Thursday 22 June 2023

आम आदमी पार्टी बनेगी विपक्षी एकता में बाधक




बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अपने राज्य पर कम और राष्ट्रीय राजनीति पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं । विगत एक साल में उनकी पार्टी के अलावा राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन के अनेक घटक उनसे छिटक चुके हैं जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह के अलावा उपेंद्र कुशवाहा भी हैं। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी गठबंधन से बाहर आ गए और वे भाजपा के साथ जुड़ने के लिए गत दिवस दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से भी मिल लिए।   लेकिन इस सबसे बेखबर नीतीश 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। इस हेतु बहुप्रतीक्षित बैठक शुक्रवार 23 जून को पटना में आयोजित है जिसमें शरद पवार , ममता बैनर्जी , राहुल गांधी , अखिलेश यादव , स्टालिन  सहित तमाम विपक्षी नेता शामिल हो रहे हैं। मायावती और ओवैसी सहित कुछ के बारे में असमंजस बना हुआ है । नीतीश चाहते हैं कि विपक्षी मोर्चा इस तरह का बने जिसमें भाजपा के विरुद्ध एक सीट पर एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की सहमति बन जाए। इसके लिए कांग्रेस पर यह दबाव डाला जा रहा है कि वह अधिकतम 250 सीटों पर लड़ने पर सहमत हो जाए जिससे कि बाकी दलों को भी समुचित अवसर मिल सके। हालांकि इसके पीछे सोच यही है कि कांग्रेस को इतना ताकतवर न होने दिया जाए जिससे वह क्षेत्रीय दलों पर हावी हो सके। कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा का भय दिखाकर नीतीश खुद प्रधानमंत्री बनने की बिसात बिछा रहे हैं । हालांकि ममता बैनर्जी उनकी राह का रोड़ा बने बिना नहीं रहेंगी। कल पटना में होने जा रहे समागम में संयुक्त मोर्चे की संभावना मजबूत होगी या अंत में एक साथ खड़े होकर  समूह चित्र खिंचवाकर सब अपनी राह पकड़ लेंगे ये आज तक कहना कठिन है क्योंकि   जो भी दल इस बैठक में आ रहे हैं उनका अपना स्वार्थ है और वे बजाय कांग्रेस या नीतीश को ताकतवर बनाने के अपनी जमीन मजबूत करना चाहेंगे। इसका प्रमाण तब मिला जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन ने कांग्रेस से नाराजगी की वजह से पटना आने से इंकार कर दिया था। ऐसे में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को नीतीश ने चेन्नई दौड़ाया । उनकी मनुहार के बाद स्टालिन आने राजी तो हो गए लेकिन कांग्रेस के प्रति उनकी नाराजगी इसलिए चौंकाने वाली है क्योंकि तमिलनाडु में दोनों का गठबंधन है । ऐसा लगता है स्टालिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा ज्यादा सीटें मांगे जाने की आशंका के कारण कांग्रेस पर अभी से दबाव बनाने की नीति पर चल रहे हैं जो की कमोबेश बाकी विपक्षी दलों की भी नीति है । लेकिन इस बैठक के पहले सबसे  ज्यादा रायता फैलाने का काम कर रही है आम आदमी पार्टी। उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने  सभी आमंत्रित दलों को चिट्ठी भेजकर ये शर्त रख दी है कि बैठक में सबसे पहले दिल्ली सरकार से ट्रांसफर - पोस्टिंग का अधिकार छीनने वाले अध्यादेश का संसद में विरोध किए जाने पर निर्णय होना चाहिए। इसे लेकर श्री केजरीवाल विभिन्न राज्यों में जा - जाकर विपक्षी नेताओं से मिल चुके हैं किंतु कांग्रेस ने उनको अब तक मिलने का समय नहीं दिया। उसके बाद वे हाल ही में राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार पर जोरदार हमला कर चुके हैं । म. प्र में भी उनकी पार्टी जोर - शोर  से मैदान में उतर रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस उनका समर्थन करेगी इसमें संदेह है। और यही बात विपक्षी एकता के प्रयासों में बाधा बन सकती है। कांग्रेस के भीतर आम आदमी पार्टी को लेकर जबरदस्त विरोध है। नीतीश जो कोशिश कर रहे हैं उसमें पहले ममता और के.सी राव बाधा थे। अब श्री केजरीवाल उस भूमिका में हैं। उनकी शर्त स्वीकार न हुई तो पटना बैठक की सफलता पर आशंका के बादल मंडराने लगेंगे। क्या होगा इसका पता तो बाद में चलेगा लेकिन इतना तय है कि आम आदमी पार्टी इस गठबंधन में झगड़े की जड़ बनी रहेगी क्योंकि उसकी नजर में बाकी सभी पार्टियां और नेता बेईमान हैं । नीतीश कुमार की मुसीबत तो ये है कि वे ख़ुद लालू के शिकंजे में फंसे हुए हैं। तेजस्वी की नजर मुख्यमंत्री पद पर लगी हुई है। विपक्ष के बाकी नेताओं के पोस्टर पटना में चिपकने से ये भी साफ है कि कोई अपनी पहिचान खोना नहीं चाहता। ये देखते हुए इस बैठक से ज्यादा उम्मीदें लगाना जल्दबाजी होगी । इसी साल होने वाले 5 राज्यों की विधानसभा के चुनावों के बाद कांग्रेस का क्या होता है उस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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