Thursday 23 July 2020

वैक्सीन आने तक हर किसी को कोरोना योद्धा बनना होगा




एक तरफ  तो वैक्सीन बन जाने की खबरों के साथ उम्मीद की किरण नजर आने लगी है लेकिन दूसरी तरफ  भारत में कोरोना संक्रमण अब पूरे उफान पर है । बीते 24 घंटों में 48 हजार नये मामलों के साथ अब तक कुल संक्रमित लोगों का आंकड़ा 12 लाख से ज्यादा हो चुका  है। यद्यपि तकरीबन 7 लाख 80 हजार मरीज स्वस्थ भी हो गये हैं किन्तु इससे संतुष्ट हो जाना अपने को धोखा देने जैसा होगा। इसका कारण ये है कि नए मामलों की संख्या में नित्य तकरीबन 10 फीसदी की दर से वृद्धि होने से आने वाले कुछ दिनों में कोरोना को लेकर किये गये चिकित्सा प्रबंध अपर्याप्त हो जाएँ तो आश्चर्य नहीं होगा। गिने-चुने महानगरों को अलग कर दें तो देश के बाकी हिस्सों में सरकारी चिकित्सालय इस मौसम में होने वाली डेंगू और चिकिनगुनिया जैसी बीमारियों के इलाज तक की समुचित व्यवस्था नहीं कर पाते, फिर कोरोना तो बहुत बड़ी बात है। यद्यपि ये कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बेहद दयनीय स्थिति के बावजूद भारत में कोरोना के इलाज पर अपेक्षा से कहीं ज्यादा बेहतर काम हुआ। बीते कुछ महीनों में बड़े सरकारी चिकित्सालयों में ढांचागत सुधार के साथ ही डाक्टरों और उनके सहयोगी स्टाफ  की सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रशंसनीय रही है। लेकिन 135 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश के अधिकतर लोग जिस ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं उनमें से अधिकतर आज भी झोला छाप कहे जाने वाले चिकित्सकों के भरोसे ही हैं। देश के अधिकतर जिला अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं और योग्य डाक्टरों का अभाव है। ऐसे में केवल वैक्सीन का इन्तजार करना स्वाभाविक है। संतोष का विषय ये है कि दुनिया के अनेक देशों द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन का उत्पादन भारत में ही होगा लेकिन उसका पहला उपयोग भारत में हो सकेगा ये निश्चित नहीं है। ऐसे में हमें अपने देश में बनाई जा रही वैक्सीन पर ही निर्भर रहना होगा जिसका मानव परीक्षण प्रारम्भ हो चुका है तथा आगामी दिसम्बर माह के अंत तक वह बाजार में आ जायेगी। लेकिन उसके बाद भी इतनी विशाल जनसँख्या का टीकाकरण कोई आसान काम नहीं होगा। और तब तक भारत में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या यदि एक करोड़ को पार कर जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। भले ही ठीक होने वालों का आंकड़ा 75 फीसदी क्यों न हो जाए लेकिन तब बचे हुए 25 फीसदी सक्रिय मरीज भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बहुत बड़ी समस्या बन जायेंगे। विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में कोरोना का फैलाव स्थिति को गम्भीरतम बना सकता है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि वैक्सीन के आने के पहले तक कोरोना संबंधी प्रत्येक सावधानी का ईमानदारी और जिम्मेदारी से पालन किया जाए। बीते लगभग दो महीने में इसको लेकर जिस अव्वल दर्जे की लापरवाही देश भर में दिखाई दी उसी के कारण संक्रमण का प्रसार तेजी से हुआ। वहीं दूसरी तरफ दो माह तक लॉक डाउन के दौरान अनेक राज्य सरकारों ने तो जहाँ अपने चिकित्सा ढांचे में जबरदस्त सुधार कर लिए किन्तु बाकी के खुशफहमी में ही जीते रहे, जिसका दुष्परिणाम अब सामने आ रहा है। समय की मांग है कि पूरा देश कोरोना को लेकर केवल चिंता में डूबकर न बैठा रहे वरन गम्भीरता के साथ उसके फैलाव को रोकने के लिये होने वाले प्रयासों का हिस्सा बने। दूसरे शब्दों में कहें तो समय आ गया है जब हम सभी को कोरोना योद्धा की भूमिका में आना होगा क्योंकि सरकार की अपनी सीमाएं हैं जिनमें इलाज के लिए तो उस पर निर्भर रहा जा सकता है किन्तु कोरोना संबंधी सावधानियों का पालन करवाने के लिए भी सरकारी अमले के भरोसे बैठे रहना अपने और साथ दूसरों के प्राण संकट में डालने जैसा ही होगा। उस दृष्टि से उचित यही होगा कि सामाजिक स्तर पर भी कोरोना को लेकर सामूहिक दायित्व बोध पैदा हो जिसका अभाव बीते दो महीने में खुलकर सामने आ चुका है। वैक्सीन आने में अभी समय तो है ही लेकिन उसके अलावा अभी भी वैज्ञानिक इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि वह कितनी प्रभावशाली होगी? ये भी सुनने में आ रहा है कि उनका प्रभाव स्थायी न होकर कुछ समय तक ही रहेगा। ऐसे में कोरोना की वापिसी की आशंका बनी रहेगी। जैसी कि खबरें आ रही हैं उनके अनुसार तो चीन में भी इक्का-दुक्का नए मामले आये दिन निकल रहे हैं जबकि हांगकांग में तो 100 नये संक्रमित प्रतिदिन निकलने से वहां सीमित लॉक डाउन शुरू किया जा चुका है। ये देखते हुए भारत में भी वैक्सीन के भरोसे बैठे रहने की बजाय इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि कोरोना का सामुदायिक विस्तार न होने पाए वरना वैक्सीन आने तक हालात बेकाबू हो सकते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी


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