Friday 16 June 2023

धर्मांतरण विरोधी कानून किसे खुश करने रद्द किया जा रहा


बहुमत प्राप्त सरकार संविधान के दायरे में रहते हुए नया  कानून बनाए या पुराने को रद्द करे ,  ये उसका अधिकार है। लेकिन कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनका संबंध किसी दल विशेष की नीति या पसंद से ऊपर उठकर समाज  और देशहित से जुड़ा होता है । इसलिए ऐसे मुद्दों पर  व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए। संदर्भ , कर्नाटक की नई सरकार द्वारा पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के बनाए धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द किए जाने वाले प्रस्ताव का है । इस बारे में विचारणीय ये है कि उक्त कानून क्यों लाया गया और उस पर किसे आपत्ति थी ? जाहिर है लोभ - लालच , दबाव या अन्य किसी गैर कानूनी तरीके  से  हिंदू धर्म छोड़कर मुस्लिम या ईसाई बनाए जाने का जो सुनियोजित अभियान देश भर में चलाया जा रहा  है उसे रोकने के लिए कर्नाटक ही नहीं अन्य राज्यों ने भी कानून बनाए हैं । एक समय था जब आदिवासी और दलित समुदाय में अशिक्षा और गरीबी का लाभ उठाकर ईसाई मिशनरियों द्वारा उनका धर्म परिवर्तन करवाए जाने की ही चर्चा होती थी। देश के पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त जिन भी राज्यों में आदिवासियों की बड़ी संख्या है , वहां धर्मांतरण जमकर हुआ। जिन इलाकों में आवगमन के साधन और विकास की रोशनी नहीं पहुंची वहां  मिशनरियों का जाल फैलता गया। केरल का ईसाईकरण तो बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। लेकिन बीते कुछ दशकों से हिंदुओं को इस्लाम स्वीकार करने हेतु मजबूर किए जाने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं । केरल में जब लव जिहाद के जरिए हिंदू लड़कियों को मुसलमान बनाने की बात  हिंदू संगठनों ने उठाई तब उसे हल्के में लिया गया किंतु धीरे - धीरे वह इस्लामीकरण के हथियार के तौर पर उपयोग होने लगा। इसमें खाड़ी देशों से आए पेट्रो डालरों की भी महती भूमिका रही। बीते कुछ सालों में लव जिहाद के जरिए हिंदू युवतियों के साथ होने वाले अमानुषिक व्यवहार के मामले भी लगातार सामने आने लगे। सभी में धोखाधड़ी होती हो ऐसा कहना तो गलत होगा किंतु ज्यादातर में हिंदू लड़की का भावनात्मक शोषण या ब्लैकमेल किया जाना सामने आया। इस तरह की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए ही धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए गए।  कर्नाटक की नव - निर्वाचित कांग्रेस सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसे मौजूदा कानून में ऐसा क्या लगा जिसकी वजह से वह उसे रद्द करने जा रही है।  रही बात कानून के दुरुपयोग की तो जिन मामलों में ज्यादती की शिकायत है , नई सरकार उनकी समीक्षा भी कर सकती थी। लेकिन ले - देकर वही तुष्टीकरण की नीति  लागू करने का प्रयास हो रहा है। बेहतर होता कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस निर्णय के  दुष्परिणाम का पूर्वानुमान लगाकर कर्नाटक सरकार को इसके खतरों से आगाह करते हुए धीरज के साथ आगे बढ़ने की सलाह देता। लेकिन विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं के थोक समर्थन की खुशी में वह अपने पैरों पर कूल्हाड़ी मारने की मूर्खता कर रही है । लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी की व्यूह रचना में मुस्लिम मतदाताओं को क्षेत्रीय पार्टियों के प्रभाव से मुक्त कर वापस अपने साथ लाना है। उल्लेखनीय है बाबरी ढांचा गिरने के बाद मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से छिटककर इधर - उधर चले गए। इसी के चलते उ.प्र और बिहार में वह घुटनों के बल आ गई। अन्य राज्यों में भी भाजपा विरोधी  क्षेत्रीय दल को उनका समर्थन मिलने लगा। इस तरह उसको दोहरा नुकसान हुआ क्योंकि हिंदू मतदाता भाजपा की तरफ झुके तो मुसलमानों ने मुलायम , लालू , ममता और  देवगौड़ा जैसे छत्रपों को सिर पर बिठा लिया। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इसी वोट बैंक को वापस खींचने में जुटा हुआ है। कर्नाटक चुनाव ने  उसका मनोबल बेशक बढ़ा दिया । लेकिन वहां के मुसलमान जनता दल सेकुलर के ढुलमुल रवैए से सशंकित होकर कांग्रेस की तरफ झुके । लेकिन पार्टी उनको खुश करने के लिए पूरी तरह आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गई तब उसे  हिंदू मतों से हाथ धोना पड़ सकता है जो स्थानीय कारणों से उसकी तरफ आकर्षित हुए। कांग्रेस को ये ध्यान रखना चाहिए कि लव जिहाद के मामले जिस संख्या में  सामने आए हैं उनसे हिंदू समाज काफी उद्वेलित है ।  हाल ही में प्रदर्शित धर्मांतरण पर बनी फिल्म द केरल स्टोरी को पूरे देश में जो सफलता मिली उससे कांग्रेस ही नहीं , मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले अन्य दलों को भी चौकन्ना हो जाना चाहिए। धर्मांतरण जिस स्वरूप में सामने आ रहा है उसकी हिंदू समाज में बेहद रोष पूर्ण प्रतिक्रिया है जिसे हल्के में लेना सच्चाई से मुंह चुराने जैसा होगा। कर्नाटक सरकार जो कदम उठाने जा रही है उससे तो धर्मांतरण में लगी ताकतों का हौसला और बुलंद होगा जो कालांतर में देश के लिए खतरा साबित हो सकता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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