Monday 20 March 2023

गृहयुद्ध की आशंका : गहलोत का बेहद गैर जिम्मेदाराना बया



राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत देश के सबसे अनुभवी राजनेताओं में से हैं | इस प्रदेश की सीमाएं पाकिस्तान से सटे होने से राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह बेहद संवेदनशील है | ऐसे में उनसे जिम्मेदार आचरण की अपेक्षा ही नहीं अपितु आवश्यकता भी है | कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में उनकी गिनती होती है और इसीलिये गांधी परिवार उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाह रहा था किन्तु मुख्यमंत्री की गद्दी के मोह ने उन्हें विद्रोही तेवर दिखाने बाध्य कर दिया । उनके अड़ियल रुख के सामने गांधी परिवार को भी झुकना पड़ा जो उन्हें हटाकर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिये काफी समय से प्रयासरत है | बहरहाल मल्लिकार्जुन खडगे के अध्यक्ष बन जाने के बाद वह बात तो आई गई हो गयी और श्री गहलोत आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में पूरी ताकत से जुटे गये | यद्यपि श्री पायलट भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे | वैसे ये सब तो भारतीय राजनीति में आये दिन देखने मिलता है और कोई भी राजनीतिक पार्टी इससे अछूती नहीं रही | लेकिन एक राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते श्री गहलोत की जिम्मेदारी देश की एकता और अखंडता की रक्षा करना भी है । यदि उन्हें लगता है कि उसको किसी भी तरह का खतरा है तो राज्य के स्तर के अलावा केंद्र सरकार से भी समन्वय बनाकर तत्काल जरूरी कदम उठाये जाने चाहिए | लेकिन गत दिवस कांग्रेस अध्यक्ष श्री खडगे से मिलने के बाद संवाददाताओं के समक्ष विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखते हुए श्री गहलोत ये कह गए कि देश में असंतोष यदि एक सीमा से ज्यादा बढ़ा तो गृह युद्ध हो जाएगा जैसा दुनिया के कुछ देशों में हो चुका है | अपनी बात को बल देने के लिए उन्होंने बेरोजगारी , महंगाई , आर्थिक विषमता और सरकारी जाँच एजेंसियों के दुरूपयोग जैसे मुद्दे उठाये | हालाँकि गृह युद्ध जैसी गंभीर बात वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होते समय ही कह चुके थे | तब उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन देश की वर्तमान परिस्थितियों में गृहयुद्ध की आशंका देश के सबसे बड़े सीमावर्ती राज्य का मुख्यमंत्री व्यक्त करे तो क्या ये उचित है ? आम तौर पर इस तरह की बातें अलगाववादी और माओवादी करते हैं | कश्मीर के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में जो भी संगठन देश से लागू होने के लिए हिंसक संघर्ष करते रहे उन सभी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यही प्रचार किया कि वे भारत के विरुद्ध जंग लड़ रहे हैं | पंजाब में भी इन दिनों ये बात खालिस्तानी समर्थक उछाल रहे हैं कि देश गुलाम है | अमृतपाल सिंह नामक जो अलगाववादी भिंडरावाले के नए अवतार के तौर पर सामने आया है उसके हथियारबंद समर्थक थाने पर सशस्त्र धावा बोलकर अपने साथी को रिहा करवा लाए | बीते तीन दिनों से पंजाब पुलिस अमृतपाल को ढूंढ रही है | उसके साथी बड़ी संख्या में गिरफ्तार किये जा चुके हैं जिनके पास हथियार भी बरामद हुए | कुल मिलाकर राष्ट्रविरोधी शक्तियां आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करने में जुटी हैं जिन्हें शत्रु देशों से मदद मिल रही है | इस बारे में पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने समझदारी का परिचय दिया | अजनाला की घटना के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को बुलाकर अमृतपाल और उसके साथियों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की सलाह के साथ केंद्र की मदद का आश्वासन भी दिया | केंद्र सरकार से छत्तीस