Wednesday 1 March 2023

सिसौदिया दोषी निकले तो केजरीवाल भी नहीं बचने वाले



मनीष सिसौदिया को जमानत मिलेगी या वे लम्बे समय तक  सीबीआई की गिरफ्त में रहेंगे ये सवाल फ़िलहाल अनिश्चितता के घेरे में है | दिल्ली के  घटनाक्रम  पर नजर रख रहे राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सीबीआई ने श्री सिसौदिया के विरुद्ध काफ़ी दस्तावेज जुटाए हैं और ये भी कि अभी उन पर ईडी द्वारा भी शिकंजा कसा  जायेगा | गत दिवस जैसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने  जमानत देने से इंकार करते हुए उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी उसके बाद ही देर शाम उपमुख्यमंत्री के साथ ही बीते 9 महीनों से जेल में बंद मंत्री सत्येन्द्र जैन का इस्तीफा स्वीकार किये जाने की खबर आ गई | कहा जा रहा है कि दोनों ही इस्तीफे मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के पास पहले से ही रखे थे  | ऐसे में ये सवाल स्वाभाविक  रूप से उठ खड़ा हुआ कि गत वर्ष 30 मई को गिरफ्तार किये गए मंत्री श्री जैन से त्यागपत्र अब तक क्यों नहीं  दिलवाया गया जबकि  श्री सिसौदिया को गिरफ्तारी के दो दिन बाद ही मंत्री पद  छोड़ना पड़ गया | इसके पीछे जो कारण बताया जा रहा है वह ये कि श्री जैन के पास जो विभाग थे वे भी श्री सिसौदिया को दिए जाने के बाद वे 18 विभागों को  देख रहे थे | उनके गिरफ्तार होने के बाद केजरीवाल मंत्रीमंडल में केवल 4 सदस्य बचे जिससे सरकार का कार्य प्रभावित होने लगा | नियमानुसार केवल 6 मंत्री ही हो सकते हैं | ऐसे में त्यागपत्र देने वाले मंत्रियों की जगह दो नए मंत्री बनाकर काम चलाया जायेगा | लेकिन इस सबके कारण न  सिर्फ मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल बल्कि आम आदमी पार्टी की साख को भी बड़ा धक्का लगा है | कहाँ तो पंजाब में सरकार बनाने के बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर अपने पैर जमाने की कार्ययोजना पर आगे बढ़ रही थी और कहाँ दिल्ली और पंजाब दोनों में उसकी  साख और क्षमता सवालों के घेरे में आ गयी  है | भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना  हजारे के लोकपाल आन्दोलन की कोख से जन्मी आम आदमी पार्टी का उदय जिस शानदार अंदाज में हुआ वह किसी आश्चर्य से कम न था | 2014 की मोदी लहर को महज एक साल के भीतर केजरीवाल के करिश्मे ने रोका वह मामूली बात नहीं थी | हालाँकि  नगर निगम चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कुछ ख़ास न कर पाई लेकिन उसके बाद विधानसभा चुनाव और हाल ही में हुए नगर निगम के चुनाव में मिली जीत ने  दिल्ली को आम आदमी पार्टी का अभेद्य दुर्ग बना दिया | लेकिन ये बात भी सही है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगातार केजरीवाल सरकार पर लगते रहे | उसी के साथ अब पंजाब सरकार के राज में जिस तरह से खालिस्तान समर्थक उग्रवादी तत्व सिर उठाने लगे हैं  उससे भी पार्टी की छवि और क्षमता पर संदेह बढ़ने लगा है | राजनीति के जानकारों के अनुसार श्री केजरीवाल राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी  में वही सब करने पर मजबूर हो गये हैं जो अन्य राजनीतिक दल करते  हैं | इसी वजह से पार्टी  के संस्थापकों में से  अनेक उनका साथ छोडकर जा चुके हैं | केवल श्री सिसौदिया ही एक चेहरा हैं जो उनके विकल्प कहें या विश्वासपात्र के रूप में जाने जाते थे और बतौर शिक्षा मंत्री उन्होंने दिल्ली में सरकारी  शालाओं का जिस तरह से गुणवत्तापूर्ण उन्नयन किया उसकी देश के बाहर भी प्रशंसा हुई | मुख्यमंत्री एवं संजय सिंह जैसे नेताओं की तुलना में मनीष काफी शांत नजर आते हैं | ऐसे में सवाल है कि अपने पास कोई मंत्रालय न रखने का जो निर्णय श्री केजरीवाल ने लिया  उसके पीछे शायद  अपनी छवि बनाये रखते हुए मुसीबत आने पर अपने साथियों की बलि चढ़ा देने की सोच ही रही होगी | आम आदमी पार्टी को महीनों से  ये अंदेशा था कि सीबीआई उपमुख्यमंत्री के गिरेबान पर हाथ डालेगी | खुद मनीष भी इस बात को सार्वजानिक तौर पर कह चुके थे | जिस आबकारी नीति को लेकर ये बवाल हुआ यदि वह सही थी तब केजरीवाल सरकार  ने उसे वापिस क्यों लिया इस प्रश्न का कोई जवाब न दिया जाना सरकार के अपराध बोध का ही परिचायक था | आम आदमी पार्टी को श्री  सिसौदिया की गिरफ्तारी पर यूँ तो विपक्षी दलों की तरफ से जोरदार  समर्थन मिला लेकिन कांग्रेस इस मामले में भी दुविधा का शिकार होकर विभाजित हो गयी | राहुल गांधी तो लंदन में हैं किन्तु अशोक गहलोत , शशि थरूर ने जहां  केंद्र सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाया वहीं दिल्ली की अलका लाम्बा और अजय माकन ने इसे भ्रष्टाचार का मामला बताते हुए आम आदमी पार्टी की तीखी आलोचना कर डाली | इस मामले के बाद अरविन्द केजरीवाल की एकला चलो नीति को भी धक्का लग सकता है और बड़ी बात नहीं उनको अपनी ईमानदारी का अहंकार छोड़कर उन्हीं दलों और नेताओं के साथ गठबंधन करना पड़ जाए जो उनके द्वारा जारी भ्रष्ट नेताओं की सूची में शामिल थे | बहरहाल आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल के लिए मौजूदा स्थिति बहुत ही कठिन है | यदि मनीष भी सत्येन्द्र की तरह लम्बे समय तक हिरासत में रहे तब इस्तीफ़े का दबाव अरविन्द पर भी पड़ेगा | दिल्ली में ये चर्चा भी है कि मुख्यमंत्री स्वयं श्री सिसौदिया से छुटकारा पाना चाहते थे | सच्चाई जो भी हो लेकिन इस घटनाचक्र से  मुख्यमंत्री चाहकर भी  भी पाक - साफ़ नहीं निकल सकेंगे क्योंकि श्री सिसौदिया ने भ्रष्टाचार किया हो और श्री केजरीवाल को उसका पता न चले ये कोई नहीं मानेगा | और ऐसे में यदि सीबीआई के आरोप सही प्रमाणित  हो गये तब आम आदमी पार्टी के लिए वह डूब मरने वाली बात होगी | इससे ये विश्वास और प्रबल हो जाएगा कि आन्दोलन से निकली पार्टियाँ आख़िरकार अपने ही अंतर्विरोधों में फंसकर पतन के रास्ते पर चली जाती हैं | वैसे अब तक अन्ना  हजारे का मौन रहना भी चौंकाने वाला है |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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