Friday 17 March 2023

संसद असफल रही तब जनता सड़क पर फैसले करेगी



संसद सोमवार तक के लिए स्थगित हो गयी | सता पक्ष की जिद हैं राहुल गांधी केम्ब्रिज में दिए गए भाषण के लिए माफी मांगें | कांग्रेस  इसके लिए साफ इंकार कर चुकी है | इसी के साथ राहुल ने लोकसभा में अपनी ब्रिटेन यात्रा के बारे में स्थिति स्पष्ट करने की इच्छा व्यक्त की है किन्तु उनके माफी नामे के बिना इसके लिए सत्ता पक्ष राजी नहीं है |  दूसरी तरफ अधिकांश विपक्ष इस बात के लिए अड़ा हुआ है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में गौतम अडानी की कंपनियों पर वित्तीय गड़बड़ियों के जो आरोप लगे हैं उनकी जाँच हेतु जेपीसी ( संयुक्त संसदीय समिति) का गठन किया जाए | इस बारे में सरकार का कहना है कि इस रिपोर्ट और अडानी समूह के शेयरों में हुई उथलपुथल से चूंकि उसका कोई लेना देना नहीं हैं लिहाजा जेपीसी की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती | इस खींचातानी में बजट सत्र के दूसरे चरण का पहला सप्ताह भी बिना विधायी कार्य किये खत्म हो गया | रोचक बात ये है कि कांग्रेस के साथ भी पूरा विपक्ष नहीं है | पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे  ने गत सप्ताह विपक्षी दलों की जो बैठकें बुलाईं उनमें चूंकि अनेक विपक्षी दल शामिल नहीं हुए इसलिए सत्ता पक्ष को ताकत मिल गयी | इसी तरह श्री खडगे के नेतृत्व में विपक्षी सांसदों का जो मार्च ईडी मुख्यालय गया था उसमें भी  अनेक विपक्षी दिग्गज और उनके नेता नजर नहीं आये | लेकिन कांग्रेस को ये लग रहा है कि इस मुद्दे को लम्बा खींचा जाये जिससे अनेक राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव तक वह  भाजपा और प्रधानमंत्री को घेर सकें | हालाँकि इतने लम्बे समय तक उसे ज़िंदा रखना आसान नहीं होगा | और फिर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अब तक अडानी समूह ने पूंजी बाजार में अपने पैर फिर से ज़माने शुरू कर दिए हैं | लेकिन ऐसे मामलों में चूंकि राजनीतिक लाभ ज्यादा महत्वपूर्ण होता है लिहाजा कांग्रेस इस मुहिम को जारी रखने की हरसंभव कोशिश करती रहेगी | जहां तक सत्ता पक्ष का सवाल है तो भाजपा ने राहुल द्वारा  ब्रिटेन यात्रा के दौरान विभिन्न मंचों से जो भी बोला उसे देश और लोकतंत्र विरोधी बताकर उन पर माफी मांगने का दबाव बनाया जा रहा है | कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा अडानी विवाद से बचने के लिए ये दांव खेल रही है | श्री गांधी ने देश में लोकतंत्र की स्थिति पर जो आलोचनात्मक टिप्पणियाँ अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान कीं उनसे भाजपा को उनके विरुद्ध मोर्चा खोलने का अवसर मिल गया है | वहीं सदन में उनका माइक बंद किये जाने का आरोप लगाये जाने को संसद की मर्यादा भंग करना मानकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की मांग भी सत्ता पक्ष उठा रहा है | श्री गांधी पर माफी मांगने के लिए दबाव बनाना अपनी जगह ठीक है लेकिन बेहतर होगा उन्हें सदन में उस बारे में अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए और उसके बाद सत्ता पक्ष उन पर कार्रवाई के बारे में सोचे | इस बारे में देखने वाली बात ये है कि अडानी मामलें में सरकार की तरफ से शुरुआत में वित्तमंत्री ने केवल इस आशय का बयान दिया था कि इस समूह को बैंकों और जीवन बीमा निगम से जितना भी ऋण दिया गया वह पूरी तरह से नियमानुसार था तथा  बैंक और बीमा निगम का निवेश पूरी तरह सुरक्षित है | इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने इस विवाद की जाँच हेतु अपनी ओर से एक समिति गठित कर  दी जिससे सरकार को जेपीसी की मांग को टालने का अवसर मिल गया | ज़ाहिर है दोनों तरफ से मोर्चे बंदी हो रही है | लेकिन जैसे संकेत हैं उनके अनुसार इसका  नतीजा कुछ नहीं निकलेगा | सरकार किसी दिन बहुमत के बल पर बजट सहित शेष लंबित विधेयक और  प्रस्ताव पारित करवा लेगी और सत्र समाप्त हो जाएगा | गंभीर मुद्दों पर बहस और ठोस निर्णय करने के लिए संसद का उपयोग करने की बजाय व्यर्थ के विवाद और छोटी – छोटी बातों का बतंगड़ बनाने का खेल चल रहा है | भले ही सबके माइक कार्य कर रहे हों लेकिन जिस तरह से होहल्ला मचता है उसमें कौन क्या बोल रहा है ये न तो सुनाई देता है और न ही समझ में आता है | ऐसे में चाहे प्रधानमंत्री बोलें या विपक्ष का कोई सांसद , उसे सुना ही नहीं जाएगा | संसद के दोनों सदनों की कार्रवाई का सीधा प्रसारण किया जाता है  | लेकिन उसे देखकर सांसदों के मानसिक स्तर और संसदीय परंपराओं के प्रति उनके मन में कितना सम्मान है इसका अंदाजा आसानी से हो जाता है | हालाँकि संसद के दोनों सदनों में ऐसे वरिष्ट सदस्य हैं जो दो दशकों से सांसद हैं | उनमें से बड़ी संख्या उन सदस्यों की भी है जिन्हें सत्ता और विपक्ष दोनों में रहने का पर्याप्त अनुभव है | अतीत में ये देखा गया है कि जब इस तरह के गतिरोध उत्पन्न होते और सदन लगातार बाधित होता तब दोनों पक्षों के वरिष्ट सदस्य अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए बीच का रास्ता निकाल लेते थे | दुर्भाग्य से आज जो भी वरिष्ट सांसद सत्ता और विपक्ष में हैं उनमें पार्टी लाइन से ऊपर उठकर लोकतंत्र की गरिमा बनाये रखने के  लिए प्रयास करने का साहस नहीं बचा | ये भी देखने मिल रहा है कि जिस  उच्च स्तर के निर्दलीय सांसद चुनकर आया करते थे वह दौर अब खत्म हो चुका है | बीते दो दशकों में अनेक ऐसे निर्दलीय लोकसभा और राज्यसभा में चुनकर आये जो या तो बाहुबली थे या धनबली | ऐसे लोगों ने ही  संसद की मान - मर्यादा को  तार – तार कर दिया | दुःख तो तब होता है जब गठबंधन राजनीति ऐसे लोगों को सिर पर बिठाने में संकोच नहीं करती | ये सब देखकर  संसद की गरिमा के बारे में चिंता होने लगती है | सवाल ये नहीं कि भविष्य में होने वाले चुनाव में कौन जीतेगा और कौन नहीं |  बल्कि देश के सामने सबसे गंभीर विचारणीय मुद्दा ये है कि संसद को आन्दोलन स्थल बनाने का ये चलन रुकेगा या नहीं ? यदि हमारे सांसद चाहे वे किसी भी पक्ष के हों , ये सोचकर  मदमस्त हैं कि वे इसी तरह से लोकतन्त्र का मजाक उड़ाते रहेंगे और जनता सब कुछ देखकर भी चुप बनी रहेगी तो वे गलत हैं | उनको ये जान  लेना चाहिए कि जिस दिन जनता का धैर्य टूट गया उस दिन संसद में  सांसदों की बजाय जनता नजर आयेगी | अपने पड़ोसी देशों में ऐसा हो भी चुका है | हालाँकि वह  बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा | लेकिन हालात उसी तरफ बढ़ते दिख रहे हैं क्योंकि  संसद यदि देश के बारे में फैसले करने में असफल रहेगी तब फिर जनता सड़क पर बैठकर संसद का काम करेगी | आखिरकार   सहने की भी हद होती है |

रवीन्द्र वाजपेयी 


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