Saturday 4 March 2023

बदलते ऋतु चक्र के खतरे से दुनिया को बचाने आगे आये भारत



इटली का वेनिस शहर अपनी विशिष्टता के  लिए पूरी दुनिया के पर्यटकों को लुभाता है | इस शहर में सड़कों की जगह नहरें हैं जिनमें आवगमन नावों के जरिये होता है | इटली जाने वाले अधिकांश सैलानी वेनिस जाये बिना नहीं रहते | लेकिन इस वर्ष वेनिस की नहरों में पानी सूख चुका है | यहाँ - वहां नावें बंधी देखी जा सकती हैं | तीन साल पहले भी ये स्थिति बनी थी | समुद्र के किनारे बसे वेनिस को इस साल कम बरसात के कारण ये  त्रासदी झेलनी पड़ रही है | विभिन्न टापुओं से बने वेनिस के किनारे का समुद्री जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से संकट और गहरा गया है | मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यूरोप का ऋतु चक्र परिवर्तित हो रहा है  जिसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में वहां वर्षा और हिमपात घटता जाएगा | हाल ही में उत्तरी ध्रुव के बड़े हिमशैल के टूटकर समुद्र में आने की खबर से दुनिया भर में चिंता व्यक्त की गई थी | इसकी वजह पृथ्वी के तापमान में असामान्य वृद्धि  ( ग्लोबल वार्मिंग ) मानी जाती है | इस संकट से बचने के लिए विकसित  देशों द्वारा विकासशील देशों पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली गतिविधियाँ रोकने का दबाव डाला जाता है | अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ भी पर्यावरण संरक्षण हेतु हो चुकी हैं | लेकिन ये विकसित देश ही पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते  है | चूंकि इस बारे में बनने वाली जाँच टीमों में इन्हीं देशों का दबदबा है और सभी प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को भी यही नियंत्रित करते हैं इसलिए वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रदूषण में इनके योगदान की चर्चा कम होती है | जबकि सच्चाई ये है कि धरती , समुद्र और आकाश तीनों में आज जो प्रदूषण है उसके लिए विकसित देश ही  ज्यादा कसूरवार हैं | औद्योगिक विकास के साथ  तकनीक के उन्नयन और विलासितापूर्ण  जीवन शैली के कारण इनका आम नागरिक प्राकृतिक संसाधनों का जितनी बेरहमी से उपयोग करता है  उसकी वजह से ही पृथ्वी का तापमान बढ़ता चला जा रहा है | ये कहना भी गलत न होगा कि विकसित देशों के लोग सुविधाओं के गुलाम हो चुके हैं | वेनिस की नहरों का सूखना और  उत्तरी ध्रुव से विशाल हिम शैलों का टूटकर समुद्र में आ जाना उस भयावह दृश्य  का एहसास करवाता है जिसे भरतीय दर्शन में प्रलय कहा जाता है | भारत में भी इस साल समय से पहले ग्रीष्म ऋतु का आ धमकना भावी खतरों का संकेत है | यूरोप के साथ अमेरिका में भी गर्मियां अब पहले से ज्यादा  तपने लगी हैं | इस वजह से वहां पंखों का चलन बढ़ने की खबरें हैं | भारत  इस साल जी 20 समूह का अध्यक्ष है | इसके वार्षिक सम्मेलन की गतिविधियाँ शुरू हो गयी हैं | इसके पूर्व में भी अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संरासंघ जैसे वैश्विक मंचों पर भारत द्वारा बदलते मौसम और उसके दुष्प्रभाव पर विश्व समुदाय को अपनी चिंताओं के साथ प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण हेतु भारत के प्राचीन ज्ञान के बारे में अवगत कराया जाता रहा है | ऐसे में जी 20 के अध्यक्ष के रूप में भारत को इस सम्मलेन में आर्थिक और राजनयिक मुद्दों के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के विषय को जोरदारी से उठाते हुए विकसित देशों के सामने विकासशील देशों की भावनाएं और समस्याओं को इस तरह पेश करना चाहिए जिससे कि उनकी मनमानी पर रोक लगाई जा सके | छोटे – छोटे देशों पर पर्यावरण को क्षति पहुँचाने का आरोप लगाने  वाले दुनिया के चौधरी जिस वासना के शिकार हैं वह आने वाले पीढ़ियों के लिए बड़ी त्रासदी को जन्म देने वाली है |  ऐसे में विकास की समूची अवधारणा को बदलना होगा | दुर्भाग्य से संरासंघ जैसे संगठन इस दिशा में अपनी भूमिका का समुचित निर्वहन करने में विफल रहे हैं | ये देखते हुए भारत को इस मुहिम का नेतृत्व करना चाहिए क्योंकि मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में वह ऐसा देश बन चुका है जो विकसित और विकासशील देशों के बीच सेतु का काम कर सकता है | सबसे बड़ी बात ये है कि भारत की छवि एक ईमानदार और जिम्मेदार देश के तौर पर कायम हो चुकी है ,जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं है और जो शीत युद्ध रूपी गुटबाजी  से दूर रचनात्मक सोच के साथ विश्व बिरादरी में निरन्तर अपनी साख  और धाक  बनाये हुए है | आने वाली गर्मियाँ हमारे देश को जो नया अनुभव देंगी उनके आधार भविष्य की मौसम संबंधी नीति तय करने में भारत दुनिया का नेतृत्व कर सकता है | कोरोना और यूक्रेन संकट में उसकी  निर्णय और नेतृत्व क्षमता शानदार तरीके से उजागर हुई है |

रवीन्द्र वाजपेयी

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