Wednesday 21 June 2023

नीलेकणी ने गुरु दक्षिणा का आदर्श रूप प्रस्तुत किया



किसी शिक्षण संस्थान की ख्याति इस पर निर्भर करती है कि वहां से कौन - कौन सी हस्तियों ने शिक्षा प्राप्त की। ऑक्सफोर्ड  , कैंब्रिज और हार्वर्ड विवि की शोहरत इसी बात से है कि दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले सैकड़ों दिग्गज उनके छात्र रहे हैं। भारत में  यही दर्जा आईआईटी (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ) को प्राप्त है। जिससे शिक्षित विद्यार्थी देश के अलावा पूरी दुनिया में भारत की कीर्ति पताका फहरा रहे हैं । इनसे निकले छात्र इस संस्थान के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करने में कभी नहीं हिचकते किंतु इंफोसिस नामक कंपनी के सह संस्थापक नंदन नीलेकणी ने मुंबई आईआईटी से जुड़ाव के 50 साल पूरे होने पर उसे 325 करोड़ रु. का दान देकर एक उदाहरण पेश किया है। इसके पूर्व भी वे इस संस्थान को 85 करोड़ रु. दे चुके थे। इस प्रकार उनके योगदान की कुल राशि 400 करोड़ रु. हो गई । श्री नीलेकणी द्वारा दान दी गई उक्त राशि मुंबई आईआईटी में विश्व स्तरीय इंफ्रा स्ट्रक्चर के विकास के साथ ही तकनीकी शोध पर व्यय की जावेगी। इस बारे में उन्होंने कहा कि 50 साल पूर्व इस संस्थान में उनके जीवन की आधारशिला रखी गई थी जिसके कारण मुझे बहुत कुछ हासिल हुआ। श्री नीलेकणी को पूरे विश्व में अनेक सम्मान हासिल हो चुके हैं। पद्म विभूषण से अलंकृत इस उद्यमी को भारत में आधार कार्ड योजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए भी जाना जाता है। वर्तमान में वे  इंफोसिस के अध्यक्ष हैं। हालांकि पूर्व छात्रों द्वारा अपने शिक्षण संस्थान को आर्थिक सहायता देने के अनेकानेक उदाहरण हैं लेकिन श्री नीलेकणी द्वारा प्रदत्त राशि निश्चित रूप से उल्लेखनीय है। हालांकि आईआईटी और उसी के समकक्ष आईआईएम जैसे संस्थानों से निकले ज्यादातर छात्र आर्थिक तौर पर संपन्न होते हैं ।  ऐसा ही कुछ अन्य संस्थानों के साथ भी है। देश में अनेक एनआईटी भी हैं जिनसे निकली प्रतिभाएं किसी से कम नहीं हैं। चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एम्स का भी बड़ा नाम है जिसके पूर्व  छात्र  अच्छी सफलता हासिल करते हैं। अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बाद धन कमाना बुरा नहीं है किंतु  जिस संस्थान ने आपका भविष्य उज्ज्वल बनाने में योगदान दिया यदि पूर्व छात्र उसके भविष्य को सुदृढ़ बनाने के लिए श्री नीलेकणी जैसी उदारता दिखाएं तो देश में उच्च शिक्षा का स्तर वाकई विश्वस्तरीय हो सकता है। भारत को यदि विश्वशक्ति बनना है तब उसको शिक्षा का बड़ा केंद्र भी बनना होगा ताकि बजाय इसके क हमारे युवा विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने जाएं ,   विदेशों से छात्र भारत पढ़ने आएं। प्राचीनकाल में ऐसा होता भी था लेकिन तब और अब की शिक्षा में जमीन - आसमान का अंतर है । दुनिया के तमाम विकसित देशों की प्रगति में उनके शिक्षण संस्थानों में होने वाले शोध का महत्वपूर्ण योगदान है। जिनको पेटेंट करवाकर वे उससे खूब कमाई करते हैं और संस्थान का भी विकास होता जाता है। आईआईटी और आईआईएम इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी निजी कंपनियों ने भी विश्व स्तर पर अपनी धाक जमाई है। लेकिन हम अभी बहुत पीछे हैं। और इस कमी को दूर करने में श्री नीलेकणी जैसी सोच रखने वाले व्यक्तियों की ज़रूरत है। हमारे देश में धार्मिक कार्यों के लिए दान करने का संस्कार काफी प्रबल है। अनेक औद्यगिक घराने शिक्षण संस्थान और अस्पताल आदि भी बनवा रहे हैं। इससे सेवाओं का विस्तार तो हुआ है किंतु इनके साथ जुड़ी व्यावसायिकता के कारण ज्यादातर अपने सामाजिक सरोकार की उपेक्षा कर बैठते हैं। सरकार द्वारा आय का  2 फीसदी सामाजिक कल्याण के लिए दान करने का नियम बनने के बाद सरकारी और निजी कंपनियां इस दिशा में काफी योगदान देने लगी हैं। लेकिन श्री नीलेकणी ने मुंबई आईआईटी को व्यक्तिगत तौर पर जो दान दिया वह बहुत ही दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय है। हर पूर्व छात्र इतना बड़ा दान  करे ये संभव नहीं किंतु गुरु दक्षिणा का यह आधुनिक रूप यदि प्रत्येक छात्र कुछ सीमा तक ही अपना ले और जिस सरकारी विद्यालय , महाविद्यालय अथवा विश्व विद्यालय से उसने  शिक्षा ग्रहण की उसके विकास हेतु छोटी सी भी राशि समय - समय पर देता रहे तो 21 वीं सदी के भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने का  बड़ा काम हो सकता है।   श्री नीलेकणी ने जो राशि मुंबई आईआईटी को दी वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकती है जो अपने बेटे - बेटियों की  डेस्टिनेशन शादी पर इतना खर्च करते हैं जिससे दस - 20 विद्यालय बनाए जा सकते हैं  या फिर सैकड़ों जरूरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षित बनाकर अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है। देश में करोड़पतियों की बढ़ती संख्या निश्चित रूप से उत्साहित करती है किंतु यदि वे श्री नीलेकणी का थोड़ा सा भी अनुसरण करें तो  संपन्न होने के साथ ही सम्मान के भी पात्र हो जायेंगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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