Tuesday 14 March 2023

ऑस्कर के लिए लॉबिंग करने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी




भारत को कल दो ऑस्कर अवार्ड मिलने से देश में खुशी है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं  बल्कि विपक्ष ने भी विजेताओं को बधाई दी है | फिल्म उद्योग से जुड़े लोग तो इस उपलब्धि से फूले नहीं समा रहे और इसे दुनिया भर  में भारतीय फिल्म उद्योग के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण मान रहे हैं | इसके पहले भी  भारत को कुछ श्रेणियों में ऑस्कर अवार्ड मिल चुके थे जिनमें संगीतकार ए.आर रहमान द्वारा बनाया गया गीत जय हो भी शामिल है | 2009 में भारत में बनी स्लमडाग मिलिओनायर फिल्म के उक्त गीत ने जब ऑस्कर जीता तब भी देश खुश हुआ था | गत दिवस भी प्रमुख अवार्ड नाटू नाटू गीत को मिला |  वहीं दूसरा एक वृत्त चित्र एलीफेंट व्हिसपर्स को | ऑस्कर निश्चित रूप से विश्व सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है | फिल्म जगत इसे नोबल से कम नहीं मानता | फिल्म निर्माण कला और अभिव्यक्ति के साथ मनोरंजन का भी  प्रभावशाली माध्यम रहा है | संचार क्रांति के उद्भव के बाद भले ही टाकीज में जाकर फिल्म देखने का चलन कम हो रहा हो क्योंकि टेलीविजन , कम्प्यूटर और मोबाईल फोन के कारण अब मनोरंजन की विधा ही बदल गयी है | परिवार के साथ सिनेमा देखने की बजाय अब वह निजी शौक में बदल गया है | ओटीटी के उदय ने लघु  फिल्मों का नया दौर शुरू कर दिया जिसने फिल्म निर्माण की पूरी संस्कृति ही परिवर्तित कर डाली | इसके कारण सितारा हैसियत और बॉक्स ऑफिस जैसी बातें महत्वहीन होने लगी हैं | सिल्वर जुबली और गोल्डन जुबली जैसे  शब्द भी कम ही सुनाई देने लगे हैं | अनेक फिल्में तो  बिना सिनेमा हॉल में दिखाए ही करोड़ों का व्यवसाय कर लेती हैं | कथानक , अभिनय संगीत से ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाने लगा है कि फिल्म ने कमाई कितनी  की | कम लागत में बनने वाली कुछ फिल्मों ने भी कमाई के कीर्तिमान बना डाले | इतना सब बदल जाने के बाद भी ऑस्कर अवार्ड की महत्ता कायम है और हर फिल्मकार के मन में उसे हासिल करने की इच्छा रहती है | इसके लिए बाकायदा महीनों अमेरिका में रूककर लॉबिंग करनी पड़ती है जिसे  मार्केटिंग भी कह सकते हैं | अभिनेता स्व. देव आनंद की प्रसिद्ध फिल्म गाइड के अंग्रेजी संस्करण के निर्माण से साहित्य का नोबल पुरस्कार जीतने वाली स्व. पर्ल बक भी जुड़ी थीं | जब फिल्म बनी तब देव आनंद और उनके छोटे भाई विजय आनंद ने ऑस्कर के लिए लॉबिंग का प्रयास किया किन्तु जब उन्हें उसके खर्चे मालूम हुए तब वे बिना कुछ किये वापस आ गए | हालाँकि उसके बाद लगान एवं कुछ और फिल्मों के लिए भी  अमेरिका में लॉबिंग हुई लेकिन हाथ  कुछ नहीं आया | इसमें दो मत नहीं है कि भारतीय फिल्म उद्योग तकनीक और कथानक चयन में पश्चिमी  सिनेमा की तुलना में  काफी पीछे है | और इसीलिये बड़े बजट की  फिल्मों में विशेष प्रभाव डालने वाले दृश्यों के लिए विदेशी तकनीशियन बुलाये जाने लगे हैं | लेकिन इस बारे में प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन  का ये कथन  विचारणीय