Tuesday 7 July 2020

राजनीतिक स्वार्थ के लिए जनता की जान खतरे में डालने का क्या औचित्य ? कोरोना के रहते सभी चुनाव टाल दिए जाएं





गत तीन अप्रैल को इसी स्तम्भ में मैंने आगामी एक - डेढ़ वर्ष  तक देश में चुनाव टाल दिए जाने संबंधी सुझाव दिया था जिस पर  अधिकांश पाठकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया भी आई | उस समय तक देश में कोरोना का प्रकोप बहुत ही मामूली था | अधिकृत आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में कुल 2547 कोरोना संक्रमित मिल चुके थे | उनमें 2322 सक्रिय मरीज थे | 162 ठीक होकर जा चुके थे जबकि मात्र 62 की मृत्यु हुई थी | लेकिन उस समय भी पूरे देश में लॉक डाउन के कारण  सब कुछ बंद था | सभी तरह की सार्वजनिक गतिविधियों पर रोक थी | उसके बाद भी कोरोना का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था | लेकिन भारत में इस बात को लेकर संतोष व्याप्त रहा  कि दुनिया के विकसित देशों की तुलना में हमारे यहाँ संक्रमित लोगों की संख्या बहुत ही कम है | मृत्यु दर भी नियंत्रण में है और ठीक होने वालों का अनुपात भी तुलनात्मक रूप से बहुत ही उत्साहवर्धक था | इसमें दो मत नहीं हैं कि देश की  जनता ने भी लॉक डाउन में  उम्मीद से ज्यादा सहयोग दिया | लेकिन दूसरी तरफ देश के कुछ चुनिन्दा बड़े शहरों मसलन मुम्बई , दिल्ली , चेन्नई , अहमदाबाद , पुणे और इंदौर आदि में कोरोना का फैलाव तेजी से होता हुआ इस स्थिति में जा पहुंचा कि देश के कुल 70 फीसदी कोरोना मामले इन्हीं में सीमित हो गये | मुम्बई , दिल्ली और चेन्नई तो भयावह स्थिति में जा पहुंचे | मरने वालों की संख्या भी इन्हीं  शहरों में सर्वाधिक है |

बीच में प्रवासी श्रमिकों की घर वापिसी का सिलसिला चल पड़ा और उसी बीच एक जून से केंद्र सरकार ने न्यूनतम प्रतिबंधों के साथ लॉक डाउन शिथिल कर दिया | आवागमन की अनुमति मिल गई |  रेल और हवाई जहाज की सीमित सेवा प्रारम्भ कर दी गयी | बाजार , कारखाने खोलने की अनुमति दे दी गयी | माल की ढुलाई हेतु ट्रक वगैरह भी चलने लगे | दफ्तरों में भी काम  शुरू हो गया  | यद्यपि मास्क , सोशल डिस्टेंसिंग , सैनिटाइजर आदि का उपयोग  करने की हिदायत बदस्तूर कायम रही लेकिन आख़िरकार वही सब आमने आ गया जिसकी आशंका थी | भीड़तन्त्र का सर्वत्र बोलबाला हो गया | लॉक डाउन के दौरान दिखाई दिया समूचा अनुशासन तार - तार होकर रह गया | केंद्र ने राज्यों  पर छोड़ दिया और राज्यों ने सब जनता पर |  इस बीच कोरोना की जांच बढ़ते - बढ़ते  दो लाख प्रतिदिन तक आ गई और उतनी ही गति से बढ़े कोरोना के मरीज | बड़े शहरों के  अस्पतालों में  जगह कम पड़ने लगी | वैकल्पिक व्यवस्थाएं भी ताबड़तोड़ की जा रही हैं | सरकार से जो बन पड़ रहा है वह कर रही है | लेकिन नये मामले अब तो सुरसा के मुंह के समान बढ़ रहे हैं | कुल संक्रमित लोगों का आंकड़ा सात लाख को पार कर चुका है | यद्यपि उनमें से तकरीबन साढ़े चार लाख ठीक हो गये और अब तक 20 हजार की ही जान गई  | ताजा आंकड़ों के मुताबिक तीन लाख मरीज अस्पतालों  में इलाजरत हैं |

 यदि अमेरिका जैसे विकसित देश से तुलना करें तो भारत बहुत ही अच्छी हालत में है | लेकिन बीते कुछ समय से प्रतिदिन जिस बड़ी संख्या में नए मामले आ रहे हैं उसे देखते हुए हर चार दिन में एक लाख का आंकड़ा छूने की स्थिति बन चुकी  है | विशेषज्ञों की  मानें तो जुलाई अंत तक कुल संक्रमित लोगों का आंकडा 25 लाख से उपर जा चुका  होगा | भले ही तकरीबन दो तिहाई ठीक होते जाएँ किन्तु तब भी  बहुत  बड़ी संख्या में अस्पतालों में कोरोना मरीज भर्ती रहेंगे , वहीं मृतकों का आंकड़ा यदि एक लाख के ऊपर जा पहुंचे तो अचम्भा नहीं होगा |

