Saturday 17 July 2021

पंजाब का मामला न सुलझा तो अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की अंतर्कलह बढ़ेगी



देश में पंजाब ही  ऐसा राज्य है जहाँ कांग्रेस काफ़ी सुखद स्थिति में मानी जाती थी |  अकाली - भाजपा  गठबंधन टूटने के बाद उसे आगामी चुनाव की चुनौती आसान नजर आने लगी थी | प्रकाश सिंह बादल बढ़ती उम्र  के कारण राजनीतिक परिदृश्य से गायब से हैं | और  उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल में पिता सरीखी सियासी समझ  न होने से अकाली दल की पकड़ ढीली पड़ने लगी | उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ने  मोदी सरकार में मंत्री रहते हुए पहले तो कृषि कानूनों का समर्थन किया परन्तु  जब वे संसद में पेश हुए तो विरोध करते हुए स्तीफा दे दिया | लेकिन तब तक मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने किसान आन्दोलन को  बड़ी ही चतुराई से दिल्ली की देहलीज तक पहुंचाकर बढ़त ले ली | हालाँकि अकाली दल ने भी किसान आन्दोलन को समर्थन दिया और प्रकाश सिंह बादल ने पद्म विभूषण लौटाकर किसानों को खुश करना चाहा किन्तु उसका खास असर नहीं हुआ | अकाली दल का साथ छूटने के बाद भाजपा पंजाब में बेसहारा होकर रह गई है | जहां तक बात आम आदमी पार्टी की है तो वह  जोर तो काफी लगा रही है लेकिन मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं होने से उसका अपने बलबूते सत्ता के दरवाजे तक पहुंचना आसान नहीं लगता | ऐसे  में कांग्रेस की डगर आसान नजर आ रही थी किन्तु  भाजपा से कांग्रेस में आकर मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल बैठे पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी के गले की  हड्डी बन गये हैं | कांग्रेस में आने के पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी का दरवाजा खटखटाया था लेकिन वहां भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ने उनकी दाल नहीं गलने दी | कांग्रेस में आने के बाद से ही वे ऊंची उड़ान के इरादे जताने लगे लेकिन 2017 में चुनाव अभियान के बीच कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने राहुल गांधी से ये घोषणा करवा ली कि मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा | सिद्धू उस समय तो मन मसोसकर रह गए और अमरिंदर सरकार में मंत्री भी बने लेकिन कम्बलों में गाँठ नहीं लगने वाली कहावत दोहराते हुए  सरकार छोड़कर बाहर आ गये |  उसके बाद से वे लगातार राज्य सरकार पर हमले करते आ रहे हैं | पहले तो पार्टी आलाकमान नजरंदाज करता रहा लेकिन चुनाव करीब आने के कारण उसकी उदासीनता दूर हुई जिसके बाद दोनों में  युद्धविराम करवाने के लिए तीन वरिष्ठ नेताओं की समिति बना दी गई | अमरिंदर और सिद्धू की सोनिया गांधी और प्रियंका  से भी मुलाकात होती रही किन्तु बात नहीं बनी | उसका कारण ये रहा कि सिद्धू चुनाव  के पहले उप मुख्यमंत्री या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाह रहे हैं | लेकिन अमरिंदर उनको किसी भी हैसियत में देखने राजी नहीं हैं | तीन नेताओं की समिति द्वारा बार - बार दिल्ली बुलाये जाने पर भी वे अपनी नाराजगी जता चुके हैं | यद्यपि वे हर बार कहते हैं कि जो आलाकमान कहेगा उसे  मान लेंगे लेकिन गत दिवस उन्होंने श्रीमती गांधी को भेजे पत्र में ये लिखकर सनसनी मचा दी कि आलाकमान पंजाब के मामले में टांग न अड़ाए अन्यथा बड़ा नुकसान हो जाएगा | जानकार सूत्र तो ये भी बताते हैं कि सिद्धू को महत्व दिए जाने पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ने तक की धमकी गांधी परिवार को दे डाली | उधर नवजोत भी आम आदमी पार्टी की प्रशंसा करते हुए कांग्रेस को चिंता में डाल रहे  हैं | इस रस्साखींच में  शिखर नेतृत्व की स्थिति दयनीय हो गई है | न तो गांधी परिवार अमरिंदर और नवजोत के बीच की  खाई पाट पाने में सफल हो सका और न ही बगावती स्वरों को शांत करवाने की ताकत उसमें दिखाई देती है | ताजा खबर तो ये भी है कि सोनिया जी , राहुल और प्रियंका के बीच भी   मतैक्य नहीं है | श्रीमती गांधी दोनों नेताओं के बीच सुलह की पक्षधर  हैं तो राहुल कैप्टेन को कमजोर करने से बचने की सलाह दे रहे हैं | वहीं  प्रियंका आलाकमान की सर्वोच्चता कायम करने की हिमायती बताई जा रही हैं | तीन नेताओं की जो समिति बनाई गई थी वह भी किसी काम की  साबित नहीं हुई | सही बात तो ये है कि पंजाब में चल रही वर्चस्व की लड़ाई में  गांधी परिवार की साख और धाक दोनों को धक्का पहुंचा है | पार्टी  न अमरिंदर को हाथ से जाने देना चाहती है और न ही नवजोत को किन्तु ये दोनों एक म्यान में दो तलवारें नहीं रखी जा सकतीं वाली कहावत को सही साबित कर रहे हैं | पार्टी  आलाकमान अपने प्रादेशिक नेताओं के सामने इतना कमजोर इसके पहले कब पड़ा ये याद नहीं आता  | सबसे  बड़ी बात ये है कि बजाय विरोधियों से लड़ने के पंजाब में कांग्रेस के भीतर ही महाभारत छिड़ा हुआ है |  दरअसल सारी मुसीबत की जड़ गांधी परिवार का अनिर्णय की स्थिति में फंसा होना है | राहुल गांधी न तो कमान थाम रहे हैं और न ही छोड़ने की इच्छा जताते हैं | प्रियंका एक समानांतर सत्ता के  रूप में  सक्रिय  जरूर हैं लेकिन राजस्थान का झगड़ा सुलझाने में उनके नाकामयाबी भी  सामने आ चुकी है | यदि पंजाब की  अंतर्कलह जल्द न सुलझी तो इसका असर अन्य राज्यों पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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