Monday 6 March 2023

पूर्वी भारत से मजदूरों का पलायन आखिर कब तक ?



तमिलनाडु के राजनेता सदैव संघीय  ढांचे का राग अलापते हुए अपने राज्य के हितों की  उपेक्षा करने का आरोप लगाते हैं | हिन्दी का विरोध इस राज्य की सभी क्षेत्रीय पार्टियों का सबसे बड़ा हथियार है | आधी सदी से भी ज्यादा दक्षिण का यह राज्य हिन्दी विरोध का गढ़ बन हुआ है | नौबत यहाँ तक आ गई कि गत वर्ष केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सरकारी कामकाज में हिन्दी का उपयोग बढ़ाये जाने संबंधी बयान  पर द्रमुक सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डी. राजा ने यहाँ तक कह दिया कि  हिन्दी लादने की कोशिश किये  जाने पर उनका राज्य भारत संघ से अलग होने के बारे में सोच सकता है | इस बारे में याद रखने वाली बात है कि श्रीलंका में  तमिल उग्रवाद को द्रमुक का समर्थन था | और जिस तमिल इलम( देश ) की मांग श्रीलंका में लिट्टे नामक आतंकवादी संगठन कर रहा था उसमें तमिलनाडु भी शामिल था | वर्तमान मुख्यमंत्री स्टालिन के पिता स्व. करूणानिधि लिट्टे के समर्थक थे और इसीलिये राजीव गांधी की हत्या के बाद उनकी  सरकार बर्खास्त कर दी गई | वैसे आजकल कांग्रेस और द्रमुक का गठबंधन चल रहा है | हाल ही में स्टालिन के जन्मदिन पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के अलावा डा. फारुख अब्दुल्ला , तेजस्वी यादव और  अखिलेश यादव ने चेन्नई पहुंचकर 2024 में भाजपा के विरोध में गठबंधन बनाने की मुहिम शुरू की | लेकिन उसके बाद राज्य से बिहारी कामगारों के साथ मारपीट करते हुए वापस जाने का दबाव बनाये जाने की खबरें आने से तेजस्वी यादव और उनके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बिहार की जनता को जवाब देना मुश्किल  हो गया | विधानसभा में तेजस्वी ने उन  खबरों को अफवाह बताकर आग में घी डाल दिया | विपक्ष के जबरदस्त दबाव और समाचार माध्यमों में बिहारी श्रमिकों के साथ  मारपीट के सचित्र समाचार आने के  बाद नीतीश सरकार ने सचिव स्तर के अधिकारी वास्तविकता का पता लगाने चेन्नई रवाना भी किये | उधर तमिलनाडु के श्रम मंत्री तथा गृह सचिव ने बिहारी मजदूरों की सुरक्षा का आश्वासन देते हुए उनसे वापस न जाने की अपील भी की | लेकिन जिस बड़ी संख्या में तमिलनाडु में रोजी रोटी कमाने गए श्रमिक अपनी गृहस्थी का सामान बेचकर अपने गाँव लौटे उसके बाद स्टालिन  सरकार के तमाम दावे असत्य साबित हो गए | उल्लेखनीय है तमिलनाडु के कारखानों में बिहार के कामगार बड़ी संख्या में बरसों से कार्यरत हैं | अचानक उनके प्रति स्थानीय लोगों का गुस्सा क्यों पनपा ये वाकई जाँच का विषय है | जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार मजदूरों को हिन्दी में बात करने पर पीटा जा रहा है | उनसे पूछा जाता है कि हिन्दी हो और हाँ कहने पर दुर्व्यवहार के साथ पिटाई की जाती है | ये भी कहा जाता है कि  अपने घर लौट जाओ क्योंकि तुम्हारे कारण हमारा रोजगार छिन रहा है |  इस बारे मे ये जानकारी भी मिली कि तमिलनाडु के युवकों के बीच ये धारणा फैलाई जा रही है कि उत्तर भारत से आने वाले श्रमिक वहां के कारखानों में कम मजदूरी पर भी ज्यादा काम करते हैं इसलिए उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है