है कि भारत दुनिया में  सबसे ज्यादा फ़िल्में बनाने वाला देश है | और यहाँ सांस्कृतिक तथा भाषायी विविधता की वजह से फिल्मों का कथानक और अभिनय शैली में भी भिन्नता है | इसलिए हॉलीवुड की तर्ज  पर  बॉलीवुड शब्द का प्रयोग अनुचित है और हमें इसे भारतीय फिल्म उद्योग कहते हुए हीन भावना से उबरना चाहिए | श्री बच्चन का ये  कहना भी था कि भारत में भी अनेक विदेशी फिल्में प्रदर्शित की जाती हैं और उनका दर्शक वर्ग भी है किन्तु विदेशी निर्माता भारत  में आयोजित होने वाले अवार्ड आयोजनों में अपनी फिल्मों के लिये किसी सम्मान की अपेक्षा नहीं करते तो फिर हम क्यों ऑस्कर के लिए लालायित रहते हैं | ये भी सही है कि विदेशों में प्रदर्शित होने वाली भारतीय फिल्मों की दर्शक संख्या दरअसल वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों की वजह से बढ़ती जा रही है | उनका संगीत भी अप्रवासी भारतवंशियों के कारण वहां लोकप्रिय हो रहा है | आजकल तो विदेशों में हिंदी के कवि सम्मलेन तक बड़ी संख्या  में हो रहे हैं | ऐसे में एक वैश्विक समाज अपनी श्रेष्ठता के लिए किसी विदेशी संस्थान की चिरौरी करे ये जमता नहीं है | 21वीं  सदी के  भारत की छवि अब सपेरों और मदारियों वाले  देश की नहीं रही | ऐसे में जरूरी है हम अपने मापदंडों को श्रेष्ठता के उस स्तर तक ले जाएँ जिन पर खरा उतरने के प्रति विदेशी भी आकृष्ट हों | हमारे फिल्म उद्योग में लीक से हटकर कला फिल्में भी बनती  हैं  जिनका दर्शक वर्ग है | उनमें  से अनेक को अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में तो खूब प्रशंसा मिलती है लेकिन ऑस्कर जैसे पुरस्कार से वे वंचित रहती हैं क्योंकि उनके पास उसके लिए की जाने वाली महंगी मार्केटिंग के लिए पर्याप्त आर्थिक साधन नहीं होते | वैसे भी पश्चिम के जितने भी पुरस्कार हैं वे आज भी उपनिवेशवाद के दौर की मानसिकता से उबर नहीं पा रहे |  इसका सबसे  बड़ा उदाहरण महात्मा गाँधी को नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाना है | वैश्विक  अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले भारत के बड़े बाजार पर निगाहें गड़ाये हुए हैं | इसीलिए एक दौर था जब भारत की अनेक युवतियों को एक के बाद एक विश्व सुन्दरी चुना  गया | उसी तरह हमारे अनेक अभिनेताओं को हॉलीवुड की फिल्मों में अवसर दिया गया जिसका कारण अप्रवासी भारतीयों को आकर्षित करना ही है | ये भी सही है कि विदेशी निर्माता हमारे फिल्म उद्योग में निवेश करने के अवसर तलाश रहे हैं | जिस तेजी से हमारी फिल्मों की  शूटिंग विदेशों में होने लगी है उसे देखते हुए उन्हें लग रहा है कि हमारे फ़िल्मकार भी वैश्विक बाजार पर नजर रख रहे हैं | भारतीय गीत और वृत्त चित्र को ऑस्कर मिलना निश्चित तौर पर खुशी का क्षण है लेकिन हमारे फिल्मकारों को  अब ऑस्कर के लालच से बाहर आकर अपने सृजन को गुणवत्ता के आधार पर इतना श्रेष्ठ बना देना चाहिए कि ऑस्कर की चयन समिति खुद आकर अवार्ड देने की पहल करे | वैसे भी जिस गीत को अवार्ड मिला वह  ऑस्कर की मोहताजी से पहले ही काफी ऊपर आ चुका था |

रवीन्द्र वाजपेयी 


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