चीन के 59 एप प्रतिबंधित किये जाने के बाद जो जानकारी आ रही है उससे ये उजागर हुआ कि भारतीय समाज में चीन की पैठ कितनी गहराई तक हो चुकी थी । टिक टॉक नामक एप के दुनिया भर में कुल उपयोगकार्ताओं में से एक तिहाई तो भारत में ही थे । हमारे युवा और किशोर इन एप के जरिये एक अलग दुनिया में जीने की स्थिति में जा पहुंचे थे जो उन्हें स्वछन्द बना रही थी । इनके जरिये प्रतिदिन करोड़ों रूपये की कमाई चीनी कम्पनियाँ कर रही थी । कहने को तो ये चीनी अर्थव्यवस्था का बहुत ही छोटा सा हिस्सा है किन्तु यहाँ सवाल नफे - नुकसान से ज्यादा राष्ट्रीय सम्मान का है । चीन से होने वाले व्यापार में घाटा भी एक बार बर्दाश्त किया जा सकता था किन्तु सीमा पर की जा रही शत्रुतापूर्ण कार्रवाई के बाद उसे झटका देना जरूरी हो गया था । 21 वीं सदी की दुनिया में सामरिक शक्ति से भी बढ़कर आर्थिक दबाव कारगर होने लगा है । चीन ने अपनी सैन्य शक्ति में चाहे कितनी भी वृद्धि क्यों न कर ली हो किन्तु उसका वैश्विक उभार उसकी आर्थिक उन्नति पर आधारित है । इसीलिये भारत द्वारा उठाये गये छोटे से कदम पर उसकी जो प्रतिक्रिया आई उसमें दम्भ और खीझ दोनों झलक रहे हैं । ये बात बिलकुल सही है कि 59 चीनी एप पर प्रतिबन्ध पहले ही लग जाना चाहिए था । भारत का उद्योग व्यापार जगत अरसे से मांग करता आ रहा है कि चीन से आयातित चीजों पर शुल्क बढ़ाया जाए जिससे घरेलू उत्पादकों की कंगाली दूर हो सके । हालांकि केंद्र सरकार ने बीते कुछ समय से इस दिशा में कदम उठाने शुरू भी कर दिए थे किन्तु कहीं न कहीं सरकार के पैर ठिठक जाते थे । इसका कारण शायद कूटनीतिक संतुलन रहा होगा । हालाँकि सीमा पर चीन का रवैया सामान्य समय में भी सदैव तनाव पैदा करना वाला रहा । उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार जब भारत आये उसी समय अरुणाचल में चीन ने घुसपैठ की कोशिश की थी । संयोग से इस साल भारत - चीन मैत्री की 70 वीं वर्षगांठ है । दोनों देशों में राजनयिक स्तर पर इसे यादगार बनाने की तैयारियां चल रही थीं किन्तु लद्दाख में चीनी सेना द्वारा जिस तरह की हरकतें की गईं उनके बाद उस अवसर की स्मृतियाँ कड़वाहट में बदल गईं । गलवाल घाटी में हुए खूनी संघर्ष के बाद तो हालात और भी संगीन हो गये और तब जनमत के गुस्से से बचने के लिए भारत सरकर ने पहले तो चीनी सामान के उपयोग को सरकारी दफ्तरों में प्रतिबंधित किया । फिर चीनी कंपनियों के साथ किये अनेक निर्माण कार्यों के अनुबंध खत्म करने के साथ आयात शुल्क में वृद्धि के जरिये चीनी सामान को महंगा करते हुए भारतीय उत्पादों को सहारा देने का प्रयास किया गया । लेकिन इन सबसे जनता के मन में चीन के प्रति उमड़ रहा गुस्सा ठंडा नहीं हो रहा था । संभवत: इसीलिए सरकार ने उन एप को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया जिनसे युवा पीढी सीधे जुड़ी हुई है । चीन ने भी इस निर्णय पर जो प्रतिक्रिया दी उससे लगा कि उक्त फैसला उसे वाकई चुभा क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये बना एक नया वैश्विक समाज इस तरह के निर्णयों का त्वरित संज्ञान लेता है । जैसी कि जानकारी आई उसके अनुसार दुनिया के अनेक देश चीनी एप को प्रतिबंधित कर अन्य विकल्प तलाश रहे हैं । बीते दो दिनों में ही