Monday 13 July 2020

सिंधिया पर निर्भरता कम करने में जुटे शिवराज



बीते मार्च में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा बमुश्किल आज सुबह मप्र मंत्रीमंडल को आकार दे सकी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से कमलनाथ सरकार आसानी से गिर तो गयी लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान को पहली बार ये समझ में आया कि मजबूरी क्या होती है। श्री सिंधिया द्वारा अपने समर्थकों को मनमाफिक विभाग देने की जिद के सामने अंतत: भाजपा को झुकना पड़ा। इस तरह से सत्ता के अब दो केंद्र होंगे। भाजपा में ये मानने वाले काफी हैं कि ये सरकार ठीक तरह से नहीं चल सकेगी और आये दिन हितों की टकराहट देखने मिलेगी। क्योंकि ज्योतिरादित्य के साथ आये विधायकों की वफादारी निश्चित तौर पर बजाय श्री चौहान के अपने नेता के प्रति रहेगी। लेकिन प्रदेश की राजनीति में अभी अनेक मोड़ आने बाकी हैं। आगामी सितम्बर में संभावित विधानसभा के दो दर्जन चुनावों में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये कितने विधायक दोबारा जीतकर आते हैं ये कहना कठिन है। हालाँकि शिवराज और ज्योतिरादित्य के एक साथ आने से निश्चित तौर पर भाजपा का पलड़ा भारी नजर आता है लेकिन भाजपा के भीतर एक वर्ग ऐसा है जो इन दलबदलुओं को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। जो भाजपा विधायक मंत्री नहीं बन सके वे तो रुष्ट हैं ही लेकिन जहां भी उपचुनाव होने वाले हैं वहां 2018 के चुनाव में हारे हुए भाजपा नेता इस बात को सहन नहीं कर पा रहे कि उनकी राजनीतिक जमीन पर किसी और को मकान बनाने की अनुमति दी जा रही है। यद्यपि सत्ता और संगठन के दबाव के कारण वे एक हद के आगे नाराजगी व्यक्त नहीं कर सकेंगे क्योंकि ऐसा करना उनके लिये आत्मघाती होगा। रामकृष्ण कुसमारिया जैसे नेता का हश्र सबके सामने है। लेकिन इसके बावजूद पूरे के पूरे उपचुनाव भाजपा जीत जाए ये जरूरी नहीं है। कुछ में उसके नाराज नेता-कार्यकर्ता तो कुछ में जनता ठिकाने लगायेगी। वैसे भाजपा की सोच इस मामले में बहुत ही साफ है। यदि आधे उपचुनाव भी जीते गये तब भी सरकार के पास बहुमत बना रहेगा। निर्दलीय, सपा और बसपा के विधायकों को निगम आदि का अध्यक्ष बनाकर सत्ता का स्वाद चखाने का काम भी गत दिवस शुरू कर दिया गया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की बड़ा मलहरा सीट के कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने गत दिवस पार्टी छोड़ते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। विधायकी से उनका त्यागपत्र भी आनन फानन में मंजूर करवा दिया गया। भाजपा ने बिना देर किये उनको राज्य नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष बनाकर उपकृत कर दिया। कमलनाथ सरकार के पाले से कूदकर आये निर्दलीय प्रदीप जायसवाल को मंत्री पद नहीं मिल सका तो उन्हें खनिज निगम का अध्यक्ष बना दिया। दोनों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया गया। इस तरह भाजपा ने सिंधिया गुट को भी ये संकेत दे दिया कि वह स्वतंत्र होकर निर्णय करने में सक्षम हैं। कल के घटनाक्रम से ये अंदाज भी लग रहा है कि सिंधिया गुट के दबाव को कम करने के लिए श्री चौहान और भाजपा अभी अपने स्तर पर कांग्रेस के कुछ और विधायक तोड़ेंगे। गत दिवस आये प्रद्युम्न सिंह लोधी पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती से मिलने के बाद भाजपा में आये। पार्टी सूत्रों की मानें तो राजनीतिक सूखे से बचने के लिए कुछ और कांग्रेस विधायक भी पाला बदल सकते हैं। मुख्यमंत्री और भाजपा दोनों को ये समझ में आ गया है कि सभी को मंत्री पद देना नामुमकिन है। इसलिए अब पिछले दरवाजे से सत्ता का प्रसाद बांटने की तरकीब आजमाई जायेगी। ये भी खबर है कि कांग्रेस छोड़कर आने वाले विधायकों में से कुछ को उपचुनाव नहीं लड़ने के लिए भी मनाया जाएगा जिससे भाजपा में असंतोष न फैले। विधायक न रहते हुए भी उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देकर कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति इस तरह तैयार की जा रही है जिससे कमलनाथ कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन सरकार अस्थिर न हो सके। शिवराज सिंह को भाजपा हाईकमान के समक्ष ये भी साबित करना है कि उनके बिना प्रदेश सरकार चलाना सम्भव नहीं होगा। कुल मिलाकर मंत्रियों के विभागों के बंटवारे रूपी एक बाधा पार करने के बाद भी मुख्यमंत्री के लिए नई चुनौतियां आती रहेंगीं। कांग्रेस से आये मंत्रियों की कार्यसंस्कृति पूरी तरह भिन्न होने से भी समस्याएँ आयेंगीं। श्री चौहान के लिए सबसे बड़ी समस्या ये होगी कि ज्योतिरादित्य किसी भी मसले पर उन्हें दरकिनार करते हुए सीधे हाईकमान से बात करते हैं। उनकी उपयोगिता को देखते हुए भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भी उन्हें अतिरिक्त महत्व देने में कंजूसी नहीं कर रहा। राजस्थान में यदि सचिन पायलट की बगावत कारगर हो गयी तब भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में महाराज की हैसियत शिवराज से भी ऊंची हो जायेगी। कांग्रेस में राहुल ब्रिगेड के कुछ और उभरते हुए युवा नेताओं को तोड़ने के अभियान में भाजपा को ज्योतिरादित्य से बड़ी मदद मिलने की उम्मीद जो है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment