Thursday 23 March 2023

परिवार के सदस्य की छवि शिवराज की सबसे बड़ी शक्ति



म. प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीन वर्ष पूर्व जब पुनः सत्ता में आए तब देश बहुत ही विषम परिस्थितियों से घिर चुका था। कोरोना के  कदम देहलीज पार कर घर के भीतर आने लगे थे । साधारण बोलचाल में इसे सिर मुंढ़ाते ही ओले पड़ना कहा जाता है। देखते - देखते एक सदी के बाद आई आपदा ने देश और प्रदेश ही नहीं समूचे विश्व को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया। 25 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री ने राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन लागू कर दिया। जनता घरों में बंद हो गई, बाजारों में सन्नाटा पसर गया। सर्वत्र एक अदृश्य भय व्याप्त था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या होने वाला है और लॉक डाउन कब तक चलेगा। ऐसे हालातों में 15 महीने सरकार से बाहर रहने के बाद श्री चौहान को अचानक सत्ता संचालन का अवसर मिलना बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ने से भी कठिन चुनौती थी। लेकिन  जनता के साथ सीधे जुड़ाव के कारण उन्होंने बिना समय गंवाए शासन और प्रशासन को आपदा से निपटने के लिए तैयार किया , जिसके आगे का घटनाक्रम सर्वविदित है। ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि उन परिस्थितियों में यदि कोई और मुख्यमंत्री होता तब उस आपदा के समय सरकार , अपने दायित्वों का निर्वहन उस कुशलता ने न कर पाती। मुश्किल हालातों में भी धैर्य बनाए रखते हुए सत्ता का संचालन करने की विलक्षण क्षमता शायद  दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण उनमें नैसर्गिक तौर पर है। कोरोना के पूर्व  जब वे लगातार सत्ता में रहे तब भी उनके स्वभाव की सरलता और लोकाचार में सहजता ,  जनता के बीच  पैठ बनाने में सहायक साबित हुई। महिलाओं और बालिकाओं के उत्थान हेतु उन्होंने जो कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं उन्हें राजनीतिक विरोध के बावजूद अनेक राज्य सरकारों ने अपनाया जो बड़ी बात है। जनता के बीच अपनी मामा छवि की वजह से वे बजाय मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्य के तौर पर लोकप्रिय हो गए। प्रदेश के घर - घर में लोग उनको इसी संबोधन से जानते हैं। शिवराज की सफलता में लगातार परिश्रम करते रहना भी बड़ा कारण है। भोपाल की सुविधाजनक जिंदगी छोड़ तकरीबन रोज सुबह उठकर प्रदेश के किसी भी अंचल में पहुंचकर जनता की समस्याओं का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हुए उनका तत्काल समाधान करने की कार्यशैली के कारण ही वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में शुमार किए जाते हैं। डेढ़ दशक से भी अधिक से सत्ता में रहने के बाद भी श्री चौहान विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं। सत्ता का अहंकार उनको छू भी नहीं गया है। अपनी पार्टी के अलावा विपक्ष के साथ भी व्यवहार में किसी भी प्रकार की कटुता उनके  मन में नहीं दिखाई देती। इसीलिए वे बदले की राजनीति से परे रहकर शांत भाव से कार्य करते रहते हैं। लेकिन प्रशासनिक दृढ़ता के मामले में भी शिवराज एक उदाहरण हैं। हर समय केवल कार्य में डूबे रहने की उनकी आदत के कारण ही म.प्र आज बीमारू राज्य के कलंक को धोते हुए तेजी से विकास की ओर बढ़ता जा रहा है। 2003 में बिजली , पानी और सड़क के जिन  मुद्दों पर दिग्विजय सरकार को जनता ने नकार दिया था , वे अतीत के विषय बन चुके हैं। प्रदेश के हर कोने में बिजली की उपलब्धता है। किसान को सिंचाई के लिए जितनी बिजली श्री चौहान के कार्यकाल में दी जा रही है वह कीर्तिमान है। सड़कों के मामले में भी चमत्कारिक सुधार सर्वत्र नजर आता है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रकल्पों को तेजी से स्वीकृत  करते हुए उन्हें समय पर पूरा करने पर उनका ध्यान रहने से म.प्र की तस्वीर ही बदल गई है। सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति शिवराज के राज में देखी जा सकती है। सामाजिक कल्याण की अनेकानेक योजनाएं उनकी संवेदनशीलता का प्रमाण हैं। हाल ही में हुई ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिस तत्परता से उन्होंने कदम उठाए वह इस बात को साबित करता है  कि श्री चौहान का जमीन से जुड़ाव कितना गहरा है। प्रदेश की जनता के मन में  परिवार के  सदस्य वाली  छवि ही श्री चौहान की सबसे बड़ी शक्ति है । आज के दौर में  किसी राजनेता के लिए जनता से ऐसी आत्मीयता हासिल करना बेहद कठिन होता जा रहा है , लेकिन श्री चौहान ने इस अवधारणा को ध्वस्त कर दिया है। बीते तीन साल में उनकी कार्यशैली में जो परिपक्वता नजर आने लगी है उसी के परिणामस्वरूप म.प्र निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में भी आशातीत प्रगति शिवराज की सफलता का प्रमाण है। लेकिन कृषि के क्षेत्र में प्रदेश को पंजाब और हरियाणा के मुकाबले खड़ा करने के बाद उनसे आगे निकलने की जो कामयाबी मिली उसके लिए श्री चौहान वाकई अभिनंदन के हकदार हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा  एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में प्रारंभ हुई लेकिन अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और मूल्यों में  अखंड आस्था के कारण वे बिना विचलित  हुए निरंतर कर्तव्य पथ पर गतिमान  हैं। इस वर्ष म. प्र में विधानसभा चुनाव होंगे । और ये निश्चित है कि वे ही अपनी पार्टी के सेनापति की भूमिका में रहेंगे। उनका अनुभव और परिश्रमी प्रवृत्ति उनकी भावी सफलताओं का संकेत दे रही है। 

रवीन्द्र वाजपेयी
संपादक, मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस, जबलपुर

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