संसद को दी गई इस जानकारी पर तो सरकार में बैठे लोगों को भी विश्वास नहीं हुआ होगा कि कोरोना की दूसरी लहर में पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई | जब इसे लेकर विपक्ष और समाचार माध्यमों में बवाल हुआ तो सफाई दी गई कि केंद्र सरकार ने जो कुछ कहा वह राज्य सरकारों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर आधारित था | चूँकि स्वास्थ्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र का विषय है इसलिए केंद्र के लिए उनसे प्रदत्त जानकारी को स्वीकार करना बाध्यता है | लेकिन इस मामले में केंद्र को संवैधानिक प्रावधानों का पालन करने के अलावा अपने विवेक का भी उपयोग करना चाहिए था | कोरोना से हुई अनेक मौतों का कारण ऑक्सीजन की कमी भी थी वरना देश भर में उसके लिए इतना हाहाकार न मचा होता | गैर भाजपा राज्यों ने केंद्र पर ऑक्सीजन आपूर्ति में पक्षपात का आरोप भी लगाया | सवाल ये उठता है कि जब कोई कोरोना मरीज ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा तब देश में ऑक्सीजन उत्पादन बढ़ाने के लिए इतनी आपाधापी क्यों की गई ? बीते कुछ समय से सभी राज्य सरकारें सीना फुलाकर दावा करती फिर रही हैं कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन सुविधा युक्त बिस्तरों का इंतजाम कर लिया गया है | इसके अलावा अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र भी लगा दिए गए हैं | इन दावों के परिप्रेक्ष्य में संसद में दी गई जानकारी की असत्यता अपने आप सामने आ जाती है | केंद्र सरकार द्वारा झूठी जानकारी देने का ठीकरा राज्य सरकारों पर फोड़ना भले ही गलत न हो किन्तु क्या उसके अधिकारी बिलकुल ही नासमझ हैं जिन्होंने राज्यों से मिली जानकारी के बारे में उनसे पूछताछ की कोई कोशिश तक नहीं की | बीते अप्रैल और मई महीने में देश भर से जो खबरें आ रही थीं उनसे केंद्र सरकार अनजान रही हो ये मान लेना सच्चाई से मुंह छुपाना होगा | इस बारे में सबसे प्रमुख बात ये है कि कोरोना का पूरा प्रबन्धन केंद्र की देखरेख में होता रहा | संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों में जो राज्य सरकारों से सम्बन्धित होते हैं उनका जवाब उनसे प्राप्त करने के बाद पेश किया जाता है | लेकिन कोरोना से हुई मौतों को लेकर यदि भ्रामक जानकारी राज्यों द्वारा केंद्र को अग्रेषित की गई उसका परीक्षण कर संतुष्ट नहीं होने पर सम्बन्धित राज्य से सवाल किया जाना चाहिए था | लेकिन लगता है मंत्रीमंडल में हुए फेरबदल के कारण नए मंत्री महोदय को वह जानकारी ठीक से देखने का समय नहीं मिला जो उन्होंने संसद के माध्यम से देश को दी | विपक्ष द्वारा तो सरकार से असहमत होकर विरोध करना पूरी तरह अपेक्षित और स्वाभाविक ही है लेकिन तनिक सी भी जानकारी रखने वाला आम नागरिक ऑक्सीजन की कमी से एक भी मृत्य नहीं होने के दावे को झूठ का पुलिंदा ही निरूपित करेगा | केंद्र सरकार ने संघीय ढांचे के अंतर्गत चली आ रही व्यवस्था के अंतर्गत राज्य सरकार की ओर से मिले जवाब पर आँख मूंदकर भले ही भरोसा कर लिया हो किन्तु सूचना क्रान्ति के इस दौर में इस तरह की जानकारी अनेक स्रोतों से सामने आती है | सरकार चाहे केंद्र की हो अथवा राज्य की , वह जनता की नाराजगी से बचने काफी कुछ छुपा जाती है | कोरोना से मरने वालों की सही जानकारी भी इसीलिये छिपाई जाती रही और बाद में अनेक राज्यों द्वारा मौत के आंकड़े को संशोधित करते हुए बढ़ा दिया गया | कोरोना संबंधी जानकारियों में और भी विसंगतियां हैं | हो सकता है संक्रमण के दौर में सरकारों ने जनता को भयभीत होने से बचाने के आंकड़े छिपाए हों लेकिन ऑक्सीजन की कमी से एक भी कोरोना पीड़ित की मौत न होने का दावा झूठ की पराकाष्ठा है | जो राजनीतिक दल इस पर संसद नहीं चलने दे रहे उनको अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्य सरकार से केंद्र को भेजी गई जानकारी के बारे में भी पूछ्ताछ करनी चाहिए और यदि वह गलत लगती है तो सच्चाई सामने लाने का दबाव बनाना चाहिए | अर्थशास्त्र में एक उक्ति बड़ी ही प्रचलित है झूठ , सफ़ेद झूठ और आंकड़ा| लेकिन संदर्भित मामले में इसे इस तरह कहना सही होगा कि झूठ , सफ़ेद झूठ और सरकारी झूठ |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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