Tuesday 7 July 2020

चीन पर आर्थिक प्रहार करते रहना चाहिए



भारत और चीन के बीच गत दिवस इस बात पर सहमति बन गई कि लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लौट जाएँगी। रक्षा सलाहकारों की फोन पर हुई लम्बी वार्ता में उक्त निर्णय होते ही खबर आई कि दोनों पक्षों के सैनिक गलवान घाटी से वापिस लौटने लगे हैं। यद्यपि अधिकृत सूत्र इस बारे में खामोश हैं। वैसे गत सप्ताह भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में भी काफी कुछ तय हो गया था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा के दौरान चीन को जिस आक्रामक अंदाज में विस्तारवाद के विरुध्द चेतावनी दी गयी , वह कारगर साबित हुई। प्रधानमंत्री का अग्रिम मोर्चे पर जाकर सैनिकों को सम्बोधित करना यूँ तो एक सामान्य प्रक्रिया ही थी। श्री मोदी साल में एक दो बार अग्रिम मोर्चों पर जाकर जवानों के साथ त्यौहार मनाते रहे हैं। लेकिन उनकी हालिया यात्रा जिस पृष्ठभूमि और तनावपूर्ण वातावरण में हुई उसका कूटनीतिक महत्व कहीं ज्यादा था। और उन्होंने अवसर का पूरा-पूरा लाभ लेने का प्रयास भी किया। इस बारे में कहना गलत न होगा कि ये पहला अवसर है जब भारत ने चीन पर चौतरफा दबाव बनाया। 15 जून को गलवान में हुए खूनी संघर्ष में पहले-पहल तो हमारी सैन्य टुकड़ी चीनी धोखेबाजी की शिकार हो गयी किन्तु अगले ही पल भारतीय सेना ने जवाबी कार्र्वाई करते हुए चीन के सैनिकों को बड़ी संख्या में मौत के घाट उतार दिया। उस संघर्ष के बाद सीमा पर युद्ध के बादल मंडराने लगे थे। लेकिन भारत ने चीन के भड़काऊ रवैये से सतर्क रहते हुए बुद्धिमत्ता से काम लिया और आर्थिक हितों को चोट पहुँचाने का बहुप्रतीक्षित कदम उठाकर उसे चौंका दिया। सीमा पर तनाव के बाद जब चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की बात उठी तब वहां के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारतीयों का ये कहकर मजाक उड़ाया कि वे जरूरी चीजों के लिए तरस जायेंगे। लेकिन सरकार द्वारा उठाये गए ताबड़तोड़ क़दमों का जनता ने जिस उत्साह से स्वागत किया उसका चीन पर माकूल असर हुआ। लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब देश भर के फुटकर व्यापारियों ने भी चीनी सामान की खरीदी और बिक्री नहीं करने का फैसला किया। इसके कारण भी सरकार को काफी संबल मिला और प्रधानमंत्री जब लद्दाख गए तब वे पूरे देश से मिले अभूतपूर्व समर्थन के कारण आत्मविश्वास से भरे हुए थे। लद्दाख में सैनिकों को दिए संबोधन के बहाने उन्होंने चीन को सीधे-सीधे बता दिया कि सैन्य कार्रवाई होने पर भारत मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। सीमा पर फ़ौज की तैनाती के साथ ही वायु सेना की प्रभावशाली मौजूदगी से भी चीन पर दबाव बढ़ा। गत दिवस रक्षा सलाहकारों के बीच हुई वार्ता का जो परिणाम सामने आया यदि वह पूरी तरह अमल में आ जाता है तो ये मानकर चला जा सकता है कि सैनिक स्तर का तनाव कुछ कम हो जाएगा। लेकिन इस बारे में आम राय ये है कि चीन के किसी भी आश्वासन पर यकीन करना आत्मघाती  होगा। धोखा देना उसका स्वभाव है और उसमें किसी भी बदलाव की उम्मीद करना व्यर्थ है। ऐसे में भले ही वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लौट जाए लेकिन दोबारा हिमाकत नहीं करेगा, ये मान लेना मूर्खता ही होगी। और इसीलिये इस वर्ष सर्दियों में भी अग्रिम मोर्चों पर सैनिको की तैनाती के साथ ही वायुसेना की सतर्कता आवश्यक रहेगी। लेकिन चीन पर असली दबाव् आर्थिक मोर्चे पर उसके बहिष्कार से ही बनेगा। इस बारे में ज्यादा शोर मचाने की जरूरत नहीं है। जनता, व्यापारी, उद्योगपति और सरकार सब हाल की घटनाओं से अपनी-अपनी भूमिका से अवगत हो चुके हैं। किसे क्या करना है ये बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन थोड़ी सूझबूझ भी दिखानी होगी। मसलन व्यापारिक मामलों में युद्ध की भाषा नुकसानदेह होगी। लिहाजा जिन चीजों का आयात चीन से किया जाना अनिवार्य हो उनको छोड़कर बाकी का निषेध किया जाए। आर्थिक मोर्चे पर किये जाने वाला प्रहार यदि जारी रखा जा सके तो चीन को सोचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। वर्तमान में उसकी ताकत उसकी आर्थिक समृद्धि ही है। जैसे कि संकेत मिल रहे हैं उनके मुताबिक उसके विदेशी व्यापार में जबर्दस्त गिरावट आने से वह काफी परेशान है। भारत में तो उसका विरोध खैर दूसरे कारणों से हो रहा है लेकिन चीनी सामान के आयातक अधिकतर देशों में कोरोना संकट के कारण क्रय शक्ति कम होने से मांग घटी है। इसके अलावा अनेक देश ऐसे भी हैं जो आगे चीन से आर्थिक सम्बन्ध रखने के बारे में उदासीन हो चले हैं। इन सबके कारण भी वह काफी चिंतित है। इसीलिए सीमा विवाद पर अचानक नर्म रुख दिखाने लगा। बावजूद उसके उसकी हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी। गलवान में हुई पिटाई से वह अपमानित महसूस कर रहा है और अवसर मिलते ही उस घटना का बदला लेने की कोशिश करेगा। जैसे कि जानकारी मिल रही है उसके अनुसार भारतीय सेनाएं अब पूरे साल चीन के साथ सटी सीमा पर मुस्तैद रहेंगीं जो कि जरूरी भी है। क्योंकि जऱा सी चूक होते ही चीन अपनी प्रवृत्ति से बाज नहीं आयेगा। इसीलिये दोनों देश के रक्षा सलाहकारों के बीच हुई बातचीत में सहमति बन जाने के बाद भी उसके आर्थिक बहिष्कार की मुहिम जारी रखना चाहिए क्योंकि यही उसका सबसे कमजोर पक्ष है।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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