ऐसा लगता है गौतम अडानी के स्वामित्व वाले अडानी समूह पर अमेरिका के हिंडनबर्ग नामक संस्थान द्वारा जारी रिपोर्ट के बाद उठा तूफ़ान कमजोर पड़ रहा है | भले ही कांग्रेस कुछ विपक्षी दलों के साथ इस मुद्दे को संसद और उसके बाहर गर्म रखने की कोशिश कर रही हैं लेकिन शेयर बाजार से आ रही खबरों से ये लगने लगा है कि अडानी समूह कुछ समय तक लड़खड़ाने के बाद अब संभलने लगा है | जब उक्त रिपोर्ट के आने के बाद पूरी दुनिया में इस समूह के शेयर औंधे मुंह गिर रहे थे तब भी गौतम ने ये भरोसा जताया था कि उनके पास उपलब्ध नगदी के बल पर वे इस संकट से निकल आयेंगे और निवेशकों का भरोसा पुनः जीत लेंगे | शुरुआत में लगा , वे झूठा दिलासा दे रहे हैं लेकिन इस समूह द्वारा अपने कुछ कर्जों का समय पूर्व भुगतान किये जाते ही उसकी साख लौटने लगी और वैश्विक क्रेडिट एजेंसियों ने अडानी की कंपनियों के बारे में जारी किये गए नकारात्मक निर्देशों को वापस लेना शुरू कर दिया | यही नहीं तो एक अप्रवासी भारतीय ने अडानी की कंपनियों में अरबों रूपये का निवेश करते हुए पूंजी बाजार में इस समूह को जबर्दस्त सहारा दिया | और फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गयी जांच समिति का जिस प्रकार गौतम ने स्वागत किया उससे भी शेयर बाजार में उनके प्रति विश्वास लौटने लगा | हालाँकि अभी भी अडानी समूह हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पहले वाली हैसियत से काफी पीछे है लेकिन गौतम दुनिया के धनाढ्यों की सूची में धरातल से उठकर खड़े होने की स्थिति में पहुँच रहे हैं | जो किसी चमत्कार से कम नहीं है | सबसे बड़ी बात ये हुई कि कांग्रेस की अडानी विरोधी मुहिम को न तो पूरे विपक्ष ने सहयोग दिया और न ही उद्योग जगत ने | आर्थिक जगत के विशेषज्ञ भी इसे बाजार की उठापटक मानकर संयम रखने की सलाह देने लगे | दरअसल हिंडनबर्ग की छवि भी विघ्नसंतोषी की है | इसलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अडानी समूह ने जल्दी ही वापसी कर ली | विभिन्न देशों में समूह द्वारा निवेशकों के बीच किए गए रोड शो का भी सकारात्मक प्रभाव देखने मिल रहा है | भारतीय स्टेट बैंक और जीवन बीमा निगम द्वारा इस समूह में किये निवेश के कारण उनके डूब जाने की आशंका समय के साथ गलत साबित होने से भी अडानी विरोधी अभियान पहले जैसा दमदार नहीं रहा | शायद यही वजह है कि काग्रेस द्वारा संसद के सत्र के दौरान अडानी मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश पहले जैसी सफल नहीं दिख रही | ममता बैनर्जी तो पहले से ही दूर थीं और अब विपक्ष के बड़े चेहरे शरद पवार भी अलग खड़े नजर आ रहे हैं | इस बारे में उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए ज्यादा समय अडानी समूह पर ही खर्च किया और वे इस बात को ही उछालते रहे कि प्रधानमंत्री के समर्थन से ही गौतम अडानी को बड़ी व्यावसायिक सफलताएँ हासिल हुईं | उस भाषण से कांग्रेस काफ़ी उत्साहित थी और जब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में श्री गांधी द्वारा उन पर लगाये गए आरोपों का जिक्र तक नहीं किया तब कांग्रेस ने इसे श्री गांधी की जीत बताकर जश्न मनाया | मोदी विरोधी यू ट्यूब चैनलों ने भी प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर खूब हल्ला किया | लेकिन संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होते तक यह मुद्दा स्वाभाविक तौर पर थका नजर आने लगा | बची खुची कसर पूरी कर दी अमेरिका के दो बैंकों के डूब जाने ने | उसके बाद ये पूछा जाने लगा कि हजारों मील दूर बैठकर अडानी समूह के खाता बहियों की छानबीन करने वाले हिंडनबर्ग को अपने देश के ही बैंकों की गंभीर स्थिति की भनक तक नहीं लगी | भारत में अभी तक अडानी समूह में निवेश करने वाले बैंकों पर इस तरह का खतरा नहीं आने से भी हिंडनबर्ग रिपोर्ट की गंभीरता में कमी आई | अडानी समूह की तमाम कम्पनियों के शेयर जनवरी और फरवरी में आये गिरावट के दौर से उबरकर फिर से प्रतिस्पर्धा में चूंकि लौट आये हैं इसलिए अब गौतम अडानी एक बार फिर से दुनिया के रईसों की सूची में धीरे – धीरे ऊपर आ रहे हैं | यद्यपि पुरानी स्थिति में लौटने में कितना समय लगेगा ये बता पाना कठिन है लेकिन समूह के दिवालिया होने और निवेशकों का पैसा डूब जाने जैसी शंकाएं हवा हवाई होकर रह गईं | इसीलिये कांग्रेस के साथ खड़े विपक्षी दलों के स्वर धीमे पड़ने लगे हैं | मल्लिकार्जुन खडगे द्वारा बुलाई जाने वाली बैठकों में भी दर्जन भर विपक्षी पार्टियाँ आने से परहेज कर रही हैं | इस वजह से अडानी मुद्दा विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र बनेगा इसकी सम्भावना लगातार घट रही हैं | पूंजी बाजार के जानकार बता रहे हैं कि आगामी दो महीनों के भीतर गौतम अडानी फिर बड़े खिलाड़ी के तौर पर नजर आयेंगे | उनकी सबसे बड़ी सफलता ये रही कि उद्योग जगत ने उन्हें अपना मौन समर्थन दिया | आनंद महिंद्रा ने तो खुलकर उनकी तरफदारी की | कुछ लोग तो ये कहते सुने गए कि यदि राहुल बजाज जीवित होते तो अडानी के पक्ष में सबसे ऊंची आवाज में वे ही बोलते | बहरहाल जहां तक इस मुद्दे पर हुई राजनीति का सवाल है तो ऐसा लग रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय श्री गांधी द्वारा उठाये गए राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी का मुद्दा जिस तरह मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सका ठीक वही हश्र इस मुद्दे का होता लग रहा है | ये देखते हुए श्री गांधी और कांग्रेस को किसी नए मुद्दे की तलाश शुरू कर देनी चाहिए |
रवीन्द्र वाजपेयी
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