Wednesday 15 July 2020

राहुल ब्रिगेड को अपने भविष्य की चिंता सता रही कांग्रेस नहीं जागी तो ऐसे झटके लगते रहेंगे



राजस्थान की राजनीतिक गुत्थी सुलझी अथवा और उलझ गई ये कहना फ़िलहाल बेहद कठिन है | जहां तक सरकार बचाने का सवाल था तो तकनीकी तौर पर अभी भी अशोक गहलोत सरकार के पास बहुमत है | बागी नेता सचिन पायलट को सत्ता और संगठन के पदों से भले  हटा दिया गया हो लेकिन अभी भी उनको कांग्रेस से निष्कासित नहीं किया गया | और वे पार्टी के विधायक दल में ही माने जायेंगे | जैसे कि संकेत हैं वे आज या कल  अपना भावी कदम घोषित करेंगे | यद्यपि इसमें कोई दो राय नहीं कि सचिन की मनुहार करने में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी ,  लेकिन उन्होंने उनसे बात करना तक जरूरी नहीं समझा |  राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा तक को उन्होंने तवज्जो नहीं दी | जिससे स्पष्ट हो गया कि पार्टी के  आला नेतृत्व से वे बहुत ज्यादा दुखी थे |

रही बात पद की तो वे राजस्थान के उपमुख्यमंत्री तो थे ही | भविष्य में सरकार की कमान उनके हाथ ही आने की संभावना भी हर कोई जता रहा था | पार्टी संगठन के भी वे ही मुखिया थे | ऐसे में क्या हो गया कि वे इतने आगे बढ़ गए जहाँ से लौटना संभव नहीं रहा | और किसी वजह से लौटते भी तो अपामान और पराजय का घूँट पीना पड़ता | कांग्रेस का आरोप है कि वे भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं | ऊपरी तौर पर देखें तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि 20 - 30 विधायकों को लेकर सरकार गिराने की जुर्रत तो महामूर्खता होगी | कांग्रेस छोड़कर मप्र की कमलनाथ सरकार गिरवा चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया से सचिन की नजदीकियों के कारण भाजपा और उनके बीच रणनीतिक सामंजस्य बनने की बात तो हर कोई स्वीकार कर रहा है |

लेकिन श्री पायलट ने लगातार ये बात दोहराई  कि वे भाजपा में नहीं जा रहे  | ऐसे  में सवाल उठता है कि जब कांग्रेस में उनके लिए जगह बची नहीं और भाजपा में उन्हें जाना नहीं है तब वे क्या करेंगे क्या ? हाल - फ़िलहाल के लिए कोई क्षेत्रीय पार्टी बना भी  लें तो उसका भविष्य अनिश्चितता के घेरे में ही रहेगा | चुपचाप घर बैठने वाली बात होती तब उन्हें इतना बखेड़ा करने की जरूरत ही क्या थी ? सरकार में क्रमांक दो की हैसियत तो उनकी थी ही | मुख्यमंत्री से थोड़ा सा सामंजस्य स्थापित कर लेते तो सत्ता का सुख भोगते रहते | लेकिन पहले ज्योतिरादित्य और अब सचिन की बगावत केवल सत्ता में हिस्सेदारी का मामला नहीं है |

सचिन को मनाने से मुम्बई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राहुल गांधी की टीम के ही एक  सदस्य मिलिंद देवड़ा ने साफ़ इंकार कर दिया | वहीं स्व. सुनील दत्त की बेटी और मुम्बई से सांसद रहीं प्रिया दत्त ने भी सचिन के विरुद्ध हुई कार्रवाई पर नाराजगी जताकर पार्टी आला कमान के कान खड़े कर दिए हैं | उप्र में भी जितिन प्रसाद नामक राहुल ब्रिगेड के एक सदस्य को सिंधिया और सचिन के रूप में दो युवाओं का बाहर जाना नागवार गुजर रहा है ।

सचिन की आगे की रणनीति कल तक  सामने आ  जायेगी किन्तु  यहाँ सवाल गहलोत सरकार के बचने या गिरने से भी बड़ा है | मप्र की तरह से ही  राजस्थान में भी सचिन के भाजपा में आने की खबरें वहां के भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं  को विचलित कर रही हैं | पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उनको किस हद तक स्वीकार करेंगीं ये बताने वाला कोई नहीं है | सचिन पायलट को मुख्यमंत्री  बनवाकर बाहर से समर्थन देने का विकल्प  भी तलाशा जा रहा होगा | विधानसभा से सचिन समर्थक विधायकों की छुट्टी होने पर थोक  के भाव उपचुनाव होंगे और उनमें  भाजपा की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं |

