Tuesday 28 March 2023

सावरकर का अपमान कांग्रेस को महंगा पड़ेगा




कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने  लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद  आयोजित पत्रकार वार्ता में ये पूछे जाने पर कि क्या वे मानहानि मामले में माफी मांगेंगे , कहा कि वे सावरकर नहीं , गांधी हैं | इसके पूर्व भी अनेक अवसरों पर वे स्वाधीनता संग्राम सेनानी  वीर सावरकर पर अंग्रेजों से माफी मांगकर अंडमान की जेल से रिहा होने का आरोप लगा चुके थे | सावरकर जी द्वारा लिखित   एक पत्र की प्रतिलिपि भी वे अपने दावे के समर्थन में पेश करते रहे हैं | उनके इस बयान की भाजपा तो शुरू से ही आलोचना करती रही लेकिन अविभाजित शिवसेना  इस बारे में और भी मुखर रही है | जैसा कि संजय राउत ने गत दिवस कहा भी कि छत्रपति शिवाजी और वीर सावरकर उनके आदर्श हैं जिनके बारे में किसी भी प्रकार की  अपमानजनक बात उनको मंजूर नहीं  होगी | राहुल की पत्रकार वार्ता के बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने धमकी भी दी कि यदि वे वीर सावरकर जी के बारे में इसी तरह आपत्तिजनक टिप्पणियां करते रहे तो उनकी पार्टी महा विकास अगाड़ी नामक गठबंधन से अलग होने बाध्य हो जायेगी | उनकी धमकी का असर गत दिवस देखने भी मिला जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे द्वारा आमंत्रित विपक्षी दलों की बैठक में  तृणमूल कांग्रेस , जनता दल ( यू ) और आम आदमी पार्टी ने तो शिरकत की किन्तु शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट दूर रहा | हालाँकि उद्धव ने श्री गांधी की  लोकसभा सदस्यता समाप्त किये जाने के लिए भाजपा की आलोचना की | आश्चर्य की बात है कि महाराष्ट्र के सबसे बड़े राजनीतिक नेता और राकांपा के प्रमुख शरद पवार ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा | लेकिन श्री गांधी द्वारा लगातार सावरकर जी की आलोचना करने से कांग्रेस को क्या हासिल हो रहा है ये सवाल अनुत्तरित है | इसमें दो मत नहीं है कि उनका नाम जितना भाजपा और शिवसेना लेती आईं हैं उतना अन्य कोई राजनीतिक दल नहीं लेता | और फिर उनके बारे में उत्तर भारत के लोग अपेक्षाकृत कम जानते हैं | चूंकि उनका नाम महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के साथ भी जोड़ा गया इसलिए कांग्रेस एवं उससे निकली अन्य पार्टियों के लिए वे नफरत के पात्र रहे हैं | दूसरी ओर जहां तक बात  शिवाजी की है तो वे महाराणा प्रताप की तरह ही  हमारे इतिहास के सबसे सम्मानित व्यक्तित्वों में हैं | जब 2019 के चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से दूरी बनाकर श्री  पवार की मदद से मुख्यमंत्री पद हासिल करने की रणनीति बनाई तब कांग्रेस इसके लिए अनमनी सी थी | लेकिन भाजपा को रोकने के नाम पर गांधी परिवार ने घोर साम्प्रदायिक और हिंदूवादी पार्टी कही जाने वाली शिवसेना को सत्ता में लाने के साथ ही उसके साथ गठबंधन जैसा कड़वा घूँट पिया | हालाँकि उस सरकार का नियंत्रण श्री पवार के पास ही रहा जिसमें  कांग्रेस की  स्थिति दूसरे दर्जे के नागरिक जैसी थी | इसीलिये उसके नेता नाना पटोले ने खुलकर ये कहना शुरू कर दिया कि भविष्य में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी | यद्यपि उद्धव सरकार गिरने के बावजूद गठबंधन कायम रहा और इसी के बदौलत कांग्रेस ने हाल ही में एक विधानसभा उपचुनाव में भाजपा से उसकी परम्परागत सीट भी छीनी | लेकिन राहुल के लगातार सावरकर विरोधी बयानों से उद्धव गुट के साथ कांग्रेस का चलना कठिन है | ऐसा लगने लगा है कि पार्टी उद्धव ठाकरे से पिंड छुड़ाना चाहती है ताकि मुस्लिम और ईसाई मतों का नुकसान न हो | उल्लेखनीय है मुम्बई महानगर पालिका के चुनाव निकट भविष्य में होना हैं जिन्हें आगामी लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास कहा जा सकता है | श्री ठाकरे के लिए इस चुनाव को जीतना जीवन - मरण का सवाल होगा क्योंकि मुम्बई महानगर पालिका का बजट किसी राज्य जैसा ही है और लम्बे समय से ये ठाकरे परिवार और शिवसेना की राजनीति की उर्वरा भूमि बनी हुई है | उद्धव ठाकरे को भले ही राकांपा और कांग्रेस की सहायता से कुछ समय के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया किन्तु भाजपा से अलगाव और फिर एकनाथ शिंदे  के अलग हो जाने से उनके परिवार और बची हुई पार्टी में न तो पहले जैसी धार है और न ही आकर्षण | चुनाव आयोग ने पार्टी का चुनाव चिन्ह भी उद्धव से छीनकर उन्हें कमजोर कर दिया | बावजूद  इसके कांग्रेस यदि उद्धव गुट को अपने से दूर रखकर राजनीति करने की सोच रही है तब वह अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की मूर्खता करेगी | आज की स्थिति में तो वह कम से कम श्री ठाकरे के साथ महानगरपालिका और आगामी लोकसभा चुनाव में सौदेबाजी करने में सक्षम है परन्तु  सावरकर जी के बारे में राहुल और उनकी देखासीखी अन्य कांग्रेस नेताओं ने इसी तरह की बयानबाजी जारी रखी तो उस सूरत में कांग्रेस के हाथ  महाराष्ट्र में  कुछ ख़ास नहीं लगेगा क्योंकि राकांपा भी उसे बहुत ज्यादा जगह देगी , ये नहीं लगता | सावरकर जी के बहाने एक बार फिर हिंदुत्व महाराष्ट्र में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन जाएगा | बीते  काफी समय से राहुल हिंदु धर्म  को लेकर काफी सतर्क रहे हैं | हालाँकि हिंदुत्व शब्द से उनको चिढ़ है | लेकिन शिवभक्त होने के दावे के  साथ ही वे भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पौराणिक प्रसंगों का  उल्लेख अपने भाषणों में करते रहे |  वह देखते हुए उनका सावरकर के बारे में निरंतर अनर्गल प्रलाप महाराष्ट्र में तो पार्टी के लिए महंगा सौदा साबित होगा ही , किन्तु  उसका असर गुजरात ,  कर्नाटक के अलावा म.प्र और छत्तीसगढ़ में भी पड़ सकता है जहां मराठीभाषी मतदाता बड़ी संख्या में  न सिर्फ रहते , अपितु सावरकर जी की प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा और साहित्य से प्रभावित भी हैं | और फिर पता नहीं क्यों श्री गांधी अपनी स्वर्गीय दादी इंदिरा गांधी के उस पत्र को भूल जाते हैं जिसमें बतौर प्रधानमंत्री  उन्होंने सावरकर जी को महान  स्वाधीनता सेनानी बताते हुए उनके योगदान की प्रशंसा की थी |


-रवीन्द्र वाजपेयी 

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