुख्यमंत्री बने और 28 में से 20 उपचुनाव जिताकर  अपनी नेतृत्व क्षमता एक बार फिर  प्रमाणित कर दी |   लेकिन बड़े से बड़े सेनापति से रणनीतिक भूल होती है और वही श्री चौहान से दमोह के कांग्रेस विधायक राकेश लोधी को भाजपा में शामिल कर हुई | उनको उपचुनाव में उम्मीदवार बनाने का भी पार्टी में काफी विरोध था किन्त्तु मुख्यमंत्री उसे समझ नहीं सके | हालाँकि दल बदलते ही  उन्होंने श्री लोधी को एक निगम का अध्यक्ष बनाकर सत्ता सुख प्रदान कर दिया था | लेकिन वे उनकी लोकप्रियता का आकलन करने में गलती कर बैठे | यूँ भी 2018 में वे बहुत कम अंतर से चुने गये थे | उपचुनाव में श्री चौहान ने जी तोड़ मेहनत की किन्तु सफलता नहीं मिली | कांग्रेस ने वहां लम्बे अन्तर से जीत हासिल कर भाजपा पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया | और उसी के परिणामस्वरूप श्री चौहान के नेतृत्व पर सवाल उठए जाने लगे | उनको केंद्र में ले जाये जाने की खबरों के साथ ही उनके संभावित उत्तराधिकारियों की बैठकों ने भी राजनीतिक हलचलें तेज कर दीं | हालाँकि दो - तीन दिन के भीतर ही वे सब पानी के बुलबुलों की तरह फूट गईं किन्तु इस सबसे ये साफ़ हो गया कि मुख्यमंत्री अब चुनौतीविहीन नहीं रहे | गत दिवस मंत्रीपरिषद की बैठक में किसी मुद्दे  पर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जिस तरह अपना विरोध दर्ज कराया और दूसरे वरिष्ठ मंत्री गोपाल  भार्गव ने उनका साथ दिया उससे काफी कुछ स्पष्ट हो गया | इसी बीच  श्री चौहान ने हालात को भांपते हुए अपनी छवि पहले जैसी बनाने के लिए तुषार पांचाल नामक एक   पेशेवर को अपने कार्यालय में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी  ( ओएसडी } नियुक्त कर लिया | वैसे वे बीते अनेक वर्षों से मुख्यमंत्री के  निजी तौर पर सलाहकार बने हुए थे | 2018 के चुनाव में भी रणनीति और प्रबन्धन हेतु उनकी सेवाएँ ली गईं किन्तु तब वे सरकारी अधिकारी   नहीं थे | लेकिन दो - तीन दिन पूर्व ज्योंही उनको सरकारी नियुक्ति दी गई त्योंही कांग्रेस ने पहले तो मुख्यमंत्री पर ये आरोप लगाया कि वे जनसंपर्क विभाग को शक्तिहीन कर  रहे हैं और उसके बाद श्री पांचाल द्वारा अतीत में प्रधानमन्त्री और भाजपा की अनेक नीतियों के विरोध में सोशल मीडिया पर की गईं आलोचनात्मक टिप्पणियों के संदर्भ में ये प्रचारित किया गया कि मुख्यमंत्री प्रधानमन्त्री को चुनौती दे रहे हैं | भोपाल से दिल्ली तक भाजपा के भीतर भी श्री चौहान के इस कदम पर आश्चर्य के साथ विरोध का भाव देखने मिला | यहाँ तक कि पत्रकार जगत भी तुषार को लेकर नाराज दिखा क्योंकि जो दायित्व उनको दिये गए उनका निर्वहन स्वाभाविक तौर पर सरकार का जनसंपर्क विभाग करता है | मुख्यमंत्री के साथ ही सरकार की छवि चमकाने का काम इसी विभाग का होता है | श्री पांचाल के जिम्मे मीडिया मैनेजमेंट का काम  दिए जाने से भी  गलत संदेश गया | चौतरफा विरोध के बीच उन्होंने खुद होकर पद ग्रहण करने में अपनी असमर्थता जताकर पूरे मामले का पटाक्षेप तो कर दिया किन्तु इस विवाद ने श्री चौहान को पिछले पाँव पर खड़े होने बाध्य कर दिया | बीते 15 वर्ष में उनके सामने अनेक बार विषम हालात बने | डम्पर और व्यापमं कांड ने उनकी सत्ता के लिए खतरा पैदा किया था लेकिन वे उन सबसे उबर गये किन्तु  तुषार मामले में उनका दांव जिस तरह उल्टा पड़ा वह उनके  लिए खतरे की घंटी है |  छवि चमकाने के फेर में वे उसे खराब कर बैठे | भाजपा एक संगठन आधारित पार्टी कही जाती है | उसके नेता अक्सर  कार्यकर्ताओं को देव - दुर्लभ बताकर उनकी मिजाजपुर्सी किया करते हैं | ऐसे में संगठनात्मक ढाँचे का सामुचित उपयोग करने की बजाय किसी पेशेवर को मुख्यमंत्री कार्यालय में बिठाने जैसा निर्णय समझ से परे था | खास तौर पर श्री चौहान जैसे जननेता के लिए ऐसा करना वाकई चौंकाने वाला रहा | चुनाव के दौरान ऐसा करना तो मौजूदा हालातों में स्वाभाविक हो चला है लेकिन मुख्यमंत्री की छवि के साथ समाचार माध्यमों के साथ संपर्क और संवाद के लिए ऐसी नियुक्ति किये जाने का अर्थ यही लगाया गया कि प्रदेश का जनसंपर्क विभाग पूरी रह से नाकारा हो चला है और  मुख्यमंत्री को ये आशंका सताने लगी थी कि पार्टी का संगठन उनका सहयोग नहीं कर रहा | ऐसे में भले ही श्री पांचाल ने पद ग्रहण करने से मना कर दिया लेकिन न तो मुख्यमंत्री और न ही पार्टी संगठन ने ये साफ़ किया कि ऐसी नियुक्ति दोबारा नहीं की जावेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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