का आंकड़ा होने के बाद भी श्री मान ने खालिस्तान की मांग उठाने वाले अमृतपाल और उसके साथियों की घेराबंदी शुरू कर दी | बेहतर होता श्री गहलोत इस उदाहरण से कुछ सीख लेते | एक राज्य का मुख्यमंत्री राजनीतिक मतभेदों के कारण केंद्र सरकार की आलोचना करे तो उसे स्वाभाविक माना जायेगा किन्तु वह प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए गृहयुद्ध की आशंका जताए तो ये एक तरह की धमकी मानी जायेगी | यदि श्री गहलोत के पास इस आशय की कोई भी जानकारी है तो उन्हें बजाय पत्रकार वार्ता के केंद्र सरकार को अग्रेषित करना चाहिए | भारत संघीय गणराज्य है जिसमें कानून व्यवस्था निश्चित रूप से राज्यों का विषय है लेकिन देश की सुरक्षा का जिम्मा केंद्र का है | आन्तरिक सुरक्षा के लिए उत्पन्न किसी भी समस्या का सामना दोनों मिलकर करते हैं | गृहयुद्ध ऐसा ही मामला है जिससे निपटने के लिए राज्य और केंद्र को मिलकर कार्य करने की जरूरत है | उस दृष्टि से श्री गहलोत को कोई आशंका नजर आ रही है तो उन्हें सीधे प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्री से मिलकर उसके बारे में बताना चाहिए | वैसे जिन सन्दर्भों में श्री गहलोत ने गृहयुद्ध की बात कही उनसे तो लगता है कि इतने लम्बे राजनीतिक अनुभव के बाद भी वे भारतीय जनमानस को नहीं पढ़ सके जिसने तमाम समस्याओं और विषम परिस्थितियों के बावजूद हिंसा का सहारा नहीं लिया | विपक्षी नेताओं पर सीबीआई और ईडी द्वारा शिकंजा कसे जाने को लोकतंत्र के लिए खतरा बताकर कितना भी दुष्प्रचार किया जाए लेकिन जनता हडबडाहट में कोई फैसला करने के बजाय सही समय का इंतजार करती है | 1975 में स्व. इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर पूरे विपक्ष को जेल में डाल दिया | जनता से उसके मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए किन्तु न कोई विद्रोह हुआ और न गृहयुद्ध की स्थिति बनी | लेकिन 19 माह जब लोकसभा चुनाव हुए तब जनता ने मतदान के जरिये इंदिरा जी को गद्दी से उतार दिया | इसी तरह 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आपरेशन ब्ल्यू स्टार के बाद सेना के एक गुट द्वारा विद्रोह की कोशिश हुई लेकिन वह नाकामयाब साबित हुई | पंजाब में खालिस्तानी आन्दोलन के दौर में ये लगता था कि वह हिस्सा देश से अलग हो जाएगा किन्तु उसके बाद भी वहां कांग्रेस की सरकार बनती रही | कश्मीर को भी हिंसा के सहारे भारत से अलग करने का मंसूबा यदि पूरा नहीं हो सका तो उसका कारण यही है कि भारत की जनता शांत स्वभाव की है | महंगाई , बेरोजगारी , आर्थिक विषमता और ऐसी ही अन्य समस्याएं आजादी के बाद से ही चली आ रही हैं | लोग इनके लिए सरकार के सामने अपना विरोध भी व्यक्त करते हैं किन्तु जिस आन्दोलन में हिंसा या देश विरोधी बात होती है वह दम तोड़ देता है | दिल्ली में साल भर से ज्यादा चले किसान आन्दोलन में जब देश विरोधी तत्व घुसे और गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर खालिस्तानी झन्डा फहराने जैसा कृत्य किया गया त्योंही उस आन्दोलन का नैतिक पक्ष कमजोर होता गया | देश के अनेक हिस्सों में भाषा , क्षेत्र , पानी आदि को लेकर विवाद हैं | उनके चलते आन्दोलन भी हुए लेकिन गृहयुद्ध जैसी बात आज तक किसी ने नहीं की क्योंकि ये भारतीय जनता को किसी भी स्थिति में मंजूर नहीं होता | ये देखते हुए श्री गहलोत जैसे अनुभवी राजनेता द्वारा जो अतीत में केन्द्रीय मंत्री भी रहा हो , इस तरह की बेहद गैर जिम्मेदाराना बात कहना दुर्भाग्यपूर्ण है | कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह उनसे इस बारे में पूछताछ करे और यदि उनके पास वाकई इस आशंका का कोई आधार है तो फ़ौरन केंद्र सरकार को उसकी सूचना दी जाए अन्यथा श्री गहलोत अपनी गलती स्वीकार करें |

रवीन्द्र वाजपेयी

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