Friday 2 June 2023

देश को नवीन और नितिन जैसे नेता चाहिए



राजस्थान में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं | उसी कारण से वहां के मुख्यमंत्री ताबड़तोड़ घोषणाएं करते हुए  सत्ता में वापसी का इंतजाम करने में जुटे हैं | 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली के बाद अब उन्होंने नया उपहार जनता को ये दिया है कि 100 यूनिट से ज्यादा जितनी बिजली जलाएंगे उतने का ही पैसा  देना पड़ेगा |   अभी तक मुफ्त बिजली के साथ ये शर्त रहती थी कि मुफ्त सीमा से एक यूनिट ज्यादा होते ही पूरे का भुगतान करना होता था | लेकिन श्री गहलोत ने एक कदम आगे निकलकर ये कह दिया कि कितनी भी बिजली जलाओ लेकिन 100 यूनिट मुफ्त रहेगी | और बाकी का ही पैसा उपभोक्ता को देना पड़ेगा | 200 यूनिट खर्च करने पर शुल्क वगैरह में भी छूट रहेगी | दिल्ली में जब केजरीवाल सरकार ने मुफ्त बिजली शुरु की तब ये शर्त रखी थी कि छूट की सीमा से एक यूनिट अधिक होने पर भी पूरे का भुगतान करना होगा | अब राजस्थान सरकार ने उसके आगे की दरियादिली दिखाई है | रसोई गैस का सिलेंडर 500 रु. में देने की योजना भी 1 अप्रैल से लागू की जा चुकी है | इस पर आने वाले खर्च की राशि भी बताई गयी है | लेकिन ये खर्च आयेगा कहाँ से ये बताने की ईमानदारी हमारे सत्ताधीश नहीं दिखाते | अकेले  राजस्थान ही नहीं अपितु  देश के तकरीबन प्रत्येक राज्य में इसी तरह के मुफ्त उपहार दरियादिली से बांटे जा रहे हैं | चुनाव के कुछ महीने पहले तो मतदाता को जो मांगोगे वही मिलेगा की गुहार सुनाई पड़ती है | कर्मचारियों के भत्ते बढ़ जाते हैं , अस्थायी को स्थायी कर दिया जाता है , नई भर्तियों की बाढ़ आ जाती है , जनसमस्याओं का निवारण ,  शिविर लगाकर  किया जाता है और सबसे बड़ी बात चार साढ़े चार साल तक गुमशुदा जनप्रतिनिधि सुलभ हो जाते हैं | उनका रूखापन सौजन्यता में बदल जाता है | बीते कुछ सालों में  चुनाव के पहले  धार्मिक आयोजनों की बाढ़ आ जाती है जिसमें जनता को भंडारे के माध्यम से उदर पोषण का लाभ भी नेताजी की कृपा से मिलता है | जिन राज्यों में निकट भविष्य में चुनाव होने वाले हैं वहां के मुख्यमंत्री इन दिनों जितने उदार हैं उतने बीते सालों में नहीं रहे क्योंकि तब जनता के कल्याण की योजनाओं के लिए खजाने में पैसा नहीं  था , नई भर्ती बोझ लगती थी , अस्थायी को स्थायी करने में खजाना खाली होने का भय था | हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में दौरे  में  गहलोत सरकार की घोषणाओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उन सब पर अमल किये जाने के बाद सरकारी खजाना खाली हो जाएगा | इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने भी पलटवार करते हुए केंद्र सरकार की मुफ्त योजनाओं पर ऊंगली उठा दी | चूंकि   राजनीति नामक स्नानागार में सभी के निर्वस्त्र होने जैसी स्थिति बन चुकी है और किसी  भी कीमत पर चुनाव जीतना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है इसलिए किसी एक पार्टी या नेता को कठघरे में खड़ा करना न्यायोचित नहीं होगा । परन्तु इस परिदृश्य से हटकर देश के पूर्वी तट पर स्थित राज्य उड़ीसा को देखें तो पांच चुनाव लगातार जीतने के बाद भी वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक लोकप्रिय बने हुए हैं | सता विरोधी रुझान जैसा शब्द  वहां मानो अर्थहीन होकर रह गया है | जनता को लुभाने के लिए श्री पटनायक भी काफी कुछ करते हैं | उनका राज्य आज भी देश के गरीब राज्यों में माना जाता है | प्राकृतिक आपदाएं भी  प्रतिवर्ष आती हैं | लेकिन नवीन बाबू अंगद  के पैर की  तरह यदि जमे हैं तब कुछ न कुछ तो ऐसा होगा ही जिसकी वजह से उनके प्रति जनता के मन में विश्वास कायम है | विधानसभा चुनाव के पूर्व उड़ीसा में खैरातों की बहार नहीं सुनाई नहीं  देती | राजनीतिक दृष्टि से  भी श्री पटनायक विवादों से दूर रहते हुए अपनी सरकार और पार्टी का संचालन कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि बीजू जनता दल और सरकार के भीतर उनके विरोधी न हों किंतु  होहल्ले से दूर रहते हुए  शांत भाव से अपना काम करने की वजह से वे जनता के बीच लोकप्रिय और सम्माननीय बने हुए हैं। बेहतर हो अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री और राजनीतिक नेतागण नवीन बाबू के काम करने के तरीकों से कुछ सीखें । चुनाव के समय खजाना खाली करने की  प्रवृत्ति निश्चित रूप से सत्ताधारी नेताओं के मन में बैठे  भय का प्रतीक है। किसी राजनेता की विश्वसनीयता उसकी कथनी और करनी में साम्यता  पर टिकती है। दुर्भाग्य से इस गुण का अभाव राजनीति में होता जा रहा है। इसी कारण चुनाव आते ही सत्तासीन नेता के साथ ही सत्ता पर काबिज होने के लिए लालायित नेताओं का रक्तचाप बढ़ जाता है जिसके परिणाम स्वरूप मतदाताओं को लॉलीपॉप देने की होड़ मचती है। केंद्र सरकार में भी वैसे तो अनेक कद्दावर मंत्री हैं किंतु परिवहन मंत्री नितिन गड़करी अपने काम के कारण जन - जन में लोकप्रिय हैं। विरोधी दलों में भी उनकी प्रशंसा होती है। सही मायनों में हमारे देश को ऐसे ही नेताओं की जरूरत है जो सत्ता का उपयोग देश के विकास और जनता के कल्याण के लिए करते हुए लोगों के दिल में अपनी स्थायी जगह बना लेते हैं। वैसे भी  मुफ्त खैरात चुनाव जीतने का कालजयी फार्मूला नहीं है । लोग भारी - भरकम टोल टैक्स देने के बाद भी हाइवे पर चलते हुए आनंदित होते हैं। एक - दो चुनाव जीतते ही अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री बनने की लालसा पाले हुए देश भर में घूमने लगे हैं किंतु पांच चुनाव जीत चुके नवीन पटनायक अपने राज्य के विकास हेतु बिना लफ्फाजी के जुटे हुए हैं । और कोई बड़ा कारण न हुआ तो छटवीं बार भी वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे । इसी तरह ममता बैनर्जी और नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के लिए उठापटक करते रहते हैं वहीं श्री गड़करी में प्रधानमंत्री की संभावना और योग्यता आम जनता महसूस करती है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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