Friday 28 May 2021

निजी अस्पतालों में इलाज की दरें तय करने नियामक संस्था बने



यदि कोई अनहोनी नहीं हुई तो जून के अंत तक कोरोना की दूसरी लहर का वेग समाप्त होने आ जाएगा | जहां तक बात  तीसरी लहर की है तो उसे रोकना हमारे हाथ में है | और वह आती भी है तो उसका प्रकोप और समयावधि बहुत कम होगी | इसका कारण ये है कि बीते दो महीनों में समूचे देश में जो चिकित्सकीय ढांचा खड़ा किया गया है उसे यदि बरकरार रखा जा सके तो  संक्रामक बीमारी  को प्रारंभिक पायदान पर ही रोकने में हम सक्षम होंगे | हालाँकि इस बारे में ज्यादा आशावाद भी घातक  होगा क्योंकि ब्रिटेन सहित अनेक देशों में कोरोना रूप बदलकर बार - बार लौट  रहा है | भारतीय संदर्भ में देखें तो कोरोना की पहली लहर में लोगों का इलाज आसानी से हो गया था क्योंकि संक्रमण की गंभीरता और गति अपेक्षाकृत कम रही परन्तु दूसरी लहर ने बहुत ही तेजी से जोर पकड़ा  | हालाँकि अधिकतर संक्रमित मरीज  घर में साधारण इलाज से ही स्वस्थ  हो गए लेकिन जिनको अस्पताल और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी उन्हें मुश्किल  हालातों से गुजरना पड़ा | अप्रैल का महीना इस बारे में बहुत ही चिंता और चुनौतियों से भरा रहा क्योंकि अस्पतालों में बिस्तरों की कमी के अलावा   ऑक्सीजन और वेंटीलेटरों की किल्लत होने से हजारों लोगों की जान चली गई | इसका एक कारण संक्रमण का अप्रत्याशित रूप से तेज हो जाना रहा | गत वर्ष उसका चरमोत्कर्ष आते - आते छह महीने लग गये थे | लेकिन दूसरी लहर की  उछाल इतनी जबरदस्त थी कि देखते - देखते वह रोजाना 4 लाख से भी ऊपर निकल गई |  जिसके कारण पूरे देश में भय का वातावरण बन गया | संक्रमण के अनुपात में ही मौतें भी बढ़ीं | कुछ समय के लिए तो लगा कि समूची व्यवस्था पंगु होकर रह गयी है | लेकिन उस घड़ी में भी लोगों ने हौसला नहीं खोया | बीते कुछ दिनों के आंकड़े  इस बात का संकेत  हैं कि दूसरी लहर अब ढलान पर है और  कुछ दिनों में ही उससे निजात मिलने लगेगी | लेकिन उसके बाद निश्चिन्त होकर बैठ जाना खतरे को दोबारा निमन्त्रण देने जैसा होगा | पहली लहर के बाद जैसी  बेफिक्री देखी गयी थी वह बहुत महंगी पड़ी | सरकार और जनता दोनों अति आत्मविश्वास का शिकार न हुए होते तो दूसरी लहर को आ धमकने का अवसर न मिलता | इसी तरह कोरोना के टीके को लेकर राजनेताओं सहित कतिपय लोगों ने जो भ्रम फैलाया वह भी गैर जिम्मेदाराना था | उसी कारण से उप्र और बिहार के अनेक गाँवों में लोग टीका लगाने तैयार नहीं हैं |  स्वास्थ्य विभाग की टीमों पर हमले तक किये गए | समाजावादी पार्टी के विदेश शिक्षित  अध्यक्ष अखिलेश यादव तो यहाँ तक बोल गए कि ये भाजपा वैक्सीन है जिसे वे नहीं लगवाएंगे | उम्मीद है दूसरी लहर में हुई परेशानियों और जनहानि के बाद नेताओं के साथ ही आम जन के आचरण में दायित्वबोध का समावेश हो सकेगा | ये बात ध्यान रखने वाली है कि कोरोना पार्टी या विचारधारा नहीं  देखता | दूसरी लहर ने अनेक नेताओं तथा विशिष्ट हस्तियों को छीन लिया | इसलिए  ये आवश्यक  है कि पूरा देश बिना मतभेद के कोरोना  सदृश किसी  भी आपदा से निबटने में धैर्य और एकजुटता का परिचय दे | बीते दो महीनों में निजी क्षेत्र की चिकित्सा व्यवस्था  में जो मुनाफाखोरी हुई वह किसी लूट से कम न थी | दवाइयों की कालाबजारी ने भी समाज के एक वर्ग की हैवानियत का पर्दाफाश कर दिया है | सरकार ने अपने स्तर पर उसे रोकने का प्रबंध किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका | इस कटु अनुभव के बाद भविष्य के लिए इन अस्पतालों में  इलाज की दरों का नियमन किया जाना निहायत आवशयक है | चिकित्सा चाहे सरकार करे या निजी क्षेत्र के अस्पताल या डिस्पेंसरी खोलकर बैठे चिकित्सक , लेकिन उसकी आड़ में जनता की जेब काटने जैसी नीचता पर विराम लगना ही  चाहिए | यदि इसके लिए कोई नियामक संस्था की जरूरत पड़े तो वह भी तत्काल गठित की जावे  |  दवा निर्माताओं को भी हालातों का लाभ उठाकर  लूटने की छूट नहीं दी जा सकती | सरकार ने निर्देश दिए थे कि हर अस्पताल में जेनेरिक दवाओं की दूकान होनी  चाहिये लेकिन उसको रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया | यही वजह रही कि दवा व्यवसायियों और निजी अस्पतालों ने बीते दो महीने में बेशुमार  कमाई की  | आगे ऐसा न हो इसके लिए सरकार को कड़ाई से पेश आना होगा | जनता का भी ये फर्ज है कि वह कोरोना अनुशासन का ईमानदारी से पालन करे क्योंकि लापरवाही उसकी ज़िन्दगी के लिए ही खतरा बन जाती है | कुल मिलाकर बीते एक साल ने जो सिखाया है   यदि सरकार और जनता उससे सबक लें   तो कोई कारण नहीं तीसरी लहर अथवा भेस बदलकर आने वाले संक्रमण का सामना हम न कर पाएं  | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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