कोरोना के टीके को लेकर विरोधाभासी खबरें मिल रही हैं | एक तरफ तो बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो टीका न लग पाने के कारण नाराज हैं | वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो टीका लगाने वाले दल को देखकर ही भाग खड़े होते हैं | उप्र में बाराबंकी जिले के एक गाँव के लोग टीकाकरण के लिए ग्राम में आये दल से बचने के लिए सरयू नदी में कूद गये | अनेक गाँवों के अलावा शहरों की बस्तियों में टीका लगाने गये दल के सदस्यों पर घातक हमला किये जाने के समाचार भी निरंतर आ रहे हैं | इन हमलों में अनेक स्वास्थ्यकर्मी तथा सरकारी अधिकारी घायल होने के बाद जान बचाकर भागे | टीकाकरण दल के वाहनों पर पथराव भी किया जा रहा है | ये निश्चित रूप से बहुत ही गैर जिम्मेदाराना आचरण है | कोरोना की दूसरी लहर के लिए जनता के एक बड़े वर्ग की लापरवाही भी काफी हद तक उत्तरदायी है | तमाम समझाइश के बावजूद मास्क जैसी छोटी सी सावधानी तक की उपेक्षा किये जाने के गंभीर परिणाम निकले और पहली लहर से अप्रभावित रहे ग्रामीण इलाके भी इस बार चपेट में आ गये जहां बड़ी संख्या में मौतें हुईं | ये संतोष का विषय है कि बीते कुछ दिनों से कोरोना की दूसरी लहर के कमजोर पड़ने के संकेत मिल रहे हैं | नए संक्रमितों की दैनिक संख्या दो लाख से भी नीचे आने के साथ ही स्वस्थ हो रहे मरीज काफी ज्यादा होने से अस्पतालों में बिस्तरों की मारामारी खत्म हो गयी है | ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की मांग में भी खासी कमी देखने मिल रही है | वैज्ञानिकों ने 15 मई से कोरोना की दूसरी लहर के कमजोर पड़ने का जो अनुमान लगाया था वह सही प्रतीत हो रहा है | ये भी अच्छा है कि दो लहरों का सामना करने के बाद हुए अनुभव के आधार पर संभावित तीसरी लहर का सामना करने के लिए चिकित्सा प्रबन्ध अभी से पुख्ता करने पर ध्यान दिया जा रहा है | लेकिन ये बात पूरे तौर पर साबित हो चुकी है कि टीकाकरण ही कोरोना से बचाव का कारगर तरीका है | भले ही दोनों टीके लगने के बाद भी अनेक लोगों को संक्रमित होना पड़ा लेकिन शोधपरक अध्ययनों से ये बात साबित हो चुकी है कि जिस व्यक्ति को एक डोज भी लग चुका है उसके शरीर में इस बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगती है | ऐसे में ये जरूरी है कि टीके को लेकर जिन लोगों में किसी भी प्रकार् का डर अथवा गलतफहमी है उनको समझाने के लिए अभियान चलाया जावे और इस कार्य को गाँव के पंच , स्थानीय निकायों के निर्वाचित सदस्य , विधायक और सांसद करें | चूँकि इन सबका जनता से सतत सम्पर्क रहता है इसलिए इनकी बात लोगों के गले उतर सकती है | इस बारे में आश्चर्य की बात ये है कि अशिक्षित अथवा अल्पशिक्षित ही नहीं अपितु शहरों में रहने वाले पढ़े - लिखे लोगों में से भी अनेक ऐसे हैं जो टीकाकरण से परहेज करने के साथ ही दूसरों को भी बरगलाते हैं | इसी के साथ ही ये खबर भी चिन्ताजनक है कि देश में टीकों की कमी के बावजूद कई स्थानों पर टीके खराब हो गये | इसकी वजह पंजीयन करवाने के बाद भी सम्बन्धित व्यक्ति का टीका केंद्र पर नहीं पहुंचना बताया जाता है | लेकिन कुछ जगहों पर तो मानवीय लापरवाही के कारण लाखों टीके बर्बाद हो गये जो निश्चित रूप से अक्षम्य है | कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम होने के बाद भी सरकार के साथ स्वयंसेवी सामाजिक संस्थाओं एवं राजनीतिक दलों का फर्ज है कि वे टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक बनाकर उसकी उपयोगिता की प्रति विश्वास जगाएं | तीसरी लहर आने तक यदि देश की आधी आबादी को भी टीका लगाया जा सका तो जैसा कहा जा रहा है कि हर्ड इम्युनटी के रूप में सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से भविष्य में आने वाली किसी भी लहर का प्रभाव ज्यादा नहीं होगा | इस बारे में रोचक तथ्य ये है कि सत्ता के उच्च पदों पर विराजमान नेताओं के अपने गाँव या निर्वाचन क्षेत्र में भी टीके लगवाने के प्रति लोगों में हिचक है | मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह ग्राम में एक टीका लगवाने के बाद दूसरे डोज के प्रति लोगों में उत्साह नहीं है | वीआईपी कहे जाने वाले और भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां टीकाकरण अभियान के प्रति लोगों में भय व्याप्त है |आने वाले कुछ महीने इस बारे में काफी महत्वपूर्ण रहेंगे | देश में टीके का उत्पादन बढाये जाने के साथ ही उसके आयात की व्यवस्था भी की जा रही है | ऐसे में टीकाकरण जैसे अभियान के प्रति जनता के मन में ये भरोसा बिठाना सबसे आवशयक है कि जब तक कोरोना को रोकने की प्रामाणिक दवा नहीं आ जाती तब तक टीका ही उससे बचाव का आसान और प्रमाणित उपाय है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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