Monday 24 May 2021

हीरे तो नकली भी बन सकते हैं लेकिन .....?



 इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा की मौत के कुछ दिन बाद ही मप्र के छतरपुर जिले में स्थित बक्स्वाहा के जंगल में लगे 2.15 लाख वृक्ष काटे जाने को लेकर देश भर के लोगों में गुस्सा है | पड़ोसी जिले पन्ना की धरती में हीरों का जो भण्डार है उससे कई गुना ज्यादा 3.42 करोड़ कैरेट के  हीरे बक्स्वाहा की धरती में होने की जानकारी बीते अनेक वर्षों तक करवाये गए भूगर्भीय सर्वेक्षण में मिलने के बाद उक्त स्थल में उत्खनन का ठेका सरकार ने आगामी पचास सालों  के लिए आदित्य बिरला उद्योग समूह को दे दिया | इस काम के  लिए वह उस खूबसूरत वन को उजाड़ने का अधिकारी हो गया | बक्स्वाहा के जो चित्र इन दिनों प्रसारित हो रहे हैं उन्हें देखकर उस दृश्य  की कल्पना भी दिल दहला देती है जिसमें हरे भरे इस जंगल की जगह मिट्टी के ढेर और धरती का सीना चीर रही विशालकाय मशीनों का शोर होगा | 2.15 लाख पेड़ लगाने और उनके बड़े होने में दशकों लग जाते हैं लेकिन  जो जंगल प्राकृतिक होते हैं उनकी संरचना  कुछ अलग तरह की होने से आँखों और मन दोनों को सुकून देती है | वृक्षों की विविधता और उनसे मानव जाति को  मिलने वाले आनंद के अलावा पर्यावरण संरक्षण में भी ऐसे जंगल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | बक्सवाहा के गर्भ से निकलने वाले हीरे अरबों - खरबों रु. के होंगे | आदित्य बिरला समूह के साथ ही सरकार को भी उससे कमाई होगी | आसपास के लोगों को मजदूरी भी मिल जायेगी | बड़ी कम्पनी के डेरा ज़माने से हो सकता है नजदीकी बाजार को भी उससे कमाई होने लगे | लेकिन इस सबसे अलग सवाल ये है कि जिस ऑक्सीजन के अभाव में हाल ही में हजारों लोग जान गँवा बैठे उसके प्रकृति प्रदत्त भंडार को नष्ट कर ऐसे चामकीले पत्थर खोजने का काम होगा जो केवल और केवल धनकुबेरों की शान बढ़ाते हैं लेकिन उससे  लाखों लोगों को मिलने वाली शुद्ध ऑक्सीजन सदा के लिए छिन जायेगी | हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में हजारों लोग केवल इसलिए जान से हाथ धो बैठे क्योंकि उन्हें अस्पताल  में ऑक्सीजन नहीं मिल सकी | यद्यपि अस्पतालों और औद्योगिक इकाइयों में  प्रयुक्त होने वाली ऑक्सीजन प्राकृतिक न होकर कृत्रिम तौर पर बनाई जाती है लेकिन मानव जीवन के लिए वृक्षों से प्राप्त होने वाली शुद्ध ऑक्सीजन प्राणवायु कहलाती है और पूरी तरह निःशुल्क है | इसका महत्व दिल्ली जैसे शहर में बसने वालों से पूछें तो सही स्थिति मालूम हो जायेगी जिनके फेफड़े शुद्ध ऑक्सीजन के लिए तरसते हैं | ये सब देखते हुए बक्स्वाहा के जंगल को नेस्तनाबूत करने की कोई भी परियोजना चाहे उससे कितना भी आर्थिक लाभ सरकार को हो , ततकाल प्रभाव से रद्द होनी चाहिए | तर्क दिया जा सकता है कि 3.42 करोड़ कैरेट हीरों के भण्डार से देश को बड़ा लाभ होगा क्योंकि भारत हीरों का बड़ा निर्यातक है । लेकिन उसके लिए 2.15 लाख विकसित वृक्षों की कटाई  क्षेत्रीय जनों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने के साथ ही किसी पाप से कम नहीं  है | ऐसे में सरकार को चाहिए वह जनभावनाओं के आहत होने के अलावा   उस इलाके के पर्यावरण को होने वाली क्षति को ध्यान  में रखते हुए उक्त परियोजना को तत्काल स्थगित करे | रही बात आर्थिक  नुकसान की तो वह उस क्षति से कम ही होगा जो 2.15 लाख  वृक्षों को काटने से होगी | ध्यान रखने वाली बात ये है कि धरती से निकला हीरा केवल एक बार ही आय का जारिया बनेगा लेकिन एक वृक्ष 24 घंटे जो ऑक्सीजन मानव जाति की प्राण रक्षा के लिए छोड़ते हैं उसका मूल्यांकन रुपयों में नहीं किया जा सकता | इस बारे में उल्लेखनीय है कि विकसित देशों में ऑक्सीजन पार्लर खुल गये हैं जहाँ पैसा देकर कुछ देर कृत्रिम ऑक्सीजन ली जाती है | हमारे देश में पूर्वजों द्वारा लगाए गये वृक्षों के अलावा जो वन क्षेत्र हैं उनसे  शुद्ध ऑक्सीजन का प्रवाह निरंतर बना रहा लेकिन कथित विकास रूपी वासना के वशीभूत  वृक्षों की जो अंधाधुंध कटाई हुई  उसने पर्यावरण असंतुलन पैदा कर दिया जिसका प्रमाण उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में लगातार आने वाली प्राकृतिक विपदाओं से मिलता रहता है | बक्स्वाहा जिस बुदेलखंड में है वहां जल की भारी कमी है | उसके पीछे भी वनों की अंधाधुन्ध कटाई ही है ।वरना एक ज़माने में समूचा इलाका घने जंगलों से भरा था | बेहतर हो बक्स्वाहा से हीरे निकालने की  योजना पर तुरंत रोक लगा दी जाए | यदि इस दिशा में हेकड़ी दिखाई गयी तो बड़े जनांदोलन की आशंका से इंकार नहीं  किया जा सकता | ये भी संभव है कि न्यायालय ही इस पर रोक लगा दे जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति सदैव चिंतित रहता है | सरकार में बैठे महानुभावों को भी कोरोना की  दूसरी लहर ने इतना तो तो सिखा ही दिया होगा कि प्रकृति और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का दुष्परिणाम क्या होता है ? गर्मियों में झुलसने वाले बुंदेलखंड से शीतल हवा के कुदरती स्रोत छीनना बड़ा  अपराध होगा जिसकी कितनी  सजा प्रकृति देगी इसका अंदाज लगाना मुश्किल है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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