भारत का चिंगारी नामक एप देखते - देखते लाखों उपयोगकर्ताओं की पसंद बन गया । ये सवाल भी प्रमुखता से उठ खड़ा हुआ है भारत के विश्वविख्यात सॉUIफ्टवेयर इन्जीनियर क्या करोड़ों भारतीय युवाओं की अभिरुचियों के अनुरूप एप नहीं बना सकते थे जिनके अभाव में वे चीनी एप के मोहपाश में फंसे । लेकिन इसके जवाब में ये सुनाई दे रहा है कि सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने तो अपना काम बखूबी किया किन्तु उनको प्रायोजक / प्रमोटर नहीं मिलने से उनकी मेहनत गुमनामी ,में डूबकर रह गई । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका से दो कॉमिक फीचर सीरीज शुरू हुई । इनमें एक थी फैंटम ( मृत्युंजय या भूतनाथ ) और दूसरी जादूगर मैन्ड्रेक । इनमें मुख्य चरित्र गोरी चमड़ी वाला होता किन्तु उसका सहायक अफ्रीकी मूल का अश्वेत । अखबार और पत्रिकाओं के जरिये उक्त कॉमिक फीचर पूरी दुनिया में स्थानीय भाषाओँ में प्रकाशित होते थे । पत्र - पत्रिकाओं की प्रसार संख्या बढ़ाने में वे काफी सहायक साबित हुए। अनेक दशकों तक उनका डंका बजता रहा । बाद में भारत में चाचा चौधरी जैसे आभासी चरित्र बाजार में उतरे । आदर्श चित्र कथा नामक प्रकाशनों के जरिये भारत के ऐतिहसिक और पौराणिक चरित्रों की जानकारी भी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुई । आज के दौर में वाल्ट डिज्नी द्वारा गढ़े गए मिकी - माउस नामक कार्टून चरित्र पूरी दुनिया के बच्चों की पसंद बने हुए हैं । भारत में भी घरेलू पृष्ठभूमि के अनेक कार्टून चरित्र बच्चों में लोकप्रिय हुए । रामायण और महाभारत के बतौर धारावाहिक प्रसारण ने धार्मिक और पौराणिक चरित्रों पर केन्द्रित धारावाहिक बनाने का रास्ता साफ कर दिया । अनेक फिल्म निर्माताओं ने लैला - मजनू और शीरी - फरहाद की बजाय पद्मावत , बाजीराव , मणिकर्णिका जैसी फिल्में बनाकर ये साबित कर दिया कि दर्शक भारतीय इतिहास में भी रूचि रखते हैं । मिल्खासिंह और महेंद्रसिंह धोनी पर बने जीवनवृत्त भी सराहे गये । ऐसे में यदि भारत के युवा सॉफ्टवेयर इन्जीयरों को मार्केटिंग समर्थन मिल जाये तो वे टिक टॉक से कहीं बेहतर एप बनाकर दुनिया भर में अपना डंका बजा सकते हैं । कहने का आशय ये है कि चीन द्वारा की गयी हरकत की सजा उसे जरूर दी जाए किन्तु विकल्प विकसित करने पर भी ध्यान देना जरूरी है । चीन ने 59 एप प्रतिबंधित किये जाने संबंधी भारत सरकार के निर्णय पर तंज कसते हुए कहा है कि भारत के लोग बेहतर उत्पाद के लिए तरस जायेंगे । इस टिप्पणी में एक तरफ अहंकार तो दूसरी ओर खिसियाहट भरी है । इसका मतलब तीर सही निशाने पर लगा है । अब भारतीय इंजीनियरों को मुकाबले के लिए आगे होगा और बड़े औद्योगिक घरानों को भी , जो एशिया और दुनिया के रईसों की सूची में लगातार ऊपर आते जा रहे हैं । यदि तीन महीनों में भारत पीपीई किट का निर्यात करने की क्षमता अर्जित करने लगा और वेंटीलेटर जैसे उपकरण बनाने में सफल होने के साथ कोरोना की वैक्सीन बनाने के बेहद करीब है तब मनोरंजन आधारित एप बनाना कौन सी बड़ी बात है ? और उस पर भी तब जबकि दुनिया भर में करोड़ों अप्रवासी भारतीय फैले हुए हैं ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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