Monday 11 March 2024

ममता की एकला चलो नीति गठबंधन की मजबूती के लिए नुकसानदेह



      आख़िरकार तृणमूल कांग्रेस ने प.बंगाल में एकला चलो की नीति को अपनाते हुए सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार की घोषणा कर ही दी। शुरुआती चर्चाओं के मुताबिक ममता बैनर्जी ने कांग्रेस को 2019 में अधीररंजन चौधरी द्वारा जीती सीट के अतिरिक्त एक सीट और देने का प्रस्ताव दिया था। जबकि कांग्रेस 6 सीटें मांग रही थी। ताकि एक - दो अपने सहयोगी वामपन्थियों को दे सके। लेकिन ममता चूंकि वामपंथी खेमे को सबसे बड़ा दुश्मन मानती हैं इसलिये उन्होंने कांग्रेस की मांग को ठुकरा दिया।  

     हालांकि राहुल गाँधी सहित अन्य कांग्रेस नेता ये दोहराते रहे कि सीट बंटवारे पर उनकी तृणमूल से चर्चा जारी है किंतु  कल एक साथ सभी 42 उमीदवारों की घोषणा करने के साथ सुश्री बैनर्जी ने कांग्रेस के आशावाद पर पानी फेर दिया। यद्यपि वे प. बंगाल में सीटों के बंटवारे के प्रति अपनी अनिच्छा अनेक मर्तबा व्यक्त कर चुकी थीं फिर भी इंडिया गठबंधन के लिहाज से एक - दो सीट की उम्मीद कांग्रेस को उनसे थी। लेकिन अधीर रंजन द्वारा छोड़े गए शब्दबाणों ने खेल खराब कर दिया। उल्लेखनीय है वे खुलकर आरोप लगाते रहे कि दीदी (ममता) और मोदी के बीच गुप्त समझौता है। आग में घी का काम किया संदेशखाली कांड पर श्री चौधरी द्वारा ममता सरकार पर किये गए हमलों ने। 

     वैसे कांग्रेस के प्रति तृणमूल अध्यक्ष की नाराजगी तब ही बढ़ गई थी जब प. बंगाल में  न्याय यात्रा के प्रवेश के पूर्व उनके द्वारा किये फोन का जवाब देने की सौजन्यता तक राहुल गाँधी ने नहीं दिखाई। जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से शिकायत की तब ईमेल से आमंत्रण आया। ममता को ये अपना अपमान लगा और वे उस यात्रा से दूर ही रहीं। राहुल ने भी उस बात को गम्भीरता से नहीँ लिया और न ही किसी कांग्रेस नेता ने भी उनका गुस्सा ठण्डा करने की कोशिश  की। 

इस तरह मतभेदों की खाई चौड़ी होती गई। ममता का हौसला तब और बुलन्द हो गया जब अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को पंजाब में एक भी सीट देने से इंकार कर दिया। जबकि कांग्रेस से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 4 , हरियाणा की  1 और गुजरात की 2 लोकसभा सीटें झटक लीं। इस तरह पंजाब के बाद प. बंगाल दूसरा राज्य बन गया जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी ने इंडिया गठबंधन में शामिल रहते हुए कांग्रेस को एक भी सीट देने से इंकार कर दिया। और इसका जो कारण बताया वह ये कि कांग्रेस जीतने की स्थिति में नहीं है। उ.प्र में अखिलेश यादव ने केवल 20 फीसदी सीटें कांग्रेस को देकर 80 फीसदी अपने पास रखीं। बिहार में भी कांग्रेस , लालू प्रसाद यादव की राजद की मोहताज है। तमिलनाडु में भी कमोबेश यही हालात हैं। ऐसे में केवल महाराष्ट्र ही वह बड़ा राज्य है जहाँ कांग्रेस सहयोगी दलों से ज्यादा सीटें लड़ेगी। 

  कर्नाटक  , हिमाचल, तेलंगाना,म.प्र , राजस्थान, छत्तीसगढ़ , हरियाणा और गुजरात में कांग्रेस भाजपा की  प्रमुख प्रतिद्वंदी है लेकिन इन सभी में केवल कर्नाटक और तेलंगाना में ही पार्टी को अच्छी सीटें मिलने की आशा है। बाकी में भाजपा बहुत मजबूत स्थिति में है। ये स्थिति  कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि इंडिया का सबसे प्रमुख सदस्य होने के बावजूद क्षेत्रीय दल उसे बड़ा भाई मानने को राजी नहीं हैं। पहले आम आदमी पार्टी और अब तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ जो व्यवहार किया वह गठबंधन की मूल भावना के विरुद्ध है। 

ममता और अरविंद उन नेताओं में से हैं जो राहुल गाँधी को प्रधानमन्त्री बनाये जाने का खुलकर विरोध करते आये हैं। लेकिन कांग्रेस को पूरी तरह कमजोर करने की उनकी नीति गठबंधन के भविष्य के लिए खतरे का संकेत है। अब तक प्रधानमन्त्री का चेहरा सामने नहीं ला पाने के कारण वैसे भी इंडिया को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिल पा रहा। ऐसे में यदि सहयोगी दल एक दूसरे को निपटाने में जुट गए तो फिर चुनाव आते - आते गठबंधन में विश्वास का संकट और गहरा होता जाएगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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