Thursday 29 June 2023

वंदे भारत : किराया कम न हुआ तो यात्री नहीं मिलेंगे




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में वंदे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन कर रहे हैं। इस हेतु वे स्वयं संबधित शहर जाकर  ट्रेन को हरी झंडी दिखाते हैं। अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित यह रेलगाड़ी भारत के आर्थिक विकास का उदाहरण है। हालांकि भारतीय रेल विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क है किंतु विकसित देशों की तुलना में गुणवत्ता , सुरक्षा और समयबद्धता की दृष्टि से हम बहुत पीछे हैं । मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही मुंबई - अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना को मूर्त रूप देकर उस पर काम शुरू करवा दिया। उसके साथ ही प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत रुचि लेकर वंदे भारत नामक तेज गति से चलने वाली कुर्सी यान रेल गाड़ी चलाने की शुरुआत की जिसके बाद  हर माह विभिन्न राज्यों में वंदे भारत गाड़ी चलाने का सिलसिला जारी है। हाल ही में म.प्र में इंदौर - भोपाल और भोपाल - जबलपुर के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस का शुभारंभ किया गया। 100 कि.मी और उससे भी तेज गति से चलने वाली इस रेलगाड़ी को देखने के लिए जनता हर स्टेशन पर उमड़ पड़ी। ढोल - धमाके के साथ इंजिन चालक और स्टाफ का स्वागत किया गया। इस सबसे यही लगता है कि आम जनता में रेलवे के आधुनिकीकरण को लेकर कितनी उत्सुकता है। प्रतिदिन करोड़ों लोगों के आवागमन का सबसे सस्ता और सुलभ साधन होने से रेलवे देश की जीवन रेखा कहलाती है। हर व्यक्ति चाहता है कि रेलवे का स्तर सुधरे , उसमें स्वच्छता और सुरक्षा के साथ ही लेट - लतीफी बंद हो तथा किसी भी गड़बड़ी के लिए जवाबदेही तय की जाए।  उस दृष्टि से वंदे भारत गाड़ियां अच्छा प्रयास कही जा सकती हैं । रेल मंत्री अश्विन वैष्णव बता चुके हैं कि श्री मोदी इन गाड़ियों को लेकर काफी गंभीर हैं और इनको रेलवे का भविष्य मानते हैं। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की सोच दूरगामी और विकासमूल है।लेकिन जहां - जहां भी वंदे भारत गाड़ी चली वहां से जो खबरें मिल रही हैं वे उत्साह को ठंडा करने वाली हैं । इसका उदाहरण उद्घाटन के बाद इन गाड़ियों में यात्रियों की संख्या में देखी जा रही कमी है। कई शहरों में तो 800 - 900 क्षमता वाली इस गाड़ी में 100 से भी कम यात्री सफर करते देखे गए । इसका कारण जानने पर पता लगा कि अव्वल तो जिस गति से इस गाड़ी को चलाए जाने की बात कही जा रही थी वह  संभव नहीं हो पा रही क्योंकि आज भी पटरियों की हालत 160 कि.मी की रफ्तार  लायक नहीं है। इसके कारण जो सुपर फास्ट गाड़ियां पहले से चल रही हैं उनके और वंदे भारत द्वारा लिये जाने वाले समय में  ज्यादा अंतर नहीं आता। दूसरी बात इनकी समय सारणी भी उपयुक्त नहीं है। और सबसे बड़ी बात किराए की है जो मध्यमवर्गीय लोगों के लिए विलासिता या फिजूलखर्ची ही है। भोपाल से जबलपुर के बीच चलाई गई वंदे भारत को ही लें तो 1000 रु. की टिकिट व्यवहारिक नहीं है । समय की कुछ बचत बहरहाल अवश्य हो रही है किंतु रेलवे को ये  भी ध्यान रखना चहिए कि देश में विश्व स्तरीय सड़कों के बन जाने से उच्च मध्यमवर्गीय यात्री भी निजी वाहन से यात्रा करना पसंद करने लगे हैं । इसी तरह अनेक स्थानों से यात्रा करने पर हवाई टिकिट और रेल की  प्रथम श्रेणी वातानुकूलित टिकिट में ज्यादा अंतर नहीं बचा । थोड़ा सा  अतिरिक्त किराया देकर यदि यात्री का समय बचता है तब वह उड़कर जाना पसंद करता है। इंदौर और भोपाल के बीच टेक्सी सेवा  भी दशकों से चली आ रही है। ऐसे में वंदे भारत में  यात्रियों  को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक किराए रखने होंगे। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां वंदे भारत गाड़ियों को प्राथमिकता के आधार पर चलाया जा रहा है किंतु जब यात्री ,  किराए की राशि देखता है तब इस गाड़ी की सुंदरता , सुविधाएं और गति वगैरह उसे महत्वहीन लगने लगती हैं। और ये मान लेना भी भूल होगी कि संपन्न वर्ग इस गाड़ी का उपयोग करेगा क्योंकि उसके लिए किराया बेमानी होता है।  रेल से यात्रा करने वालों में सभी वर्गों के लोग होते हैं। वह देखते हुए वंदे भारत के किराए को व्यवहारिक बनाया जाना जरूरी है वर्ना ये गाड़ियां रेलवे के लिए सफेद हाथी साबित होकर रह जायेंगी। चूंकि इनसे प्रधानमंत्री का नाम जुड़ा हुआ है इसलिए रेलवे का ये दायित्व बन जाता है कि वह अब तक चलाई गईं समस्त वंदे भारत रेल गाड़ियों से यात्रा कर चुके  यात्रियों की संख्या के आंकड़े एकत्र कर इस बात की समीक्षा करे कि इसे  कितना प्रतिसाद मिला है। यदि रेलवे को लगता है कि वंदे भारत गाड़ियां उसके अनुमान और आकलन के मुताबिक सही परिणाम दे रही हैं तब बात और है । अन्यथा इसके किराए को युक्तयुक्तिपूर्ण बनाया जाना चाहिए वरना ये गाड़ियां अपनी उपयोगिता खो बैठेंगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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