Saturday 2 March 2024

पेट्रोल ,डीजल और रसोई गैस तो सस्ते किए ही जा सकते हैं


2023 की आखिरी तिमाही में भारत की जीडीपी द्वारा 8 फीसदी का आंकड़ा पार करने की खबर आते ही शेयर बाजार ने सर्वकालिक उच्च स्तर को छू लिया । उसी के साथ ये जानकारी भी सार्वजनिक हुई कि फरवरी में जीएसटी से 1.68 लाख करोड़ रु. की प्राप्ति हुई। जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियां भारत की विकास दर को लेकर संशय में थीं वे भी अनुमान बदलने मजबूर हो रही हैं । आर्थिक जगत में चल पड़ी चर्चाओं से पता चलता है कि इस वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि 8 फीसदी तक होने की संभावना है जो बड़ी सफलता कही जाएगी । ऐसे समय जब दुनिया रूस - यूक्रेन और इजरायल - हमास युद्ध की विभीषिका से गुजर रही हो तथा अनेक विकसित देशों का अर्थतंत्र लड़खड़ाने की स्थिति में आ गया तब भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊंची छलांग निश्चित तौर पर सुखद है। चीन की प्रगति में गिरावट आने से भारत को लेकर भी आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी थीं। सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि जापान जैसी ठोस अर्थव्यवस्था तक डगमगाने लगी है। ब्रिटेन , जर्मनी , फ्रांस सभी संकट से गुज़र रहे हैं। ऐसे में भारत का आर्थिक मोर्चे पर शानदार प्रदर्शन आशान्वित कर रहा है। अर्थव्यवस्था के जो स्थापित मानदंड हैं वे सभी बेहतर भविष्य का इशारा कर रहे हैं। उपभोक्ता बाजार में अच्छी मांग से उत्पादन इकाइयों का उत्साह बढ़ा है। निर्यात में भी निरंतर सफलता मिल रही है। गृह निर्माण के अलावा , सड़कों और फ्लायओवर का काम तेजी से चलने के कारण उद्योग - व्यवसाय को सहारा मिलने के साथ ही श्रमिकों को काम भी मिल रहा है। सड़क , रेल और वायु मार्ग से परिवहन वृद्धि की ओर है। घरेलू पर्यटन में आशातीत परिणाम बेहद सुखद संकेत हैं। प्रत्यक्ष करों का संग्रह बढ़ना आर्थिक स्थिति के ठोस होने का प्रमाण है। इसीलिए सरकार जनहित की योजनाओं पर मुक्तहस्त से खर्च करने की स्थिति में है। मुफ्त अनाज योजना को पांच साल तक के लिए बढ़ा देना ये साबित करता है कि कृषि क्षेत्र अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम है। इसी माहौल के कारण भारत दुनिया भर के निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है और दिग्गज बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में इकाई लगाने तत्पर हैं। आर्थिक सुधारों ने उद्योगों के लिए जो अनुकूल वातावरण बनाया उसके सुपरिणाम सामने हैं। वहीं कच्चे तेल के आयात से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले बोझ को कम करने की दिशा में किए गए प्रयास फलीभूत होने लगे हैं। बैटरी चलित वाहनों की बढ़ती बिक्री इसका सबूत है। वैकल्पिक ऊर्जा के तौर पर सौर ऊर्जा का बढ़ता उत्पादन अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी का काम करेगा। इतनी सारी उपलब्धियां देखकर प्रत्येक नागरिक को गौरव की अनुभूति होती है। इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर भी भारत की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बढ़ी है। लेकिन इसके बावजूद आम जनता के बड़े वर्ग के चेहरे पर मुस्कान नहीं दिखाई दे रही क्योंकि उत्साहवर्धक आंकड़ों के बावजूद उसकी जेब खाली है। जीएसटी का मासिक आंकड़ा बीते साल भर से 1.5 लाख करोड़ से ऊपर बना हुआ है। इसी तरह प्रत्यक्ष करों की आय भी उम्मीद से ज्यादा है ।लेकिन जीएसटी की दरों के साथ ही पेट्रोल - डीजल और रसोई गैस की ऊंची कीमतें विरोधाभासी तस्वीर पेश करती हैं। सरकार में बैठे लोगों का कहना है कि गरीब कल्याण की योजनाएं और कार्यक्रमों तो पर वह दिल खोलकर खर्च कर रही है। उसकी इस नीति पर किसी को एतराज नहीं है किंतु अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने वाले नौकरपेशा, मध्यम श्रेणी व्यापारी , लघु उद्योग संचालक और स्वरोजगार से आजीविका चलाने वालों की अपेक्षाओं और आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि अर्थव्यवस्था की स्थिति मजबूत है तब जीएसटी की दरों को कम करने के साथ ही उसके केवल दो स्तर अर्थात 5 और 12 प्रतिशत ही रखे जाएं। रही बात पेट्रोल - डीजल की तो इनकी कीमतें बेशक वैश्विक स्तर पर तय होती हैं । लेकिन पेट्रोलियम कंपनियों द्वारा बीते कुछ समय से अनाप - शनाप मुनाफा अर्जित किए जाने के बाद भी दाम नहीं घटाए जाने से आम जनता नाखुश है। यद्यपि लोकसभा चुनाव नजदीक होने के कारण केंद्र सरकार जीएसटी संबंधी नीतिगत फैसले नहीं ले सकती क्योंकि उसकी कौंसिल में राज्य भी हैं जो अपनी आय का हवाला देते हुए न तो दरें कम करने राजी होते हैं और न ही पेट्रोलियम पदार्थों को उसके अंतर्गत लाने पर सहमति देते हैं । फिर भी पेट्रोल - डीजल और रसोई गैस सस्ते करना तो सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही है। और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के पहले तो ऐसा किया ही जा सकता है। 

 -रवीन्द्र वाजपेयी 

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