जिससे स्थानीय लोगों को बेरोजगारी का सामान करना पड़ रहा है | लेकिन इसी के साथ ये भी  पता चला है कि टेक्सटाइल उद्योग के बड़े गढ़ सिरपुर के कारखाना मालिक बिहारी मजदूरों को पलायन से रोक रहे हैं क्योंकि बीते कुछ दिनों में ही हजारों की संख्या में उनके लौट जाने से अनेक कारखाने बंद होने की स्थिति में आ गए और बाकी में उत्पादन घट गया | इस बारे में चिंता की बात ये है कि तमिलनाडु से उठी ये भावना यदि पड़ोसी कर्नाटक , केरल , आन्ध्र और तेलंगाना में भी फैली तब उत्तर भारतीय मजदूरों के सामने तो संकट  आयेगा ही उत्तर और  दक्षिण के बीच वैमनस्य का भाव उत्पन्न होगा जिसके दूरगामी नतीजे घातक होंगे | महाराष्ट्र में भी लम्बे समय तक ऐसा ही माहौल रहा और उत्तर भारतीयों के साथ  मारपीट की घटनाएँ होती रहीं | हालांकि तमिलनाडु में जो हो रहा है उसके पीछे हिन्दी को मुद्दा बनाये जाने से लगता है कि कोई न कोई राजनीतिक दल या नेता इस बवाल के पीछे है | लेकिन ये स्थिति बिहार और उ.प्र के लिए भी विचारणीय विषय होना चाहिए | सवाल ये नहीं है कि आज वहां किसकी सरकार है , बल्कि ये कि इन राज्यों से श्रमिकों का पलायन आखिर होता क्यों है ? इस बारे में जान लेना जरूरी है कि ब्रिटिश राज में मॉरीशस और फिजी के साथ ही कैरीबियन देशों में हजारों की संख्या में जो भारतीय मजदूर ले जाये गए थे उनमें से अधिकतर पूर्वी उ.प्र और बिहार के ही थे | उक्त देशों की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा आज भी उन्हीं भारतीय मजदूरों के वंशजों का  हैं जो  हिन्दू नामों के साथ ही हिन्दू धर्म और संस्कृति का पालन करते हैं | कुछ तो वहां के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन गये | इससे स्पष्ट है कि उत्तर भारत के उक्त हिस्सों से श्रमिकों का पलायन नई बात नहीं है | लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी पूर्वी भारत में ये शर्मनाक स्थिति क्यों है ये केवल इन राज्यों के लिए नहीं अपितु पूरे देश के लिए विचारणीय प्रश्न है | छत्तीसगढ़ और म.प्र के बुंदेलखंड से भी श्रमिक अन्य राज्यों में ले जाये जाते हैं | पंजाब और कश्मीर में जब आतंकवाद चरम पर था तब भी वहां उक्त राज्यों से श्रमिक जाकर काम करते थे | इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि ये राज्य अपने मजदूरों को काम देने में विफल रहे हैं | हालाँकि विकास के दावे तो आजकल रोजाना सुनने मिलते हैं किन्तु उनके बाद भी कोई व्यक्ति रोजी रोटी की खातिर  अपना घर छोड़कर ऐसे स्थानों पर जाता है जहां की भाषा और खानपान सर्वथा भिन्न है तब उसकी मजबूरी समझी जा सकती है | तमिलनाडु में जो हो रहा है या अतीत में महाराष्ट्र में जो होता रहा उसकी कोई भी समझदार व्यक्ति प्रशंसा नहीं करेगा परन्तु ये भी स्वीकार करना होगा कि देश में विकास संबंधी विषमता के कारण ही इस तरह का पलायन और फिर संघर्ष की  स्थिति बन जाती है | हो सकता है तमिलनाड़ु में हालात फिर सामान्य हो जाएँ किन्तु समय आ गया है जब पिछड़े राज्यों के लोगों को वहीं रोजगार देने की व्यवस्था की जावे | आखिर  जब इन राज्यों  के नेताओं का पिछड़ापन दूर हो सकता है तो जनता का क्यों नहीं ?


रवीन्द्र वाजपेयी 

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