Monday 13 March 2023

पांच साल काम करने वालों को चुनाव के समय चप्पलें नहीं घिसना पड़तीं



जो विद्यार्थी पूरे साल ध्यानपूर्वक अध्ययन करते हैं उनको  परीक्षा के समय रात – रात भर जागकर न तो रट्टा मारना पड़ता है और न ही गैस पेपर और कुंजियों में सिर खपाना होता है | वे कभी इस बात की  शिकायत भी नहीं करते कि पर्चा कठिन आया था | इसी तरह सत्ता में बैठे जो नेता पांच साल पूरी निष्ठा से जनता से किये गए वायदों को पूरा करने के साथ ही जनहित के अन्य कार्यों पर ध्यान देते हैं उनको न तो चुनाव के समय मुफ्त खैरात  रूपी घूस देने की  जरूरत पड़ती हैं और न ही दबाव में आकर नीतिगत समझौते की मजबूरी झेलनी पड़ती है | इन दिनों देश के अनेक राज्यों में  विधानसभा  चुनाव होने जा रहे हैं | इनके लिए राजनीतिक दलों द्वारा  अपनी रणनीति  को अंतिम रूप दिया जा रहा है | कुछ राज्यों में सीधी लड़ाई हो रही है तो कुछ में गठबंधन की बिसात बिछने के संकेत हैं | पुराने दुश्मनों से दोस्ती के साथ ही बरसों से साथ चल रहे मित्र दूरी बनाते नजर आ रहे हैं | चूंकि राजनीति में  विचारधारा , सिद्धांतों और आदर्शों की जगह नहीं बची और हर निर्णय सत्ता  हासिल करने से प्रेरित है इसलिए बेमेल  गठबंधन से भी  कोई शर्म नहीं करता |  आजकल ये चर्चा जोरों पर है कि प. बंगाल के स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए कांग्रेस और वामपंथी दल भाजपा के साथ जुगलबंदी कर रहे हैं | जिस पर इन  पार्टियों के वरिष्ट नेता कह रहे हैं कि स्थानीय चुनावों में इस तरह के गठजोड़ होना आम बात  है | इसी तरह जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्ष भी मतदाताओं को  नए - नए लालीपॉप दिखाकर अपने पाले में खींचने की कोशिश में जुटा हुआ है | 2004 में वाजपेयी  सरकार के दौर में शासकीय कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बंद करते हुए नई योजना लागू की गयी | उसके बाद दस साल तक कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार रही जिसने उसी  योजना को  जारी रखा उसके बाद कुछ राज्यों में भी कांग्रेस  की सरकारें बनी | लेकिन  किसी को भी पुरानी पेंशन की सुध नहीं आई | हाल ही में हुए  हिमाचल प्रदेश के  विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा पुरानी पेंशन लागू करने का जो वायदा  किया उसी की वजह से वह चुनाव जीत गयी | छत्तीसगढ़  और राजस्थान की कांग्रेस सरकारों ने भी आगामी चुनाव को देखते हुए पुरानी पेंशन की वापसी कर डाली | भाजपा की केंद्र सरकार पुरानी  पेंशन योजना को बहाल करने राजी नहीं है | कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया सहित अनेक अर्थशास्त्री भी चेतावनी  दे चुके हैं कि पुरानी पेंशन योजना  दोबारा लागू करने से सरकारी खजाना खल्लास हो जायेगा | लेकिन चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस की राज्य सरकारें अपने ही पुराने सलाहकारों को अनसुना कर रही हैं | सवाल ये भी है कि बीते चार सालों तक वे इस बारे में उदासीन क्यों बनी रहीं ? ताजा संकेतों के  मुताबिक म.प्र की भाजपा सरकार ने भी पुरानी पेंशन की बहाली पर मंथन शुरू कर दिया है | उसे डर है कि सरकारी कर्मचारी कांग्रेस के पक्ष में न झुक  जाएं | अन्य राज्यों में भी इसी  तरह  के चुनाव जीतू कदम उठाये  जा रहे हैं | ये सब देखकर लगता है कि राजनीतिक नेता चाहे वे सत्ता में  हों या विपक्ष में ,  अपनी  साख खोते जा रहे हैं | यदि सत्ता  में रही  पार्टी  चुनाव पूर्व किये वायदों को पूरा करती जाए और जनता की तकलीफों का सही समय पर इलाज करे तब उसे चुनाव के समय दबाव में आकर ऐसे निर्णय करने की जरूरत नहीं पड़ेगी जिन्हें आर्थिक या अन्य कारणों वह  से टालती रही | यही बात विपक्ष पर भी लागू होती है जो अपना दायित्व सही तरीके से निभाए तो उसे जनता को  अव्यवहारिक वायदे नहीं  करने पड़ेंगे | मसलन म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहना योजना शुरू करते हुए महिलाओं को 1 हजार देने की शुरुआत की तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार बनने पर उसे बढ़ाकर 1500 रु. प्रति माह करने का वायदा कर दिया | सवाल ये है कि सत्ता में रहते हुए श्री नाथ को ऐसा करने का ध्यान क्यों नहीं रहा ? इस संदर्भ में राजनीतिक दलों को उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से सबक लेना  चाहिए जो लगातार पांचवी बार मुख्यमंत्री बने | देश के राजनीतिक घटनाचक्र में उनका नाम कभी - कभार ही सुनाई देता है | विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर श्री पटनायक देश  और अपने राज्य के हित को ध्यान में रखते हुए नीति तय करते हैं | उनका भाजपा और कांग्रेस दोनों से मतभेद है लेकिन चाहे केंद्र की सरकार में कोई भी रहा हो , वे सबके साथ सामंजस्य बिठाकर काम करने के लिए जाने जाते हैं | देश में जो राजनेता सबसे कम विवादग्रस्त हैं उनमें श्री पटनायक सबसे अव्वल हैं | सता में रहते हुए वे बिना हल्ला मचाये काम  करते हैं | इसीलिये उड़ीसा बीमारू राज्य के कलंक को धोने में सफल हो रहा है | चुनाव में आसमानी वायदों की जरूरत उनको इसलिए नहीं पड़ती क्योंकि वे पुराने वायदे निभाने में सफल रहते हैं | उड़ीसा स्वर्ग  बन गया हो ऐसा नहीं है लेकिन काम से काम रखने की शैली ने श्री पटनायक को अजेय बना दिया | अन्य राजनेताओं को उनकी विचारधारा भले ही पसंद न आती हो लेकिन उनमें कुछ न कुछ ऐसा गुण तो है जिसकी वजह से वे लगातार 25 सालों से गद्दी पर जमे रहने के बाद  भी निर्विवाद हैं | घूम फिरकर बात वही पूरे साल पढ़ने वाले विद्यार्थी पर आकर टिक जाती है जिनसे राजनेता प्रेरणा ले लें तो उन्हें चुनाव के समय घुटने टेकने के नौबत ही नहीं आयेगी | लेकिन दुर्भाग्य ये है कि राजनीति चलाने वाले नेताओं के मन में ये बात बैठ चुकी है कि पूरे पांच साल चाहे भले कुछ न करो लेकिन चुनाव आते ही मतदाताओं को उपहार बांटने से उनकी नैया पार हो जाएगी  | जब तक चुनाव घोषणापत्र को हलफनामे की तरह कानूनी स्वरूप नहीं दिया जाता तब तक ये विसंगति बनी रहेगी |

रवीन्द्र वाजपेयी 


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