Tuesday 14 July 2020

20 साल बाद अचानक कैसे नजर आ गया प्यारे मियाँ का अवैध निर्माण ? पत्रकारिता अपना घर खुद साफ़ करे वरना .......




भोपाल में प्यारे मियाँ नामक एक पत्रकार नाबालिग बालिका  के साथ दुराचार के मामले में फंसकर फरार हो गया | आरोप है कि बीते दो साल से वह  और उसका  एक रिश्तेदार  उस बालिका के साथ दुष्कृत्य कर  रहे  थे  | वैसे खबर बनाने वाले पत्रकार भी आजकल खबर बनने लगे  हैं | पैसे के बल पर अपने काले कारनामे छिपाने के लिए अखबार और टीवी चैनल खोलने वाले अनेक सफेदपोशों का पर्दाफाश भी आये दिन होता रहता है | कमलनाथ   सरकार के दौर में इंदौर के जीतू सोनी नामक अख़बार मालिक के आर्थिक साम्राज्य को तहस नहस किया गया क्योंकि वह हनी ट्रैप मामले का सूत्रधार था और प्रदेश के अनेक राजनेताओं के साथ ही बड़े नौकरशाहों के नंगेपन के सचित्र प्रमाण उसके पास थे | हाल ही में एक और अख़बार मालिक की करतूतें सामने आईं जो गुटका व्यवसाय में कर चोरी करते पकड़ा गया  | और अब प्यारे मियाँ का घिनौना कृत्य सामने आ गया | मामला प्रकाश में आने के बाद प्यारे मियाँ फरार हो गये | पुलिस उन्हें तलाश रही है | ईनाम भी दस से बढ़ाकर 30 हजार रु. कर दिया गया है | गत दिवस उनके मैरिज हॉल को अवैध मानकर प्रशासन ने जमींदोज कर दिया  | कहा जा रहा है उक्त हॉल 20 साल पहले बना था | उसके लिए आवश्यक अनुमति भी नहीं ली गई तथा स्वामित्व सम्बन्धी कोई प्रमाण भी नहीं हैं | अचानक सरकार को ये भी ज्ञात हो गया कि नजूल रिकॉर्ड में वह आबादी एरिया है  | मुख्यमंत्री ने सिंह गर्जना करते हुए बेटियों के विरूद्ध अपराध करने वालों पर कहर बरसाने का ऐलान कर पूरे प्रदेश में सफेदपोशों के विरुद्ध अभियान चलाने के निर्देश भी दे दिए |

यदि वे ईमानदारी से ऐसा करते हैं तब उसे व्यापक जनसमर्थन मिलेगा | कमलनाथ सरकार के ऐसे अभियान को भी लोगों ने पसंद किया था | लेकिन कुछ दिन चलने के बाद वह अपनी मौत मर गया जिसका कारण सर्वविदित है | शासन और प्रशासन में ऐसी मर्दानगी तभी आती है जब उसके मुंह पर तमाचा पड़ता है | कानपुर वाले विकास दुबे के लम्बे आपराधिक इतिहास के बावजूद उसका घर गिराने का पराक्रम तब जाकर दिखाया गया जब सरकार ने  ये तय कर लिया कि उसे ठिकाने लगाना है | शिवराज सरकार ने प्यारे मियाँ का मैरिज हॉल गिरवाकर ये तो दिखा दिया कि बेटियों के साथ दुष्कर्म करने वाले  के प्रति वह बेहद  कठोर है , फिर चाहे वह पत्रकार ही क्यों न हो ? लेकिन क्या भोपाल में बैठे सत्ताधीश  और सत्ता संचालन के सबसे बड़े औजार नौकरशाह इस बात का जवाब देंगे कि प्यारे मियाँ का अवैध निर्माण तोड़ने की प्रेरणा उन्हें अचानक कहाँ से मिल गयी ? 20 वर्ष पहले बिना अनुमति के बने जिस निर्माण के  स्वामित्व का भी अता - पता  न हो उस पर सरकारी अमले की नजर अब तक क्यों नहीं गयी ? नजूल को भी अचानक दिव्य ज्ञान हो गया कि मैरिज हॉल जिस जगह बना था वह आबादी क्षेत्र के  रूप में दर्ज है | प्यारे मियाँ कल तक  अधिमान्य पत्रकार थे | शासकीय आवास भी उन्हें मिला हुआ था | गत दिवस मान्यता और आवंटन रद्द कर दिए गए | हालाँकि इतनी त्वरित कार्रवाई ऐसे ही किसी मामले में फँसे किसी नेता या अधिकारी के विरुद्ध हुई  हो ये किसी को याद नहीं होगा |

प्यारे मियाँ वरिष्ठ पत्रकार कहे  जाते हैं | एक बड़े समूह के उर्दू अख़बार से भी जुड़े रहे | एक  पूर्व मुख्यमंत्री सहित अनेक विशिष्टजनों के साथ उनका दोस्ताना भी अब चर्चा में आ रहा है | अपराध साबित होने पर उन्हें निश्चित तौर पर कठोरतम दंड दिया जाना चाहिये | लेकिन प्रदेश सरकार के मुख्यालय में एक पत्रकार इस तरह की गतिविधियों में लिप्त होकर  अवैध निर्माण कर पैसे कमा रहा हो किन्तु पुलिस और प्रशासन उससे बेखबर बने रहे तो क्या वे भी किसी  न किसी स्तर पर कसूरवार नहीं हैं ? भोपाल के जिला प्रशासन के लिये तो ये शर्म  से डूब मरने जैसी बात है कि उसकी नाक के नीचे एक अवैध निर्माण 20 साल तक इसलिए कायम  रह सका क्योंकि वह एक पत्रकार का था | यदि प्यारे मियाँ अपना कुकर्म उजागर होने के बाद फरार न हुए होते तब क्या मुख्यमंत्री और उनका अमला उस निर्माण की एक ईंट भी खिसकाने की हिम्मत जुटा पाता ? ऐसे ही और भी सवाल हैं |

