देश की राजधानी दिल्ली में एक जुलाई को पारा 43.5 डिग्री जा पहुंचा | आम तौर पर जुलाई महीने में इतनी गर्मी नहीं पड़ती | इसी तरह की खबरें देश के अन्य हिस्सों से भी आ रही हैं | यद्यपि केरल में मानसून का आगमन निर्धारित तिथि से दो दिन बाद होने के उपरांत अनेक राज्यों में मानसूनी बौछारें होने से मौसम खुशनुमा हो गया था | मौसम विभाग के मुताबिक तो जून में औसत से ज्यादा वर्षा हो गयी परन्तु उसके बाद उसमें विराम आ गया | जिन किसानों ने अच्छी बरसात होते ही धान की फसल बोनी शुरू कर दी वे अब चिंतित हैं क्योंकि तेज गर्मी से पौधे खराब हो जायेंगे | इसके अलावा गर्मी की वापिसी से जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है | अन्तरिक्ष विज्ञान मौसम का पूर्वानुमान लगाने के बारे में काफी सहायक साबित हुआ है किन्तु प्रकृति उसे समय - समय पर चकमा देने मे कामयाब हो जाती है जिसका प्रमाण इस वर्ष मानसून का अच्छी शुरुवात के बाद शिथिल पड़ना है | लेकिन ये स्थिति केवल भारत की हो ऐसा नहीं है | सही बात तो ये है कि प्रकृति भी अपनी चाल - ढाल बदल रही है | इसका ताजा उदाहरण कैनेडा है जहाँ की गर्मियां भी हमारे देश की सर्दियों से ज्यादा ठन्डी होती हैं लेकिन इन दिनों वहां कुछ हिस्सों में तापमान के 50 डिग्री पहुंच जाने से हाहाकार मचा है | जंगलों में आग तक लग गई | सैकड़ों की जान जा चुकी है | गर्मी नहीं पड़ने से वहां घरों में एयर कंडीशनर लगाने का चलन नहीं है | ऐसे में जब गर्मी ने बेहाल किया तो प्रशासन ने स्टेडियमों में एयर कंडीशनर लगवाकर लोगों को काम करने तथा सोने की सुविधा प्रदान की | सड़कों पर टैंकरों से पानी का छिड़काव भी किया जा रहा है | दूसरी तरफ न्यूजीलैंड में तापमान शून्य से भी 4 डिग्री नीचे चला गया है जिसकी वजह से वहां की जनता शीतलहर से कांप रही है | इन वृतांतों से आशय यही है कि पृथ्वी के विभिन्न भागों के मौसम में साल दर साल बदलाव आता जा रहा है | यदि यह मानव जीवन के साथ ही पृथ्वी के भविष्य के लिए लाभदायक होता तब उसका सभी स्वागत करते लेकिन जो और जैसा हो रहा है वह आने वाली पीढ़ी के लिए खतरों का ऐलान है | हिमालय सहित उत्तरी ध्रुव की बर्फ का भण्डार निरंतर घटता जा रहा है | ग्लेशियरों के सिकुड़ने से गंगा जैसी अनेक बड़ी नदियों का भविष्य अंधकारमय है जिसका परिणाम सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं | समुद्र का जलस्तर बढ़ने से दुनिया के अनेक नगर ही नहीं वरन मालदीव जैसे देश और बाली ( इंडोनेशिया ) नामक ऐतिहासिक जगह डूबने की कगार पर है | अमेरिका में जंगलों की आग और समुद्री तूफ़ान आम बात होती जा रह है | समय - समय पर पृथ्वी के नष्ट हो जाने की भविष्यवाणी भी होने लगी है | भले ही उनमें अतिशयोक्ति का पुट रहता हो लेकिन उनको पूरी तरह नजरअंदाज करना भी मूर्खता होगी क्योंकि प्रकृति के आचरण में कोई भी परिवर्तन अकारण नहीं होता | वह किसी न किसी क्रिया की प्रतिक्रिया ही होती है | बढ़ते तापमान से मौसम संबंधी बदलाव एक दिन में नहीं हुए | यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो अब खतरनाक रूप में सामने आ रही है | मानसून के नखरे भी अकारण नहीं हैं | अनावृष्टि के साथ अतिवृष्टि का प्रकोप भी प्रकृति के कोप का परिणाम है | दुःख इस बात का है कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा का काम नारों तक सिमटकर रह गया है | विकसित देशों में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर दुनिया भर से धन कमाने की जो ललक है उसने पर्यावरण का सत्यानाश कर दिया | उनकी नकल करते हुए बाकी देश भी विकास की आड़ में पर्यावरण पर अत्याचार करने से बाज नहीं आ रहे | दिल्ली और कैनेडा में एक जैसी गर्मी काफी कुछ कह रही है | यदि इन संकेतों को समझ लिया जावे तो अब भी आने वाले खतरों से बचा जा सकता है अन्यथा ये कहना गलत नहीं होगा कि हम अपने विनाश के लिए खुद जिम्मेदार हैं |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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