Saturday 25 March 2023

जनता और कानून की अदालत दो अलग - अलग चीजें हैं




सूरत की निचली अदालत से 2 साल की सजा मिलने के एक दिन बाद ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई। यद्यपि 10 वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए गए फैसले के अनुसार उनकी सदस्यता रद्द होना न तो आश्चर्यजनक है और न ही अनुचित। कांग्रेस में रहे वरिष्ट अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तो फैसले के तत्काल बाद ही सदस्यता रद्द होने के बात कह दी थी। लेकिन गत दिवस कांग्रेस सहित विपक्ष के तमाम नेता और मोदी विरोधी पत्रकार इस बात का ढिंढोरा पीटने लगे कि सदस्यता रद्द करने की जल्दी क्या थी ?  राहुल की बहिन प्रियंका वाड्रा की प्रतिक्रिया तो  क्रोध से भरी थी जिसमें उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने परिवार के योगदान का बखान करते हुए भाई को मिली सजा को कानून के दायरे से बाहर निकालकर राजनीति का विषय बनाने  का प्रयास किया।इस मामले में एक बात फिर साफ हो गई कि इस देश में चाहे किसी को कुछ भी कष्ट हो जाए लेकिन ज्योंही बात गांधी परिवार की होती है त्योंही ऐसा लगता है मानो वह कोई शाही खानदान है जिसकी शान में गुस्ताखी नहीं  की जा सकती। जरा - जरा सी बात पर अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान का स्तुतिगान करते हुए उसके सभी अपराधों अथवा गलतियों पर पर्दा डालने का योजनाबद्ध प्रयास शुरू हो जाता है। चीन द्वारा भारत की जमीन हथियाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ताबड़तोड़ आरोप लगाने वाले श्री गांधी ने आज तक पंडित नेहरू के कार्यकाल में चीन द्वारा हथियाई गई  हज़ारों वर्ग किलोमीटर भूमि को लेकर कुछ नहीं कहा। इसी तरह 12 जून 1975 को अलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा स्व.इंदिरा जी का निर्वाचन रद्द कर दिए जाने के बाद बजाय इस्तीफा देने के उन्होंने देश पर आपातकाल थोप दिया। श्री सिन्हा को सीआईए का एजेंट बताकर उनके पुतले फूंके गए। बाद में विपक्ष को जेल में डालकर उस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में रद्द करवा लिया गया। स्व.संजय गांधी का एक बयान उन दिनों खूब चर्चित हुआ कि करोड़ों लोगों द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री को भला एक अदना सा न्यायाधीश कैसे अलग करवा सकता है ? उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ  ने तो इंदिरा ही भारत और भारत ही इंदिरा जैसा नारा दिया था। वही सामंती मानसिकता  आज भी गांधी परिवार के मन में समाई हुई है। भले ही बरुआ जी आज न हों लेकिन  उन जैसे लोग इस परिवार के सदस्यों को ये महसूस करवाने में जुटे रहते हैं कि लोकतंत्र के बावजूद वे राजसी परंपरा से जुड़े हैं और इसलिए अतिरिक्त सम्मान और विशेषाधिकारों के अधिकारी हैं। सूरत से आए अदालती फैसले पर ऐतराज करने वालों को यह बात समझना चाहिए कि राहुल गांधी भी देश के एक नागरिक  हैं और कानून के सामने उनकी कोई विशिष्ट हैसियत महज़ इसलिए नहीं हो सकती कि वे इंदिरा जी के पौत्र और राजीव गांधी और सोनिया जी के पुत्र हैं। एक सांसद को जो अधिकार और सुविधाएं प्राप्त हैं उनसे ज्यादा श्री गांधी को अवश्य मिली हुई हैं क्योंकि उनके परिवार को अतिरिक्त सुरक्षा दी गई है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे जिस राज्य से गुजरे वहां केंद्रीय एजेंसियों की सलाह के अनुसार श्री गांधी की सुरक्षा और सुविधाओं का ध्यान रखा गया। जिसके कारण कन्याकुमारी से कश्मीर तक की  यात्रा सकुशल सम्पन्न हो सकी। यहां तक कि कश्मीर घाटी तक में कुछ नहीं हुआ। बहरहाल सूरत की अदालत और उसके बाद लोकसभा सचिवालय के फैसलों पर बजाय सहानुभूति बटोरने के यदि श्री गांधी कानून में उपलब्ध विकल्पों का चयन करते हुए आगे बढ़ें तो वे राहत की उम्मीद कर सकते हैं। अन्यथा चाहे संसद की  घेराबंदी करो या राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन देते फिरो , हासिल आई शून्य ही रहेगा। इस बारे में ये भी उल्लेखनीय है श्री गांधी को 30 दिनों के भीतर कानून के जरिए राहत प्राप्त करना होगी वरना फिर जेल जाना अनिवार्य हो जाएगा। वैसे भी वे पहले व्यक्ति नहीं हैं जिनकी सांसदी अदालत  से सजा सुनाए जाने पर रद्द हुई हो। लेकिन अनेक नेताओं का ये कहना आश्चर्यजनक है कि मानहानि संबंधी कानून के प्रावधानों में बदलाव किया जाना चाहिए जिससे नेताओं द्वारा भाषणों में बोली गई बातें उससे मुक्त रहें । बेहतर होता ,राजनीतिक बिरादरी में जो बदजुबानी बढ़ रही है उससे परहेज किया जावे। इसके अलावा अब अतीत बन चुकी टिप्पणियों को याद कर मानहानि के जवाबी दावे किए जाने की चुनौतियां उछल रही हैं। अच्छा हो राहुल और उनके  परिजन राग दरबारी गाने वालों से बचकर खुद को देश का सामान्य नागरिक समझने की आदत डालें  वरना उनको और भी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जनता की अदालत निश्चित रूप से बड़ी है लेकिन कानून की अदालत उससे सर्वथा भिन्न है।  श्री गांधी ही नहीं बाकी नेता और राजनीतिक दल भी इस वास्तविकता को जितनी जल्दी समझ जाएं ये उनके और लोकतंत्र दोनों के लिए अच्छा रहेगा।

रवीन्द्र वाजपेयी 


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