Tuesday 27 June 2023

विपक्षी एकता की नाव में अभी से छेद होने लगे



2024 के लोकसभा चुनाव में  भाजपा विरोधी महागठबंधन बनाने के लिए बिहार के  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गत 22 जून को पटना में जो बड़ी बैठक बुलाई थी उसमें शामिल  विपक्षी नेताओं ने एकजुटता का संकल्प लेते हुए आगामी 12 जुलाई को शिमला में पुनः मिलने का निर्णय किया । कहा जा रहा है उसमें सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय हो सकता है।  उक्त बैठक में शरीक  ज्यादातर दल चाहते थे कि कांग्रेस बड़ा दिल दिखाते हुए अन्य दलों के लिए ज्यादा सीटें छोड़े जिससे भाजपा के विरुद्ध विपक्ष का साझा उम्मीदवार खड़ा कर मतों का बंटवारा रोका जा सके। कांग्रेस ने इससे असहमति तो नहीं जताई किंतु  आश्वासन भी नहीं दिया । लेकिन  पहला अपशकुन किया आम आदमी पार्टी ने । दिल्ली सरकार के पर कतरने वाले विधेयक को राज्यसभा में रोकने की जो मुहिम अरविंद केजरीवाल चला रहे हैं उसको  समर्थन मिलने की उम्मीद जब कांग्रेस और फारुख अब्दुल्ला की तीखी टिप्पणियों से  मिट्टी में मिल गई तब उनके साथ ही भगवंत सिंह मान , संजय सिंह और राघव चड्डा संयुक्त पत्रकार वार्ता का बहिष्कार कर दिल्ली लौट गए। और आगे किसी भी ऐसी  बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया जिसमें कांग्रेस रहेगी। पटना में ममता बैनर्जी  ने राहुल गांधी से कहा भी कि वे श्री केजरीवाल से मिलकर मसला सुलझा लें किंतु उनकी बात भी अनसुनी कर दी गई।  इसके बाद आम आदमी पार्टी ने जहां कांग्रेस के विरुद्ध बयानों की मिसाइलें दागीं वहीं देश भर में कांग्रेस के अनेक नेताओं ने श्री केजरीवाल पर जेल जाने के डर से भाजपा की बी टीम बनने का आरोप लगा दिया। नीतीश और लालू प्रसाद यादव की पार्टी के कुछ नेताओं ने भी आम आदमी पार्टी और श्री केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। दूसरा मोर्चा लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बैनर्जी के विरुद्ध ये कहते हुए खोला कि तृणमूल कांग्रेस चोरों की पार्टी है । प.बंगाल में वह कांग्रेस को नष्ट करने पर तुली है तो किस मुंह से उससे बड़ा दिल दिखाने की उम्मीद करती है। जवाब में ममता भी ये कहते हुए सामने आईं कि कांग्रेस उनके विरुद्ध वामपंथियों से गठबंधन करने के बाद किस अधिकार से  सदाशयता की उम्मीद करती है ? तमिलनाडु में स्टालिन की कांग्रेस से नाराजगी सुनाई दे रही है। पटना से लौटे  भगवंत सिंह मान कांग्रेस पर जमकर गुस्सा निकाल रहे हैं। इस सबके कारण एक तो श्री केजरीवाल की अध्यादेश वाली मुहिम कमजोर पड़ती नजर आ रही है वहीं  नीतीश  द्वारा विपक्षी एकता की जो नाव चलाई गई उसमें नीचे से भी छेद होते दिख रहे हैं। दरअसल कांग्रेस बाकी  विरोधी दलों को ये एहसास करवाना चाह रही है कि मोदी विरोधी गठबंधन उससे ज्यादा उनके लिए  जरूरी है । पटना बैठक में तेलंगाना के मुख्यमंत्री और विपक्षी एकता के शुरुआती पैरोकार के.चंद्रशेखर राव का न आना भी चौंकाने वाला रहा । उल्लेखनीय है निकट भविष्य  में वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिनमें श्री राव की पार्टी बीआरएस को भाजपा और कांग्रेस दोनों से मुकाबला करना पड़ेगा। कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस को लग रहा है कि अपने इस पुराने दुर्ग को पुनः हासिल कर लेगी जबकि भाजपा लगातार वहां अपना जनाधार बढ़ाते हुए श्री राव की मुख्य प्रतिद्वंदी बनने के लिए जी - तोड़ प्रयास कर रही है। इन सबके चलते विपक्षी एकता केवल बैठकों तक ही सीमित लग रही है। वैसे आजकल विपक्ष में एक दूसरे को भाजपा की बी टीम कहकर बदनाम करने का फैशन चल पड़ा है। कांग्रेस और वामपंथी दल तृणमूल को भाजपा की बी टीम कहते नहीं थकते , सपा , जद (यू) और  राजद ,  ओवैसी को भाजपा का पिट्ठू बताते हैं। अखिलेश यादव की नजर में मायावती की राजनीति भाजपा को मजबूती प्रदान करने की है । और अब सारे विपक्षी दल मिलकर आम आदमी पार्टी को भाजपा का पिट्ठू साबित करने का अभियान चला रहे हैं। ये भी रोचक है कि सबको एक तरफ से चोर कहने वाले श्री केजरीवाल उन सबसे ही समर्थन की गुहार लगा रहे हैं । कुल मिलाकर विपक्षी एकता की जितनी भी कोशिशें अब तक हुईं वे कुछ समय बाद ही दम तोड़ बैठीं। 2021 के चुनाव की सफलता से उत्साहित ममता ने ये कहते हुए पहल की थी कि राहुल  में नरेंद्र मोदी को रोकने का दमखम नहीं है और वे ही वैकल्पिक चेहरा हो सकती हैं। उसके बाद श्री राव ने बागडोर संभाली किंतु  उनकी बेटी का दिल्ली शराब घोटाले में नाम आने के बाद वे  ठंडे पड़ते नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ यदि मनीष सिसौदिया जेल न जाते तो श्री केजरीवाल भी बाकी सभी दलों और नेताओं को भ्रष्ट साबित करने में जुटे रहते। पटना बैठक के बाद आम आदमी पार्टी , कांग्रेस और तृणमूल के बीच जिस तरह की बयानबाजी सुनाई दे रही है उससे नीतीश की कोशिश पर पानी फिरने का अंदेशा उत्पन्न हो गया है। आम आदमी पार्टी  जिस तरह ऐंठ दिखाती है वह दूध में नींबू निचोड़ने जैसा कृत्य ही है। पटना बैठक के बाद कुछ दिनों में ही जो  देखने और सुनने मिल रहा है   उससे ये आशंका उत्पन्न होने लगी है कि कांग्रेस की आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के साथ चल रही खुन्नस  एकता प्रयासों में रोड़ा अटका सकती है । यद्यपि अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता किंतु एक बात तय है कि भाजपा के विरुद्ध विपक्ष का एक प्रत्याशी उतारने की मंशा शायद ही पूरी हो क्योंकि बिहार बैठक में जितने दल शामिल हुए उतने ही  उससे दूर भी रहे । इसलिए कुछ और मोर्चे उभरने की संभावना बनी रहेगी । और फिर ममता बैनर्जी कब क्या करने लग जाएं ये कोई नहीं बता सकता।

-रवीन्द्र वाजपेयी 



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