Tuesday 6 July 2021

साधनहीन निजी शिक्षण संस्थानों को भी मदद की जरूरत



कोरोना काल में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शिक्षा जगत भी है | सरकारी संस्थानों में तो फीस और वेतन का संकट नहीं आया लेकिन निजी विद्यालयों के सामने दोनों आकर खड़े हो गये | इस दौरान  जबरन फीस वसूली से अभिभावक और प्रशासन दोनों नाराज हुए | अभिभावकों की शिकायत गलत नहीं है क्योंकि कुछ चुनिन्दा संस्थानों को छोड़कर बाकी की ऑन लाइन पढ़ाई काम चलाऊ थी | जबकि फीस  वसूली में कोई कोताही नहीं की गई | इस बारे में अभिभावकों का कहना था कि विद्यालय बंद रहने से उसके खर्चे कम हुए इसलिए फीस घटानी चाहिए थी | दूसरी तरफ प्रबंधन का तर्क है  कि ऑन लाइन शिक्षा हेतु उनको अतिरिक्त इंतजाम करने पड़े और शिक्षकों को  भी विद्यालय बुलाना पड़ा | यद्यपि ये भी पता चला है कि निजी क्षेत्र के अधिकतर विद्यालयों ने शिक्षकों सहित शेष कर्मचारियों के वेतन घटा दिये और बहुतों को अलग भी कर दिया | मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विगत दिवस ये ऐलान किया कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका समाप्त होने तक विद्यालय नहीं खुलेंगे | साथ ही उन्होंने ये  आदेश भी  दे दिया कि न तो शिक्षण शुल्क बढ़ेगा और न ही किसी अन्य प्रकार की वसूली विद्यालय कर पाएंगे | हालाँकि मुख्यमंत्री ने ये स्वीकार किया कि निजी विद्यालयों के सामने  शिक्षकों का वेतन देने की समस्या है | निश्चित रूप से ये व्यवहारिक प्रश्न है | फीस का भुगतान करने में अभिभावकों को जहां परेशानी आ रही है वहीं प्रबंधन के सामने वेतन देने की समस्या है | ऐसे में सरकार को चाहिये वह निजी संस्थानों की आर्थिक स्थिति का सही आकलन करते हुए शिक्षकों के वेतन में अपनी तरफ से कुछ अंशदान दे अन्यथा  उनको फीस बढ़ाने अथवा अन्य शुल्क वसूलने से रोकने के फरमान हवा में उड़ा दिए जायेंगे | हालाँकि अधिकतर निजी शिक्षण संस्थान  दूध के धुले नहीं हैं | फ़ीस के साथ तरह - तरह के शुल्क वसूलने के मामले में वे कुख्यात हो चले हैं | सरकार समय - समय पर अपना डंडा चलाती रहती है लेकिन उसका असर इसलिए नहीं होता क्योंकि अधिकतर बड़े निजी विद्यालय या तो राजनेताओं के परिजनों द्वारा संचालित हैं या फिर उनके संचालकों का राजनेताओं से करीबी रिश्ता होता है | सही  मायनों में इन्हीं के कारण शिक्षा का व्यापारीकरण होता गया | कोरोना काल में भी इन विद्यालयों ने दबाव डालकर पूरी फीस वसूली किन्तु शिक्षकों का वेतन देने में भाँजी मार गये | हालांकि अधिकतर की आर्थिक हालत खराब हो गयी | मुख्यमंत्री  वाकई चाहते हैं कि निजी संस्थान शिक्षण  शुल्क बढ़ाने और  बाकी वसूली से परहेज करें तो  उनके आर्थिक हितों के बारे में भी सोचा  जाना चाहिए | मुख्यमंत्री की इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने समस्या के दोनों पक्षों पर ध्यान दिया | लेकिन केवल अपेक्षा कर देने से निजी शिक्षण संस्थान उनकी बात मान लेंगे ये सोचना गलत होगा क्योंकि उनके लिए  भी कोरोना काल मुसीबत बनकर आया है । दरअसल  मोटी कमाई करने वाले तो गिने चुने होते हैं जबकि बाकी किसी  तरह अपना काम चलाते हैं  | नामी - गिरामी निजी संस्थानों को तो फिर भी शिक्षण शुल्क  वगैरह मिलते रहे जबकि बड़ी संख्या उनकी है जो अभिभावकों पर दबाव डालने की हैसियत नहीं रखते | उल्लेखनीय है आजकल निम्न मध्यम वर्ग भी अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाने लगा है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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