Tuesday 13 June 2023

आग : राजधानी में ये हाल हैं तब बाकी शहरों की हालत क्या होगी



म.प्र की राजधानी स्थित सतपुड़ा भवन में गत दिवस शाम के समय लगी आग लगभग 20 घंटे के बाद भी पूरी तरह से बुझाई नहीं जा सकी | सेना की अग्निशमन सेवा का उपयोग भी किया गया | राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के कार्यालय सतपुड़ा भवन में होने से हजारों फाइलें और जरूरी दस्तावेज आग में जलकर नष्ट हो गए | ऊपरी मंजिल में लगी आग हवा की वजह से जल्द ही निचली मंजिलों तक ये फ़ैल गई | गनीमत ये रही कि  भवन में मौजूद सभी कर्मचारी और अधिकारी सकुशल बाहर  निकल आये | गर्मियों के मौसम में शॉर्ट सर्किट के कारण इस तरह की घटनाएँ अक्सर हो जाया करती हैं | आजकल एयर कंडीशनरों का उपयोग कार्यालयों में काफी ज्यादा होने लगा है | सतपुड़ा भवन में भी 100 एसी लगे हुए थे जो आग लगने के बाद फटे । गर्मियों में बिजली की मांग ज्यादा होने से दबाव बढ़ता है जिससे  तारों का तापमान बढ़ने से आग लगने का खतरा रहता है | उक्त दुर्घटना का प्रारंभिक कारण शॉर्ट सर्किट ही माना जा रहा है | हालाँकि विपक्षी दल ये आरोप लगाने में जुट गए हैं कि प्रदेश सरकार ने आगामी विधानसभा चुनाव में हार  का आभास करते हुए आग लगवाई जिससे भ्रष्टाचार के मामले दबे  रहें | ये भी याद दिलाया जा रहा है कि 2018 में चुनाव परिणाम आने के बाद  भी ऐसा ही अग्निकांड हुआ था | मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने आग लगने के फौरन बाद ही केन्द्रीय गृह और रक्षा मंत्री से बात कर केन्द्रीय  एजेंसियों  की मदद लेने की जो पहल की उसकी वजह से किसी तरह आग को रोका जा सका किन्तु सुबह तक वह पूरी तरह ठंडी नहीं हो सकी थी | इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुर्घटना कितनी भीषण रही होगी | प्रारम्भिक तौर पर इसे षडयंत्र कह देना जल्दबाजी लगती है क्योंकि उक्त इमारत की सभी मंजिलों में स्थित शासकीय कार्यालयों में कर्मचारियों और अधिकारियों की पर्याप्त उपस्थिति थी | बहरहाल जांच समिति बना दी गयी है जो आज से ही अपना कार्य शुरू कर देगी | उसकी अंतिम रिपोर्ट आने तक कयासों का दौर चलता रहेगा | चुनाव करीब हैं इसलिए राजनीति भी जमकर होगी | लेकिन इससे अलग हटकर विचारणीय मुद्दा ये है कि बहुमंजिला इमारत में जहां 1 हजार कर्मचारी और अधिकारी बैठते हों , अग्निशमन के इंतजाम पूरी तरह गुणवत्ता युक्त होना चाहिए थे ताकि वहां  मौजूद लोग ही उसका इस्तेमाल करते हुए आग को फैलने से रोकते | बहुमंजिला भवनों में फायर अलार्म  की व्यवस्था भी की जाती है | आजकल विद्युत फिटिंग में भी इस तरह का प्रबंध रहता है जिससे किसी भी तरह की गड़बड़ी होते ही विद्युत प्रवाह तुरन्त रुक जाता है | सतपुड़ा भवन में ये सब इंतजाम थे  या नहीं यह तो जाँच से ही पता चलेगा किन्तु इतना तो कहा ही जा  सकता है कि राजधानी में स्थित प्रशासन का इतना बड़ा केंद्र जिस भवन में स्थित है उसकी देखरेख में कहीं न कहीं कमी जरूर रही | लोक कर्म विभाग जिसके जिम्मे सरकारी भवनों की व्यवस्था होती है उसकी कार्यप्रणाली कैसी है ये किसी को बताने के जरूरत नहीं है | इस विभाग में भ्रष्टाचार का जो नंगा - नाच है उसे कोई भी सरकार नहीं रोक सकी | जो प्राथमिक जानकारी आई है उसके अनुसार इस अग्निकांड में सिर्फ सरकारी दस्तावेज ही नष्ट नहीं हुए अपितु जिस हिस्से में आग लगी उसका ढांचा भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है | बड़ी बात नहीं जाँच के बाद पूरे  भवन को खतरनाक मानते हुए  उसका पुनर्निर्माण करना पड़े | जिस पर करोड़ों का खर्च आएगा और यदि उसकी नौबत नहीं आई तब भी वह इतना कमजोर तो हो ही गया कि उसमें बड़े पैमाने पर मरम्मत करना होगी जिससे लंबे समय तक उसमें लगने वाले कार्यालय अव्यवस्थित रहेंगे। चुनाव के ठीक पहले हुआ ये अग्निकांड कई सवाल खड़े कर गया है। यह किसी षडयंत्र के कारण  चाहे न हुआ  हो किंतु इसके पीछे लापरवाही से इंकार नहीं किया जा सकता। विपक्ष द्वारा इसका राजनीतिक लाभ उठाये जाने की आलोचना भले की जाए किंतु इस बारे में सरकार को अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं चुराना चाहिए। मुख्यमंत्री ने दुर्घटना के खबर लगते ही व्यक्तिगत रूप से बचाव हेतु जिस तरह की सक्रियता दिखाई वह निश्चित रूप से प्रशंसनीय है किंतु आग जिस तेजी से फैलकर  ऊपरी मंजिल से नीचे की ओर बढ़ती गई उससे एक तो भवन में लगाई गई  अग्निशमन व्यवस्था के दोषपूर्ण होने का प्रमाण मिला दूसरी बात ये भी उजागर हो गई कि प्रदेश की राजधानी की नगर निगम के पास आग बुझाने के ऐसे साधन नहीं हैं जो बहुमंजिला भवनों की ऊपरी मंजिलों तक प्रभावी हो सकें । भोपाल में तो इससे भी ऊंची इमारतें बन गई हैं । शहरों की आवासीय समस्या हल करने के लिए हाई राइज इमारतों की अनुमति भी पूरे प्रदेश में दी  जाने लगी है। ऐसे में  इस बात की जरूरत है कि  प्रदेश की सभी बहुमंजिला इमारतों में अग्निशमन की व्यवस्थाओं की बारीकी से जांच हो । गत वर्ष जबलपुर के एक निजी अस्पताल में हुए अग्निकांड के बाद कुछ महीनों तक तो फायर ऑडिट का कर्मकांड चला लेकिन अंततः वह भी सरकारी भर्राशाही का शिकार होकर रह गया। सतपुड़ा भवन में लगी आग निश्चित रूप से चिंता का विषय है। सिर्फ इसलिए कि इसमें कोई हताहत नहीं हुआ , कुछ दिन की मशक्कत के बाद हादसे को भुला देना भविष्य के लिए नए खतरों की बुनियाद रखेगा। इसलिए जांच समिति को अपना काम इमानदारी से करना चाहिए क्योंकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकना बेहद जरूरी है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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