लेकिन लौट फिरकर बात फिर पत्रकारों पर ही घूम जाती है | वे अपनी बिरादरी में घुस आई बुराइयों के प्रति जिस तरह से आंखें  मूंदे बैठे हैं उसका ही परिणाम है कि अब इस पेशे के प्रति व्याप्त सम्मान दिन ब दिन घटता जा रहा है |

कुछ समय पूर्व संस्कारधानी जबलपुर के पत्रकारों ने फर्जी पत्रकारों की पहिचान करते हुए उनके पर्दाफाश की मुहिम  शुरू की थी | उस दौरान ये बात सामने आई कि पत्रकारों के  नाम पर बनाये गये स्वयंभू संगठन पैसा लेकर सदस्य बनाते हैं , सदस्य को कार्ड भी दिया जाता है | भोपाल में तो शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किये जाने वाले अधिमान्यता कार्ड से मिलता - जुलता परिचय पत्र भी मोटी रकम लेकर देने वाले अनेक संगठन कार्यरत पाए गये | इस तरह प्यारे मियाँ के और भी संस्करण भोपाल से लेकर प्रदेश के कोने - कोने में मिल जायेंगे | दायरे को और फैलाएं तो पूरे देश में ये बुराई व्याप्त  है | 

टीवी पत्रकारिता आने के बाद न जाने कहाँ - कहाँ के चैनलों के  नाम वाले माइक लेकर पत्रकार वार्ताओं में भीड़ मचाने वाले  पैदा हो गये हैं | राजनेता और प्रशासन इनकी असलियत जानने के बाद भी इनसे पंगा लेने से बचते हैं | जिसका लाभ उठाकर ये लोग पत्रकारिता को कलंकित कर रहे हैं | इस वजह  से असली और नकली पत्रकार की पहिचान करना भी मुश्किल हो गया है |

सही बात तो ये है कि हमारे देश में राजनीति और पत्रकारिता दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें न किसी औपचारिक शिक्षा की जरूरत होती है और न ही व्यावसायिक अनुभव की | चरित्र प्रमाणपत्र भी स्वयं ही  जारी कर  लिया जाता है | सबसे बड़ी बात ये है कि नेता और पत्रकार की वरिष्ठ्ता कौन तय करता  है ये भी किसी को नहीं मालूम |

ये बात पूरी तरह सही है कि चंद अपवाद छोड़कर प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कही  जाने वाली पत्रकारिता शेष तीन स्तम्भों के कारनामों का अनुसरण करने में शर्म के बजाय गर्व का अनुभव करने लगी है | और उसी के कारण ऐसे लोग इस क्षेत्र में घुस आये जिनके संदर्भ में ये आलेख लिखने की आवश्यकता पड़ी | सरकार प्यारे मियाँ या उन जैसों की करतूतों  को  भले ही देखकर भी अनदेखा करती रही किन्तु खोजी पत्रकारों की लम्बी - चौड़ी  फौज भी तो अपने बीच बैठे इस तरह के गंदे लोगों को बेनकाब करने के प्रति उदासीन रही | 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो गुस्सा गत दिवस दिखाया उसकी  एक्सपायरी  डेट कब तक है ये देखने वाली बात होगी | राजनीतिक नेता और अधिकारी वर्ग उनके इस अभियान में सहयोग देगा इस पर भी संशय है और अपराधी , माफिया , अतिक्रमणधारियों , अवैध शराब कारोबारी तथा चिटफंड की आड़ में धोखाधड़ी करने वालों के सफाये की मुहिम तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक नेता और नौकरशाह उनके सिर से अपना हाथ हटा नहीं लेते | 

दरअसल उक्त तबका ही तो इनकी कमाई का स्रोत है | और फिर मुख्यमंत्री ने मीडिया माफिया को छोड़ दिया जो बीते कुछ वर्षों के भीतर तेजी से पैर फैला चुका है | बेहतर हो पत्रकार बिरादरी खुद होकर अपने  बीच बैठे अपराधी तत्वों को बेनकाब करें | जिन अख़बार मालिकों ने पत्रकारिता की आड़ में अपना काला कारोबार खड़ा किया उनके यहाँ  नौकरी करने वाले पत्रकार भी क्या कम दोषी हैं ? प्रदेश के कितने पत्रकार संगठन  प्यारे मियाँ के विरुद्ध आवाज उठाते हैं इसका इन्तजार रहेगा |

उल्लेखनीय  बात ये है कि आजकल शासन और प्रशासन भी ऐसे अवसरों को लपकने के लिए  तैयार रहता है जिससे पत्रकारों  को एहसास करवाया जा सके कि ज्यादा मुंह मत चलाया करो ,  हो तो तुम भी हम जैसे ही !

No comments:

Post a Comment