Friday 3 July 2020

विस्तारवाद नामक तीर सही निशाने पर जाकर लगा चीन का अपराधबोध निकलकर बाहर आया





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को  सुबह - सुबह लेह जा पहुंचे | वहां उन्होंने फौजी अफसरों से हालात का जायजा लिया , 11 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित अग्रिम पोस्ट नीमू में जवानों के बीच आधा घंटा भाषण देकर उनके प्रति अपना सम्मान जताया  | लद्दाख स्थित सेना के  अस्पताल में भर्ती उन जवानों का हालचाल देखा  जो विगत 15 जून को गलवाल घाटी में हुए  संघर्ष में घायल हो गये थे | इसके पीछे उद्देश्य  सैनिकों का हौसला बढ़ाने के साथ ही ये सन्देश देना था कि राजनीतिक नेतृत्व और समूचा देश आपके साथ है और आपकी हर तकलीफ के प्रति संवेदनशील तथा राष्ट्रभक्ति के समक्ष  नतमस्तक है | 

लेकिन श्री मोदी ने सैनिकों को दिए  संबोधन में जो कूटनीतिक सन्देश दिया वह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते समीकरणों का संकेत है | दो दिन पहले ही उनकी  रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत हुई | और उसके पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस.जयशंकर भी  रूस गये थे |  रक्षामंत्री ने रूस से प्राप्त होने वाले लड़ाकू विमान सहित अन्य सैन्य  सामग्री की  तत्काल आपूर्ति सुनिश्चित की तो विदेशमंत्री ने चीन के साथ चल रहे तनाव के मद्देनजर  समर्थन प्राप्त करने के लिए कूटनीतिक जमीन तैयार की | उसके बाद प्रधानमंत्री ने श्री पुतिन से बात कर उन्हें  भारत के पक्ष में करने का जो प्रयास किया गया वह कारगर रहा | अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया , जापान के साथ ही दुनिया के कुछ महत्वपूर्ण देशों के राष्ट्रप्रमुखों से बातचीत करते हुए  उन्होंने भारत के पक्ष में माहौल बनाने में भी कामयाबी  हासिल की |

चीन सरकार द्वारा हांगकांग में किये जा रहे दमन के विरुद्ध भारत ने तो संरासंघ   मानवाधिकार परिषद में मुखर होकर अपनी बात रखी  और वहां  रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा के प्रति अपनी चिंता से विश्व बिरादरी  को अवगत करवाया | लेकिन दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान द्वारा हाल ही में संरासंघ में भारत  के विरुद्ध जब भी कोई मोर्चेबंदी की गई तो विश्व के ताकतवर देश भारत के साथ खड़े आये | 

इसीलिये गत दिवस  प्रधानमंत्री का लेह पहुंचना बहुउद्देशीय था | अग्रिम पोस्ट तक जाकर जवानों को संबोधित करते हुए उनके शौर्य की प्रशंसा करते हुए उन्होंने ये संकेत दे दिया कि लद्दाख को लेकर किसी भी तरह  का दबाव या समझौता मंजूर नहीं  होगा | और  साफ़ - साफ़ कह दिया कि लद्दाख का पूरा हिस्सा भारत का मस्तक है |साथ ही  सेना को ये आश्वासन भी दे दिया गया कि उनकी हर जरूरत पूरी   की जा रही है | उनके साथ चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और थलसेना अध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे का होना भी  काफी कुछ कह  गया |

लेकिन प्रधानमंत्री ने ये कहकर वैश्विक राजनीति का एजेंडा तय करने का जोरदार प्रयास किया कि विस्तारवाद का युग समाप्त हो चुका  है | ये युग विकासवाद का है | अतीत में विस्तारवाद ने ही मानवता का विनाश करने का प्रयास किया | विस्तारवाद की जिद से जो भी प्रेरित हुआ उसने हमेशा विश्व शान्ति के सामने खतरा पैदा किया है | और ऐसी ताकतें मिटने  या मुड़ने के लिए मजबूर हो गईं | इसके साथ ही श्री  मोदी ने ये भी कहा कि पूरे विश्व ने विस्तारवाद के  खिलाफ मन बना लिया है |

प्रधानमंत्री द्वारा सैनिकों के सामने बोली गईं उक्त पंक्तियाँ दरअसल इस समूचे विवाद में चीन के विरुद्ध सबसे बड़ा कूटनीतिक हमला था | विस्तारवाद के विरुद्ध पूरे विश्व की मंशा को व्यक्त करना आसान बात नहीं थी | और फिर जिस जगह उन्होंने उक्त वक्तव्य दिया वह कोई अंतर्राष्ट्रीय मंच न होकर देश का वह सीमान्त था जहां बीते कुछ समय से युद्ध का अघोषित माहौल बना हुआ है | कई स्थानों पर तो भारत और चीन के सैनिक बहुत ही पास  हैं | लड़ाकू विमान , मिसाइलें , राडार , तोपें और  टैंकों के साथ ही हजारों  सैनिकों की तैनाती से युद्ध संबंधी तैयारी का पता चल जाता है | यद्यपि दोनों देशों के उच्च सैन्य अधिकारी प्रति सप्ताह लम्बी वार्ताएं करते हुए सेना पीछे हटाने के तौर तरीके तलाश रहे हैं | दो दिन पहले ही चरणबद्ध तरीके से अग्रिम मोर्चों से सैन्य वापिसी का निर्णय हुआ था | लेकिन चीन बातचीत के साथ ही घुसपैठ और कब्जे की हरकत से बाज नहीं आ रहा | उसके हर कदम के जवाब में भारत ने  जिस तरह की मोर्चेबंदी की उससे वह चौंकन्ना हो गया है |

