Wednesday 15 March 2023

संसद का न चलना भी लोकतंत्र का अपमान है

मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस: सम्पादकीय
रवीन्द्र वाजपेयी 


संसद का न चलना भी लोकतंत्र का अपमान है 

विपक्ष अड़ा है अडानी मामले के लिए जेपीसी ( संयुक्त संसदीय समिति ) गठित की जाए | जिसके लिये सत्ता पक्ष जरा भी राजी नहीं है | इस कारण बजट सत्र का पहला भाग हंगामे की भेंट चढ़ गया | होली के बाद सत्र का दूसरा चरण प्रारम्भ होने पर लगा था कि देश और दुनिया के हालातों का संज्ञान लेते हुए हमारे माननीय सांसद अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करेंगे परन्तु लगातार तीसरे दिन भी हंगामा जारी है | विपक्ष के आक्रमण पर  प्रत्याक्रमण करते हुए सत्ता पक्ष ने भी एक मुद्दा ढूंढ लिया राहुल गांधी द्वारा हाल ही में ब्रिटेन यात्रा के दौरान की गयी टिप्पणियों का | उल्लेखनीय है श्री गांधी ने वहां भारत में लोकतंत्र को खतरे में बताते हुए कहा था कि संसद में उनको बोलने नहीं दिया जाता | इसे लेकर सत्ता पक्ष का कहना है कि श्री गांधी ने लोकतंत्र के साथ देश का भी अपमान किया है इसलिए उनको क्षमा याचना करना चाहिए जिस पर कांग्रेस का पलटवार है कि विदेशों में राष्ट्रीय मुद्दों पर आलोचना की शुरुआत खुद प्रधानमंत्री ने की इसलिए वे माफी मांगें। दोनों तरफ से तलवारें खींची हुई हैं। सत्ताधारी योद्धा झुकने को राजी हैं और न ही विपक्ष के महारथी। बजट सत्र में बजट पर चर्चा को छोड़कर बाकी सब हो रहा है। मोदी सरकार के इस कार्यकाल का यह अंतिम पूर्ण बजट है। अगले वित्त वर्ष का बजट 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली सरकार द्वारा पेश किया जावेगा। चुनावी वर्ष के मद्देनजर सत्तापक्ष ने बजट को लोक लुभावन बनाने की कोशिश की जबकि विपक्ष ने शुरुआती प्रतिक्रिया में ही उसे  जनविरोधी बता दिया था। बजट का विस्तृत अध्ययन करने सत्र के बीच अवकाश भी दिया गया किंतु दूसरा चरण शुरू हुए तीन दिन बीत जाने पर भी इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार करने की जरूरत किसी को महसूस नहीं हो रही। ये बात तय है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच समिति बना दिए जाने के बाद अडानी मामले में जेपीसी गठन की मांग का कोई औचित्य नहीं रह गया है। दूसरी तरफ श्री गांधी भी माफी मांगेंगे इसकी संभावना न के बराबर है। ऐसे में देश की जनता के लिए चिंता का विषय है कि उससे जुड़ी समस्याओं एवं राष्ट्रीय महत्व के शेष विषयों पर विचार इस सत्र में होगा भी या नहीं? डा. लोहिया आम जनता को मुल्क के मालिकों कहकर संबोधित किया करते थे किंतु आजकल इस संबोधन को हमारे सांसदों ने एक तरह से चुरा लिया है और जनता की जगह वे खुद को देश का मालिक समझ बैठे हैं। तभी तो सदन में हंगामा करते हुए लोकतंत्र का मजाक बनाने के बाद भी वे जनता के बीच जाने से नहीं डरते। ये स्थिति वाकई शोचनीय है । जब सदन को चलना ही नहीं है तब उसके संचालन पर प्रतिदिन करोड़ों का खर्च क्यों किया जाए ये सवाल उठना स्वाभाविक है। विदेश में जाकर लोकतंत्र का अपमान तो बाद की बात है लेकिन हमारे सांसद लोकतंत्र के मंदिर में बैठकर जिस उद्दंडता और अशालीनता का परिचय दे रहे हैं वह कहीं ज्यादा बड़ा अपमान है।


रवीन्द्र वाजपेयी 

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