Sunday 10 March 2024

कांग्रेस : जात पर न पाँत पर से जातिगत जनगणना तक



गत दिवस म.प्र के वरिष्ट कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी ने भाजपा में प्रवेश करते समय जो बातें कहीं उनमें से एक ये भी थी कि जो कांग्रेस पहले जात पर न पांत पर का नारा लगाती थी , वही अब जाति का मसला उठा रही है जिससे जातीय तनाव में वृद्धि हो रही है। उनका इशारा राहुल गाँधी द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना करवाए जाने के वायदे की तरफ था। उल्लेखनीय है गत वर्ष नवम्बर में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए उनमें भी  राहुल ने उक्त वायदा पार्टी के घोषणापत्र में रखवाया था किंतु उसका विशेष लाभ उसे नहीं मिल सका। तेलंगाना में मिली जीत का कारण भी चंद्रशेखर राव सरकार के विरोध में बने माहौल के अलावा भाजपा द्वारा त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना देना रहा।

     बिहार में जिन नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना करवाई वे खुद भाजपा के साथ आ गए। हालांकि इंडिया गठबंधन के अनेक सदस्य इसके समर्थक हैं। लेकिन ममता बैनर्जी ने अपने राज्य में जातिगत जनगणना करवाने से साफ इंकार कर दिया। श्री पचौरी जैसी सोच रखने वाले काफी लोग कांग्रेस में हैं किंतु उनमें श्री गाँधी का विरोध करने की हिम्मत नहीं है। एक जमाना था जब दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ ही उच्च जातियों के मत भी कांग्रेस को थोक के भाव मिला करते थे। लेकिन नीतिगत अस्पष्टता के कारण वे बिखरते चले गए। सवर्णों में भाजपा की पैठ बढ़ी तो अन्य पिछड़ी जातियाँ मंडलवादी पार्टियों के साथ चली गईं। बाबरी ढांचा गिरने के बाद मुसलमान भी लालू, मुलायम जैसे नेताओं के पक्ष में लामबंद हो गए। सोशल इंजीनियरिंग का बेहतर उपयोग करते हुए भाजपा ने अति पिछड़ी जातियों में सेंध लगा दी। कुल मिलाकर कांग्रेस का जातिगत जनाधार बुरी तरह डगमगा गया। धार्मिक ध्रुवीकरण भी उसके विपरीत जाने लगा। परिणामस्वरूप कुछ राज्यों को छोड़कर वह बाकी में क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू  बनने मजबूर हो चुकी है।

     ऐसे में अचानक श्री गाँधी को लगा कि जाति की राजनीति कांग्रेस को इस दुरावस्था से उबार लेगी।  इसलिए वे जाति के आधार पर अधिकारियों की संख्या और उनके विभागों के बजट जैसे मुद्दे उठाने लगे। उसी के साथ ही उन्होंने जातिगत जनगणना का राग छेड़ दिया। लेकिन वे भूल जाते हैं कि ऐसा करने से कांग्रेस का रहा - सहा आधार भी खिसक जायेगा। जिन राज्यों में आज भी वह मुख्य मुकाबले में है वहाँ उच्च जातियों का अच्छा- खासा वोट बैंक उसके साथ खड़ा नजर आता है। लेकिन वे जबसे जातिगत जनगणना का राग अलापने लगे हैं तभी से यह वर्ग भी उससे छिटकने लगा। विशेष रूप से राम मन्दिर में प्राण - प्रतिष्ठा के समारोह का बहिष्कार करने के बाद से उच्च और मध्यम वर्ग के हिन्दू मतदाताओं की बड़ी संख्या कांग्रेस से विमुख हो गई है। हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने राम मन्दिर मुद्दे पर पार्टी के रवैये से नाराज होने की बात स्वीकार की। हाल ही में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी बिना राहुल का नाम लिए टिप्पणी की कि अम्बानी  , अडानी, चौकीदार चोर है जैसे मुद्दे असरहीन हो चुके हैं। उन्होंनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किये जाने वाले व्यक्तिगत हमलों को भी आत्मघाती बताते हुए कहा कि इनसे विपक्ष का नुकसान होता है।

     लेकिन राहुल ऐसी सलाहों पर कोई ध्यान देते होते तो कांग्रेस बीते पांच साल में उबर सकती थी किंतु वह कमजोर होती जा रही है। 2019  के चुनाव में श्री गाँधी ने चौकीदार चोर और अंबानी का मुद्दा जोरशोर से उठाया था किंतु जनता ने उन्हें भाव नहीं दिया। लेकिन उसके बाद भी वे श्री मोदी और अंबानी पर निजी हमले करने से बाज नहीं आये और अब जाति के जाल में उलझकर कांग्रेस के मूल सिद्धांत को तिलांजलि देने में जुटे हुए हैं।

     उन्हें इस बात की चिंता करनी चाहिए कि न्याय यात्रा जिस राज्य से गुजरी है उसमें या तो काँग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी या इंडिया गठबंधन के साथियों ने उनसे दूरी बना ली। यदि अभी भी श्री गाँधी ने अपना रवैया नहीं बदला और तात्कालिक फायदे के लिए कांग्रेस के मूल चरित्र को नष्ट करने में जुटे रहे तो पार्टी की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। 


-रवीन्द्र वाजपेयी

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