उसे ये उम्मीद थी कि समूचे लद्दाख सेक्टर में घुसपैठ कर वह हमेशा की तरह थोड़ी - थोड़ी जमीन दबाता जायेगा और भारत तनाव से बचने के लिए रक्षात्मक  बना रहेगा | लेकिन इस बार उसे न केवल सैन्य मोर्चे पर अपितु कूटनीतिक क्षेत्र में भी भारत की तरफ से अप्रत्याशित चुनौती का सामना करना पड़ रहा है | इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि पहले  इस तरह की  स्थिति में भारत शान्ति की दुहाई देता रहता था जबकि चीन हमेशा अकड़कर  बात किया करता था | लेकिन इस बार भारत आक्रामक रवैया दिखा रहा है जबकि चीन बार - बार शान्ति से विवाद सुलझाने की रट लगाये हुए है | लद्दाख में आज प्रधानमंत्री ने विस्तारवाद का उल्लेख तो किया किन्तु किसी  का नाम लिए बगैर | इस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिना देर किये सवाल उठा दिया कि श्री मोदी ने चीन का नाम क्यों नहीं लिया ?

लेकिन चीन को श्री  मोदी के भाषण के विस्तारवाद वाला वह एक पैराग्राफ बहुत अंदर तक चुभ गया | उसका अपराधबोध उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता की उस सफाई से व्यक्त हो गया जिसमें विस्तारवाद के आरोप से इंकार करते हुए सफेद  झूठ बोलते हुए  कहा गया कि वह  अपने 14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद शांति वार्ता के जरिये सुलझा चुका है  | उसे ये बात भी नागवार गुजरी कि जब भारत और चीन के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी तनाव कम करने के लिए वार्तारत हों तब भारत के प्रधानमंत्री ने अग्रिम मोर्चे पर जाकर चीन को घेरने की कोशिश की | इस तरह उसको ये लगने लगा कि भारत पहली बार आक्रामक मुद्रा में है और  विश्व जनमत मौजूदा हालातों में चीन के साथ नजर नहीं आ रहा | उल्टे अधिकतर बड़े और प्रभावशाली देश भारत का समर्थन कर रहे हैं | रूस और अमेरिका के  अलावा फ़्रांस और इजरायल ने जिस तत्परता से भारत की रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए हाथ आगे बढ़ाये वह चीन की परेशानी का सबब बन गया |

भारत द्वारा लगाये जा रहे गये व्यापारिक प्रतिबंधों पर शुरुवात में तो चीन सरकार  ने  मजाक उड़ाते हुए कहा  कि भारत के लोग जरूरी चीजों के लिए तरस जायेंगे किन्तु जब प्रतिबंध और बढ़े तब चीन द्विपक्षीय व्यापार को दोनों के हित में बताने जैसी चिकनी - चुपड़ी बातें करने लगा | इससे साबित हो जाता है कि अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के मद में चूर चीन को ये तो लगने ही लगा कि भारत हर तरह से निपटने तैयार है | मौजूदा संकट के प्रारंभिक दौर में भारतीय सेना की तैयारियों का मखौल भी चीन के सरकारी मीडिया ने ये कहते हुए उड़ाया था कि भारत आग से खेलने का दुस्साहस कर रहा है | लेकिन गलवाल में हुई मुठभेड़ के बाद अब वह शांति के साथ निपटारे जैसी बातें दोहरा रहा है | लेकिन भारत ने उसके दोगलेपन  को भांपते हुए सीमा पर जबरदस्त तैयारी के जरिये चीन  को संकेत दे दिया कि युद्ध हुआ तो भारत की सेना धरती  और आकाश दोनों में भारी पड़ेगी |

चीन का एक और दांव जो बेकार जाता दिख रहा है वह नेपाल | भारत से दो - दो  हाथ करने का दम्भ भर रहे उसके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली खुद अपनी गद्दी बचाते घूम रहे हैं | चीन को लगता था कि भारत में राजनीतिक मतभेद सरकार के मनोबल को तोड़ देंगे  लेकिन इक्का - दुक्का नेताओं के अलावा अधिकतर  विपक्ष इस समय सरकार और सेना के साथ खड़ा हुआ है | जबकि चीन के भीतर सरकार के विरोध में असंतोष की  चिंगारी नजर आने लगी है | कहाँ तो वह भारत को आग से न खेलने की नसीहत दे  रहा था और कहाँ अपनी जनता के गुस्से से बचने के लिए गलवाल में मारे गये सैनिकों के नाम और संख्या बताने की  हिम्मत तक जिनपिंग सरकार की नहीं पड़ रही |

भारत के प्रधानमंत्री की  गत दिवस संपन्न लद्दाख यात्रा के दौरान विस्तारवाद पर जिस तरह का तीखा हमला उनके द्वारा बोला गया वह वैश्विक राजनीति में चीन के विरुद्ध नई  मोर्चेबंदी का आधार बनेगा | लगे हाथ खबर आ गई कि चीन और रूस के बीच भी सीमा विवाद बना हुआ है |

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