Tuesday 7 March 2023

विपक्षी गठबंधन मेंढ़क तोलने से भी कठिन काम




लोकसभा चुनाव के लिए एक साल ही बचा है | यद्यपि नई  सरकार का गठन 2024 की मई के अंतिम सप्ताह  में होगा लेकिन उसकी उठापटक शुरू हो चुकी है | भाजपा तो चुनाव को लेकर हर समय सक्रिय रहती है जिसमें  उसका  विशाल संगठनात्मक ढांचा मददगार बनता है | रास्वसंघ भी अदृश्य शक्ति के रूप में उसकी व्यूहरचना को मजबूती प्रदान करता है | एक समय था जब पार्टी उत्तर भारत और  सवर्ण जातियों तक ही सीमित  थी किन्तु नब्बे के दशक से उसका जो उत्थान शुरू हुआ वह 2014 में चरमोत्कर्ष पर जा पहुंचा | उसके बाद उसने अपने को राष्ट्रीय स्वरूप देने का अभियान चलाया | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा उछाला उसका अभिप्राय भाजपा को राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करना था | और ये कहना  गलत नहीं है कि उसने उस उद्देश्य को काफी हद तक पा लिया है | हालाँकि अभी भी कुछ राज्यों में सफलता उससे दूर है और पूर्वोत्तर के  कुछ राज्यों  में वह क्षेत्रीय दलों के साथ सत्ता में हिस्सेदार  है | पंजाब में भी अकाली दल के साथ रहने से उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बन सका किन्तु अब वह अपना जनाधार बढ़ा रही है |  तमिलनाडु  में उसकी पकड़ न के बराबर है वहीं केरल में संघ का कार्य  फ़ैल जाने के बावजूद भाजपा अभी भी संघर्ष की स्थिति में  है | हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर वह सबसे ज्यादा सांसद और विधायकों के साथ कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ने में कामयाब हो गयी | परिणाम ये हुआ कि एक ज़माने में गैर कांग्रेसवाद के नाम पर विपक्षी गठबंधन बना करते थे लेकिन अब भाजपा के विरोध में विपक्षी पार्टियाँ एकजुट होने के लिए मजबूर हो गई हैं | यहाँ तक कि जो कांग्रेस विरोधी पार्टियों के साथ बैठने में संकोच  करती थी वही अब गठबंधन के लिए आतुर है | अन्य विपक्षी पार्टियाँ भी इस बात पर एकमत हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर को रोकने के लिए  एकजुट होना जरूरी है | कुछ नेता इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं | सबसे ताजा उदाहरण तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के जन्म दिवस पर चेन्नई  में हुआ जमावड़ा है | जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा फारुख अब्दुल्ला , तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव शामिल हुए | इन सभी  ने 2024 के लिए विपक्ष का गठबंधन बनाने पर जोर दिया | गौरतलब है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के  श्रीनगर में समापन पर सभी विपक्षी दलों को न्यौता भेजा गया था लेकिन केवल  नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ही उसमें शरीक हुए | जिससे ये संकेत गया कि विपक्ष कांग्रेस को साथ तो रखना चाहता है लेकिन उसके झंडे तले आने को राजी नहीं  है | श्री गांधी की यात्रा में इसीलिये विपक्ष के इक्का – दुक्का नेताओं की ही उपस्थिति रही | इसका सबसे बड़ा कारण क्षेत्रीय दलों के कतिपय नेताओं की महत्वाकांक्षाएं हैं | मसलन ममता बैनर्जी द्वारा लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा के साथ ही इस दावे को दोहराना कि भाजपा का मुकाबला वे ही कर सकती हैं |  हाल ही में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस द्वारा  वामपंथी दलों के साथ गठबंधन से वे बहुत नाराज हैं | प. बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी दोनों एक साथ थे | तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. सी. राव भी कांग्रेस के विरोध का सामना अपने राज्य में करने के कारण उससे दूर रहना चाह रहे हैं | विपक्षी एकता में कांग्रेस के रोड़ा बनने का सबसे नया प्रमाण मिला दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की गिरफ्तारी के विरोध में  विपक्षी नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र पर कांग्रेस के किसी नेता के हस्ताक्षर नहीं होने से | इस पत्र पर शरद पवार ,  के.सी.राव ,  ममता बैनर्जी , अरविन्द केजरीवाल , भगवंत  सिंह मान , फारुख अब्दुल्ला , उद्धव ठाकरे , अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के हस्ताक्षर थे | इनमें श्री केजरीवाल और श्री मान को हटा दिया जावे तो महज 7 विपक्षी नेता ही बचते हैं | नीतीश कुमार  , स्टालिन , नवीन पटनायक और  जगनमोहन रेड्डी के अलावा वामपंथी  नेताओं ने भी इस पत्र से दूर रहना ही बेहतर समझा | हालाँकि सभी विपक्षी पार्टियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया लेकिन कांग्रेस दोहरा रवैया अपना रही है | सीबीआई और ईडी के जरिये  विपक्षी नेताओं को परेशान करने को लेकर तो वह आवाज उठाने में संकोच नहीं करती किन्तु आम आदमी पार्टी से उसकी पटरी नहीं बैठती क्योंकि उसी की वजह से दिल्ली और पंजाब  में उसका सफाया हो गया | साथ ही वह गुजरात के बाद म.प्र , छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में भी अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है जिससे कांग्रेस को नुकसान होना तय है | आम आदमी पार्टी से कांग्रेस और गांधी परिवार इसलिए भी रुष्ट है क्योंकि जब नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल पर ईडी ने शिकंजा कसा तब उसने उसका विरोध  नहीं किया |  इस प्रकार ये बात सामने आती जा रही है कि बिना अपनी अगुआई के कांग्रेस किसी भी विपक्षी गठबंधन को स्वीकार नहीं करेगी | वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के भी अनेक छत्रप गठबंधन की इच्छा रखते हुए भी कांग्रेस के पीछे चलने की बजाय उसे अपने पीछे चलने के लिए मजबूर करना चाहते हैं | हालाँकि श्री सिसौदिया की गिरफ़्तारी के बाद श्री केजरीवाल की अकड़ कुछ कम तो हुई है लेकिन उनका कांग्रेस के साथ ही विपक्ष के अनेक  दलों से तालमेल  कठिन है | दरअसल  वे खुद को भाजपा के राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर देखते हैं जो अन्य पार्टियों को शायद ही रास आये | ऐसे में विपक्षी गठबंधन  मेंढ़क तौलने जैसे कवायद बनती जा रही है जिसमें एक को बिठाओ तो दूसरा कूद जाता है | संकट के समय में भी कांग्रेस द्वारा आम आदमी पार्टी से दूरी बनाये रखना विपक्षी एकता की कोशिशों को बाधित करने जैसा ही है |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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