Saturday 9 March 2024

चुनाव पूर्व ही विपक्ष के हौसले पस्त करने की रणनीति पर चल रही भाजपा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति के बेहद चतुर खिलाड़ी हैं। रास्वसंघ के प्रचारक के बाद भाजपा में संगठन का काम करते हुए वे जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब वे विधायक तक नहीं थे। इसलिए सत्ता  संचालन की उनकी क्षमता को लेकर सवाल उठते रहे। लेकिन जल्द ही उन्होंने साबित कर दिखाया कि वे कुशल प्रशासक भी हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए ही वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आकर्षण का केंद्र बन गए थे। इसीलिए जब भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया तब जनता में उसकी अनुकूल प्रतिक्रिया हुई जिसका प्रमाण 2014 के लोकसभा चुनाव में मिला। प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी कार्यशैली ने देश और दुनिया को प्रभावित किया और वे 2019 में और भी ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में लौटे। बीते पांच वर्ष में उन्होंने अनेक ऐसे काम कर डाले जिनकी वजह से वे एक मजबूत नेता के तौर पर छाए हुए हैं। ये कहना कतई गलत न होगा कि वे  समकालीन विश्व के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेताओं में से हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी जीत में  किसी को संदेह नहीं है। अब तक  सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सत्ता में उनकी वापसी की  संभावना व्यक्त कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी बहस का मुद्दा  यह है कि भाजपा को 370 और एनडीए को 400 सीटें मिलेंगी अथवा नहीं ? स्मरणीय है खुद प्रधानमंत्री ने इस आंकड़े को सार्वजनिक विमर्श का विषय बनवा दिया। लेकिन ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि जब प्रधानमंत्री 370 और 400 पार का नारा बुलंद करते हुए आत्मविश्वास से भरे हुए हैं तब भाजपा दूसरे दलों के नेताओं को क्यों शामिल कर रही है? और  छोटे - छोटे दलों से गठबंधन की उसे क्या जरूरत है ? उल्लेखनीय है नीतीश कुमार के साथ ही भाजपा ने जयंत चौधरी को भी एनडीए में  शामिल कर  इंडिया गठबंधन को जबरदस्त धक्का दिया। उसके बाद भी भाजपा  सहयोगियों की संख्या बढ़ाने में जुटी हुई है । ओडीसा में बीजद और आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम से बातचीत इसका प्रमाण है। तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक को दोबारा साथ लाने के प्रयास भी चल रहे हैं। ऐसे ही पंजाब में अकालियों से गठजोड़ की बिसात बिछ गई है।  दूसरे दलों से नेताओं को भी भाजपा में लाने का अभियान चल रहा है। आज म.प्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व विधायक संजय शुक्ला और पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी सहित अनेक छोटे बड़े नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ले ली। ऐसी ही खबरें अन्य राज्यों से भी लगातार आ रही हैं। ये तंज भी सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते - लगाते पार्टी कांग्रेस युक्त भाजपा हुई जा रही है। लेकिन क्या अन्य पार्टियां अपने यहां आने वाले को अपनी सदस्यता देने से इंकार कर रही  रही हैं ? कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार कांग्रेस में आ गए जिन्हें टिकिट भी मिला। हाल ही में वे भाजपा में लौट आये। म.प्र में भी भाजपा के सस्थापक सदस्य पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक  कांग्रेस में आकर चुनाव लड़े। कहने का आशय ये कि विचारधारा तो कोई मुद्दा रहा नहीं।  आजादी के बाद नेहरु जी ने भी प्रजा समाजवादी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को कांग्रेस में शामिल करने का अभियान चलाया था। प्रधानमंत्री चूंकि चुनावी लड़ाई के सिद्धहस्त खिलाड़ी हैं इसलिये  वे कांग्रेस सहित अन्य विपक्षियों का मनोबल कमजोर करने की नीति पर चल रहे हैं। इसी के अंतर्गत शिवसेना और एनसीपी में विभाजन हुआ। इंडिया गठबंधन में भी कांग्रेस  आम आदमी पार्टी जैसे दल के साथ है जो दिल्ली और पंजाब में उसकी बर्बादी का कारण बनी। महाराष्ट्र में भी घोर हिंदूवादी नेता उद्धव ठाकरे को उसने साथ रखा है। इसी तरह श्री ठाकरे उस कांग्रेस की गोद में बैठे हुए हैं जो वीर सावरकर की देशभक्ति  पर सवाल उठाती है। अरविंद केजरीवाल से जब एक पत्रकार ने सवाल किया कि देश के जिन भ्रष्टतम नेताओं की सूची उनके द्वारा जारी की गई थी उनमें से अनेक इंडिया गठबंधन में उनके साथ हैं। तब वे बोले कि मोदी और शाह को सत्ता से हटाने ऐसा करना आवश्यक है। उनका यह उत्तर वर्तमान राजनीतिक शैली और संस्कृति का सही चित्र है। सही बात ये है कि इंडिया गठबंधन का मकसद केवल केंद्र की सत्ता से भाजपा को बेदखल करना है। शुरुआती दौर में वह भाजपा पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में सफल भी दिखाई दिया। मोदी विरोधी मीडिया को भी उसकी जीत सुनिश्चित लगने लगी किंतु भाजपा ने उस संभावना को कमजोर करते हुए उल्टा दबाव बना दिया। एनडीए का कुनबा  बढ़ाकर और कांग्रेस में लगातार सेंध लगाकर वह विपक्ष के हौसले पस्त करने में जुटी हुई है। और उसका प्रयास कामयाब होता भी दिख रहा है। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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