Tuesday 13 July 2021

लाख दुखों की एक दवा है जनसंख्या नियंत्रण



उप्र सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये जाने का संकेत देने के बाद इस बारे में  राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होना सुखद संकेत है | हालांकि इसे कुछ लोग हिंदुत्ववादी सोच  और उप्र के आगामी विधानसभा चुनाव  से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन कोरोना की दो लहरों के बीच जनसंख्या एक समस्या बनकर सामने आई | अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या के अलावा टीकाकरण अभियान में भी उसके कारण अनेक दिक्कतें आ रही हैं | बीते एक - डेढ़ दशक में परिवार नियोजन का अभियान पूरी तरह से उपेक्षित हो गया था | भले ही सरकारी आंकड़ों में उसे जीवित रखा गया हो लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि सरकारी प्राथमिकताओं में परिवार नियोजन अब काफी पीछे है | बढ़ती बेरोजगारी , शहरों में बेतहाशा  भीड़ , झुग्गी - झोपड़ी का फैलता जाल अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती हैं | गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की विशाल संख्या बीते सात दशक में हुए विकास के दावों को संदिग्ध बना देती है | हालांकि कम जनसंख्या वाले विकसित देशों में भी कोरोना ने व्यवस्थाओं का कचूमर निकालकर रख दिया किन्तु भारत में सरकार के सामने तकरीबन 80 करोड़ लोगों के पेट भरने की चुनौती थी  |  हमारे पड़ोसी चीन ने आबादी नियन्त्रण की दिशा में कड़े और दूरगामी कदम उठाते हुए उसे काफी हद तक नियंत्रित कर लिया जिसका उसे जबर्दस्त लाभ भी हुआ | चूँकि वहां साम्यवादी शासन की वजह से एक तरह की तानाशाही है इसलिए सरकारी फैसले का विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं होती जबकि भारत में संसदीय प्रजातंत्र की वजह से वोट बैंक की राजनीति के चलते राष्ट्रीय हितों को उपेक्षित करने में कोई संकोच नहीं किया जाता  | इसका लाभ उठाकर मुस्लिम समाज में परिवार नियोजन के विचार को धर्म विरोधी मानकर छोटे परिवार की आवश्यकता के प्रति आँखें मूँद ली गईं | उनके धर्मगुरु भी परिवार को सीमित रखने के विरुद्ध  ही अभिमत देते रहे | जबकि सही  मायनों में मुस्लिमों को अपने आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए परिवार नियोजन की सबसे अधिक जरूरत थी | अधिक आबादी का नतीजा ये निकला कि ये समुदाय विकास की दौड़ में पीछे रह गया | ये अच्छी बात है कि जन्संख्या नियन्त्रण कानून के बारे में अब तक खास राजनीतिक विरोध सामने नहीं  आया है | शरद पवार द्वारा उसका समर्थन किया जाना भी शुभ संकेत है |   सोशल मीडिया पर भी ज्यादातर लोगों ने जनसंख्या नियन्त्रण के लिए कानून बनाए जाने को जरूरी बताया है | केंद्र सरकार पहले भी इस आशय का संकेत दे चुकी थी | अब जबकि दूसरी लहर समाप्ति की ओर है और तीसरी की आशंका है तब जनसँख्या नियन्त्रण के लिए कानूनी प्रावधान राष्ट्रीय हित की दिशा में बड़ा कदम होगा | वैसे मुस्लिम समुदाय के साथ ही समाज के अशिक्षित और आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर तबके को भी ज्यादा संतान पैदा करने से आने वाली मुसीबतों का एहसास होने लगा है | लेकिन अभी भी धर्मभीरुता और  अंधविश्वास   हावी होने से जनसंख्या विस्तार की गति निरंतर जारी है | 21 वीं सदी में भारत यदि विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की सोच रहा है तो उसे आर्थिक नियोजन के साथ ही जनसँख्या का नियोजन करना पड़ेगा | चीन ने अपनी विशाल जनसंख्या को मानव संसाधन के तौर पर पेश करते हुए सारी दुनिया के उद्योगपतियों को अपने देश में पूंजी निवेश हेतु आकर्षित करने के पहले जनसँख्या नियन्त्रण करने में सफलता हासिल कर ली थी | जबकि भारत में वैसी ही परिस्थितियाँ होने के बाद भी चीन जैसा लाभ नहीं मिला तो उसकी वजह हमारे आर्थिक नियोजन और जनसंख्या नियोजन में समन्वय की कमी होना था | समय आ गया है जब चुनावी राजनीति से ऊपर उठकर देश की बेहतरी के बारे में सोचा जावे | मुस्लिम धर्मावलंबी भी छोटे परिवार के साथ जुड़े दूरगामी फायदों को समझते हुए जनसंख्या नियन्त्रण के लिए आने वाले किसी भी कानून का समर्थन कर अपनी जागरूकता का परिचय दें तो उनकी नई पीढ़ी का भविष्य  सुधर जाएगा | उप्र सहित कुछ और राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से इसे जोड़कर देखना गलत होगा क्योंकि हमारे देश में तो पूरे पांच साल कहीं न कहीं चुनाव चला ही करते हैं | केंद्र सरकार को चाहिए कि वह संसद के मानसून सत्र में ही जनसंख्या नियन्त्रण कानून लेकर आये | राजनीतिक फायदे या नुकसान से ऊपर उठकर देश हित में ये कदम उठाया जाना जरूरी हो गया है | 


- रवीन्द्र वाजपेयी



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