लेकिन समूचे विवाद की जड़ है राहुल गांधी का नेतृत्व और उनकी अंशकालिक राजनीतिक शैली | कोप भवन में जाकर बैठ जाने के बाद जिस तरह ज्योतिरादित्य और सचिन को अंतिम समय तक मनाने की कोशिशें की गईं यदि वे उनकी नाराजगी का पहला संकेत मिलते ही की गई होतीं तो बात इस हद तक शायद न बिगड़ती | लेकिन इस सबसे हटकर जो बात समझ आती है वह यह कि कांग्रेस के युवा नेतृत्व के दिल में ये धारणा घर करती जा रही है कि पार्टी का  भविष्य अंधकारमय है | ऐसे में उसमें बने रहने से उनका राजनीतिक कैरियर धक्के खाने में ही गुजर जाएगा | जहां तक बात राहुल और प्रियंका की है तो उन्हें राज परिवार की खानदानी हैसियत तो हासिल है ही | संयोगवश राहुल की टीम कहे जाने वाले समूह में ज्योतिरादित्य , सचिन , मिलिंद , जितिन और अब प्रिया  जैसे नेता भी वंशवाद की उपज ही हैं | उनकी पढ़ाई - लिखाई , पेशवर योग्यता और व्यक्तित्व सभी  दरकिनार रह जाते यदि वे क्रमशः माधव राव सिंधिया , राजेश पायलट , जितेन्द्र प्रसाद और सुनील दत्त के बेटे - बेटी न होते | ऐसे में उनका महत्वाकांक्षी होना स्वभाविक है | पिता की मृत्यु ने ही उनके लिए सियासी अवसर पैदा किया था |

 उन्हें लगने लगा कि राहुल तो गांधी परिवार की विरासत का लाभ लेते हुए महत्वपूर्ण बने रहेंगे लेकिन कांग्रेस नामक जहाज के डूबते जाने की आशंका दिन ब दिन प्रबल होने से उनका अपना भविष्य चौपट हो जाएगा | इस युवा नेताओं का झगड़ा दरअसल न कांग्रेस की नीतियों से है और न ही राहुल से | इन सबको इस बात की  चिंता है कि कांग्रेस का भविष्य जिस तरह से अनिश्चित होता जा रहा है उसे देखते हुए अगले चुनाव में भी उसकी वापिसी के आसार नजर नहीं आ रहे | ऐसे में अपना भविष्य बचाने  की गरज से ये सब समय रहते सुरक्षित  हो जाना चाहते हैं |

कांग्रेस का ये  कहना शत - प्रतिशत सही है कि उसने इन सबको बेहद कम उम्र में बहुत  कुछ दिया किन्तु ये भी उतना ही सच है कि कांग्रेस ने इन सभी के पिता के नाम को भुनाने के लिए इनका उपयोग किया | वरना तो ये सभी पढ़ने - लिखने के बाद अन्य काम कर रहे थे | कांग्रेस ने सभी दिवंगत नेताओं के बेटे - बेटियों को तो उपकृत नहीं  किया | एक बार सियासत में आने के बाद इनके मन में भी लड्डू फूटने लगे तो आश्चर्य कैसा ?  

उस दृष्टि से कांग्रेस को ये समझ लेना चाहिए कि जिन युवा नेताओं को वह भविष्य में अग्रणी पंक्ति का योद्धा बनाना चाह रही थी वे सभी सेनापति की अक्षमता का आकलन करने के बाद खेमा बदलने की  मानसिकता बना बैठे हैं | और आज के दौर में इसमें कुछ भी  अटपटा नहीं है  | एक जमाने में जब ज्योतिरादित्य के स्वर्गीय पिता अपनी माँ राजमाता विजयाराजे  की इच्छा के विरुद्ध कांग्रेस में गये थे तब वे भी अपने सुरक्षित भविष्य के प्रति चिंतित थे |

कांग्रेस को इस मानसिकता को गम्भीरता से समझ लेना चाहिए | उसके लिए चिंता का विषय कुछ राज्य सरकारें नहीं बल्कि गांधी परिवार विशेष रूप से राहुल और अब उनकी बहिन प्रियंका के नेतृत्व की प्रति बढ़ता अविश्वास ही है | यदि इन बानगियों के बाद भी कांग्रेस खुशफहमी में बैठी रही तो  उसे ऐसे झटके लगातार लगते रहेंगे | जहां तक बात भाजपा पर खरीद - फरोख्त का आरोप लगाने की है तो ये भारतीय राजनीति के बदलते हुए चरित्र की पहिचान है | राजस्थान में बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल करने का दांव क्या मुफ्त में संभव हुआ ? कमलनाथ सरकार ने भी तो बाहरी समर्थन का जो जुगाड़ किया वह भी निःशुल्क नहीं माना जा सकता |

आने वाले दिनों में कांग्रेस से और भी लोग इसी तरह टूटें तो अचरज  वाली बात नहीं रहगी | आजदी के बाद पंडित नेहरु ने तमाम समाजवादी नेताओं को धीरे - धीरे कांग्रेस में खींचकर समाजवादी आन्दोलन को बहुत नुकसान पहुंचाया था | भाजपा भी अब सत्ता में आने और उसमें बने रहने के कांग्रेसी गुर सीखती जा रही है | जब नवजोत सिद्धू और शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में आये तब वह खुश थी , अब भाजपा की बारी है |

हाँ ,  एक बात और है | सचिन पायलट कश्मीर की नेशनल कान्फ्रेंस नेता फारुख अब्दुल्ला के दामाद हैं | ऐसे में उनकी बगावत को कश्मीर की  भावी राजनीति से जोड़कर देखा जाना गलत नहीं होगा ।

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