Monday 5 June 2023

राजनीति छोड़ हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के बारे में सोचें




उड़ीसा में हुई भीषण रेल दुर्घटना की चर्चा रुक पाती उसके पहले ही बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर बनाये जा रहे पुल का एक हिस्सा गत दिवस भरभराकर नदी में समा गया। रविवार की वजह से काम बंद होने से निर्माणस्थल पर मजदूर नहीं थे इसलिए कोई जनहानि नहीं हुई । इस की लागत 1700 करोड़ से भी ज्यादा है । यह पुल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महत्वाकांक्षी प्रकल्प बताया जा रहा है। पुल के गिरने के कुछ देर पहले बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उड़ीसा की रेल दुर्घटना के लिए प्रधानमंत्री और रेल मंत्री को जिम्मेदार मानकर त्यागपत्र की मांग कर रहे थे। लेकिन अब पूरे देश में भागलपुर की घटना को लेकर नीतीश कुमार पर उंगलियां उठने लगी हैं । इस बारे में रोचक तथ्य ये भी है कि उक्त पुल का एक हिस्सा गत वर्ष भी टूटकर गिरा था। बावजूद उसके निर्माण संबंधी गुणवत्ता नहीं रखी गई जिसका नतीजा सामने है । इस घटना को महज धनहानि मानकर चलना गैर जिम्मेदाराना सोच होगी क्योंकि बरसों से बन रहे इस पुल का निर्माण लंबे समय के लिए टल जाएगा । पुल का हिस्से दो - दो बार गिर जाने की वजह से निर्माण स्थल पर अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो जाएंगी। ठेकेदार बदलने पर नए सिरे से निविदा वगैरह निकालनी पड़ेगी , सो अलग। हालांकि हमारे देश में इस तरह के हादसे गाहे - बगाहे होते ही रहते हैं । गत वर्ष गुजरात में भी मरम्मत के कुछ समय बाद ही पुल टूटकर नदी में समा गया। जिसमें काफी लोग हताहत हो गए थे। उक्त सभी हादसे इस बात की पुष्टि करते हैं कि लापरवाही और भ्रष्टाचार हमारी रगों में खून बनकर बहने लगा है। जब भी कभी हादसे होते हैं तब जो भी सत्ता में बैठा होता है उसे विपक्ष के साथ जनता के गुस्से और आलोचना का शिकार होना पड़ता है। मसलन उड़ीसा में रेल दुर्घटना होते ही पूरा विपक्ष केंद्र सरकार पर हमलावर हो गया। रेलमंत्री अश्विन वैष्णव के त्यागपत्र का दबाव बनाया जाने लगा । लेकिन ज्योंही भागलपुर का निर्माणाधीन पुल धसका त्योंही आलोचना का निशाना घूमकर नीतीश सरकार पर केंद्रित हो गया। रेल दुर्घटना की जांच सीबीआई को सौंपने की बात रेल मंत्री कह चुके हैं और नीतीश ने भी पुल गिरने के मामले की जांच हेतु आदेश दे दिए। इसी के साथ ही लालू ,नीतीश और ममता के रेल मंत्री रहते हुए हुई रेल दुर्घटनाओं तथा उनमें मारे गए लोगों की संख्या के आंकड़े प्रसारित कर ये साबित किया जाने लगा कि वर्तमान केन्द्र सरकार के दौर में उक्त दोनों में कमी आई है । लेकिन विपक्ष द्वारा किए जा रहे हमले और केंद्र सरकार की ओर से हो रहे बचाव के बीच ये प्रश्न उभरकर सामने आता है कि दूसरे की गलती पर तो नैतिकता के नाम पर त्यागपत्र की उम्मीद की जाती है किंतु जब वही बात आपके साथ जुड़ती है तब बलि के बकरे तलाशकर अपनी गर्दन बचाने का काम होता है । उड़ीसा की दुर्घटना में अगर रेल गाड़ियां और पटरियां क्षतिग्रस्त हुई होतीं तब शायद उसे उतनी तवज्जो न मिलती किंतु जिस बड़े पैमाने पर जनहानि हुई वह दुखद है और उसके पीछे जो तकनीकी कमियां और मानवीय लापरवाही का आभास हुआ है वे चिंता का सबब भी हैं किंतु ऐसा ही तो भागलपुर का पुल नदी में गिरने के साथ है। इसके पूर्व भी जब उसका एक निर्माणाधीन हिस्सा गिर गया था उसी समय यदि इन्जीनियरिंग दृष्टि से उसकी ईमानदारी से समीक्षा की गई होती तब शायद कल वाला हादसा न होता। इन सब घटनाओं से ये बात महसूस होती है कि विकास कार्यों में होने वाला भ्रष्टाचार अब राजनीतिक दलों की सीमाओं से ऊपर उठकर समूची प्रशासनिक व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। तेजस्वी यादव सहित तमाम भाजपा विरोधी नेता रेल दुर्घटना पर श्री वैष्णव का त्यागपत्र मांग रहे हैं। राहुल गांधी ने तो अमेरिका में बैठे हुए ही यह मांग कर डाली। संजय राउत ने स्व.लालबहादुर शास्त्री और स्व.माधवराव सिंधिया के उदाहरण देते हुए रेल मंत्री पर दबाव बनाने का प्रयास किया किंतु अब क्या ये सभी नीतीश कुमार पर पुल गिरने का दोष मढ़ते हुए पद त्यागने का दबाव बनाएंगे ? लेकिन सब जानते हैं कि नैतिकता के पुराने उदाहरण अब फिजूल माने जाते हैं । और इसीलिए दूसरों को नैतिकता और ईमानदारी का उपदेश देने वाले जब अपने सिर पर आती है तो दाएं - बाएं झांकने लगते हैं। दरअसल राजनीति के धंधे में लिप्त तबका केवल क्षणिक उन्माद पैदा करते हुए अपने लाभ के लिए होहल्ला मचाता है। इस सबसे हटकर सोचने वाली बात ये है कि किसी हादसे के बाद दायित्वबोध और नैतिकता के जो प्रवचन दिए जाते हैं यदि दैनिक व्यवहार में राजनेता उन बातों को अमल में लाएं तो इस तरह के हादसों की स्थिति ही न बने। और फिर ऐसे अवसरों पर राजनीति से बाज आना चाहिए क्योंकि इससे बचाव और जांच दोनों प्रभावित होते हैं। उड़ीसा की रेल दुर्घटना और बिहार में पुल का गिर जाना दोनों हमारी व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करती हैं। जब तक छोटी - छोटी बातों में राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार होता रहेगा तब तक ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल रहेगा। जहां तक बात इस्तीफे की है तो उससे भी कुछ लाभ नहीं होता। और जब जेल जाने के बाद भी मंत्री कुर्सी नहीं छोड़ते तब कुछ कहने को बचता ही कहां है ? होना तो ये चाहिए कि किसी भी दुर्घटना के बाद उसकी पुनरावृत्ति रोकने के बारे में कार्ययोजना बनना चाहिए । एक दूसरे की टांग खींचने की प्रतिस्पर्धा में आगे पाट पीछे सपाट का ये खेल रुकना जरूरी है वरना हादसों का सिलसिला इसी तरह जारी रहेगा ।

- रवीन्द्र वाजपेयी 



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