ऐसे में सरकार स्कूल कालेज बंद रखे हुए हुए है | इस वर्ष पाठ्यक्रम में भी कटौती की जा रही है | छोटी कक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक में ऑन लाइन शिक्षा दी जा रही है | विधिवत रूप से शिक्षण संस्थान  कब से  खुलेंगे और परीक्षा  कब होगी  ये अनिश्चित बना हुआ है | कोरोना का फैलाव देश के छोटे - छोटे स्थानों पर होने की खबरें नित्य आ रही हैं | अभी तो उसके चरमोत्कर्ष की  प्रतीक्षा हो रही है | कोई  कह रहा है जुलाई के अंत से तो कोई अगस्त और सितम्बर से कोरोना में कमी आने का दावा कर रहा है लेकिन सभी अंदाजिया घोड़े दौड़ा रहे हैं | वैक्सीन आने का ढोल तो खूब बज रहा है लेकिन उसके बारे में  कुछ निश्चित नहीं है |

ये सब देखते हुए विचारणीय प्रश्न ये है कि जब देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से खतरनाक स्तर की ओर बढ़ता जा रहा है तब क्या देश में चुनाव जैसे आयोजन होने चाहिए ? मप्र विधानसभा के 24 उपचुनावों के अलावा अक्टूबर - नवम्बर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं | राजनीतिक दल इनके लिये तैयारी कर रहे हैं | संवैधानिक प्रावधानों का पालन करते हुए निर्धारित अवधि में चुनाव प्रक्रिया पूर्ण करना चुनाव आयोग का दायित्व है और वह उस दिशा में काम भी कर रहा होगा किन्तु जब ये चेतावनी दी जा रही है कि आगामी कुछ महीनों में कोरोना संक्रमण अपने चर्मोत्कर्ष पर होगा तब क्या मप्र और बिहार के सरकारी अमले को विधान सभा चुनाव के काम में लगाया जाना सही रहेगा ?  चुनावों में जिलों  के कलेक्टर रिटर्निंग अधिकारी होते हैं | और वर्तमान में देश के सारे जिला कलेक्टर कोरोना की जांच , रोकथाम और उसके अलावा गरीबों को शासन द्वारा दिए जा रहे अनाज आदि के वितरण में व्यस्त हैं | मप्र के जिन जिलों में  उपचुनाव होने वाले हैं उनमें से कुछ में कोरोना तेजी से बढ़ता जा रहा है | इसी तरह से बिहार में प्रवासी  श्रमिकों के लौटने के बाद पूरे राज्य में कोरोना का संक्रमण वृद्धि की ओर है |

इससे बड़ी बात चुनावों में होने वाले खर्च की  है | सरकारी खजाने से तो करोड़ों खर्च होते  ही हैं लेकिन राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों का कुल खर्च अरबों में जा पहुचंता है |  आजकल पार्टियाँ और प्रत्याशी दोनों जो सर्वेक्षण करवाती हैं उस पर भी बड़ी राशि व्यय होती है | लेकिन उससे भी  अलग हटाकर देखें तो क्या चुनाव प्रचार और मतदान के समय शारीरिक दूरी के अलावा कोरोना सम्बंन्धी अन्य सावधानियों का पालन संभव होगा ? जो सरकारी अमला चुनाव ड्यूटी पर जाएगा उसके संक्रमित होने की बेहद सम्भावना रहेगी | बड़ी संख्या में सरकारी विद्यालय कोरोना आइसोलेशन एवं क्वारनटाइन के लिए आरक्षित जा चुके थे | ग्रामीण क्षेत्रों में तो खास तौर पर ऐसा किया गया | ऐसे में मतदान कहाँ होगा ?

ऐसी परिस्थितियों में चुनाव का आयोजन और संचालन दोनों औचित्यहीन होंगे | और अधिकतर मतदाता कोरोना संक्रमण के चलते मतदान करने जाएँगे इस पर भी संदेह है | 65 साल से ऊपर  के मतदाताओं को डाक मतपत्र की सुविधा भी सभी राजनीतिक दल स्वीकार नहीं कर रहे | ये सब देखते हुए देश और जनता दोनों का हित इसी में है कि आगामी एक वर्ष या कम से कम कोरोना की औपचारिक विदाई होने तक चुनाव चक्कर से देश को राहत दी जाए जिससे कि सरकारी अमला पूरी ताकत  कोरोना से लड़ने में लगा सके | चूंकि चुनाव ड्यूटी में  सबसे ज्यादा  उपयोग  शिक्षक समुदाय का है इसलिए चुनाव के समय पढ़ाई प्रभावित होती है | पुलिस और प्रशासन दोनों नेताओं के दौरों में फंसकर रह जाते हैं |

इस प्रकार देश के  वर्तमान हालात चुनाव करवाने के अनुमति नहीं देते | सरकार को चाहिए कि वह सभी राजनीतिक  पार्टियों को बुलाकर इस बारे में आम सहमति बनाये | बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो गत दिवस विधानसभा चुनाव अभी नहीं करवाने की मांग भी कर डाली |

समय का तकाजा  है कि जब तक देश में कोरोना संक्रमण का विस्तार नहीं रुकता तब तक किसी भी तरह के चुनाव पर रोक लगा दी जाए | इसके लिए सभी पार्टियाँ मिलकर संसद में प्रस्ताव पारित कर चुनाव आयोग को चुनाव टालने के आधिकार दें |

 संविधान में लोगों को जीवन का जो अधिकार दिया गया है ,चुनाव के नाम पर उसे खतरे में डालना जनतंत्र का अपमान है |

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