पाकिस्तान में आतंकवादी हमले कोई नई बात नहीं है | गाहे - बगाहे उसकी सरजमीं पर खूनी मंजर दिखाई दे जाते हैं | गत दिवस देश की व्यवसायिक राजधानी करांची में स्थित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में आतंकवादी हमला हुआ जिसमें चार हमलावरों के अलावा सात अन्य लोग मारे गए | हमलावर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के बताये गए | पाकिस्तान ने इस हमले में भारत का हाथ बताकर ये तो स्वीकार कर ही लिया कि बलूचिस्तान की आजादी के लिए भारत द्वारा समय - समय पर दिये गये नैतिक समर्थन से उसके पेट में दर्द होने लगा है | उल्लेखनीय है भारत के विभाजन के समय बलूचिस्तान के लोग अपने लिए अलग देश की मांग कर रहे थे | लेकिन अंग्रेजों ने पाकिस्तान को फायदा पहुँचाने के लिए उस तरफ ध्यान नहीं दिया | तत्कालीन भारतीय राजनेता भी खंडित देश मिलने की खुशी में ही फूले नहीं समा रहे थे | इसलिए उन्होंने बलूचों को पाकिस्तानी हुक्मरानों के रहमोकरम पर छोड़ दिया | जैसी कि जानकारी है उसके अनुसार सिंध और पंजाब नामक दो रियासतों ने तो पाकिस्तान में शामिल होने के लिए स्वीकृति दे दी थी लेकिन बलूचिस्तान अलग रहना चाहता था । बाद में जिस तरह से पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबायली हमले के जरिये हमारे बड़े भूभाग पर कब्जा जमा लिया ठीक उसी तरह बलूचिस्तान पर भी जबरन आधिपत्य जमाकर उसे अपना प्रान्त बना लिया | पाक अधिकृत कश्मीर पर तो भारत अपना अधिकार जताते हुए वहाँ की विधानसभा सीटें खाली रखता है लेकिन बलूचिस्तान की आजादी का संघर्ष यूँ तो दुनियां भर में फैले बलूच चलाया करते हैं लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी ने जितनी रूचि अफगानिस्तान में ली उतनी कभी बलूचिस्तान में नहीं दिखाई | जबकि वहां के लोग बीते छह दशक से भी ज्यादा से पाकिस्तानी अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे हैं | अफगानिस्तान की तरह ही बलूचिस्तान में अभी भी काफी हिन्दू आबादी रहती है | अतीत में ये हिन्दू बहुल क्षेत्र ही था लेकिन कालान्तर में बलात धर्मपरिवर्तन के जरिये उसे इस्लामिक बना दिया गया | लेकिन आज भी पूरे बलूचिस्तान में हिन्दी और हिन्दू रीति - रिवाज का बोलबाला है | केंद्र में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद जब लालकिले की प्राचीर से बलूचिस्तान की आजादी का समर्थन किया तब उसे पाक अधिकृत कश्मीर पर पाकिस्तान के कब्जे के जवाब में कूटनीतिक पैंतरा माना गया | बीच - बीच में तो इस आशय के समाचार भी आते रहे कि भारत बलूचिस्तान में बांग्ला देश जैसी कार्रवाई कर सकता है | श्री मोदी द्वारा दिए गए सांकेतिक समर्थन के बाद वैश्विक स्तर पर बलूचों द्वारा अपनी आजादी के लिए प्रदर्शन किये गए | संरासंघ से भी पाकिस्तानी कब्जे से मुक्ति दिलवाने की अपील वे करते रहते हैं | पाकिस्तान ने न सिर्फ बलूचिस्तान के खनिज एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का जमकर शोषण किया अपितु बलूच नस्ल को नष्ट करने के लिए वैसे ही अत्याचार वहां किये जाते हैं जैसे चीन तिब्बत में करता आ रहा है | पाकिस्तानी सेना ने जिस प्रकार बांग्ला देश के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान वहां की महिलाओं के साथ दरिंदगी की , ठीक वैसी ही नीचता वे बलूचिस्तान में करते हैं | इस कारण वहां सशस्त्र संघर्ष की जमीन तैयार होने लगी जिसकी बानगी गत दिवस करांची के स्टॉक एक्सचेंज में हुए हमले के तौर पर सामने आई | आतंकवादी घटना का कोई भी समझदार देश समर्थन नहीं करता | भारत तो खुद उसका भुक्तभोगी है लेकिन पाकिस्तान ने जिस आतंक के बीज अपनी धरती पर बोये अब उनकी फसल तैयार होकर उसके लिए ही सिरदर्द बन रही है | अफगानिस्तान के तालिबानी भी पाकिस्तान के सीमान्त इलाके पर निगाह जमाये हैं | यूँ भी पठान पाकिस्तान को पसंद नहीं करते | अमेरिका के साथ उसके रिश्ते तालिबानों की आँख में हमेशा चुभते रहे हैं | ऐसे में बलूचिस्तान में सशस्त्र विरोध की शुरुवात पाकिस्तान के खस्ताहाल भीतरी हालात के लिए गम्भीर खतरा बन सकती है | पाकिस्तान ने भारत का हाथ करांची की घटना के पीछे बताकर कोई तीर नहीं मार लिया | भारत द्वारा बलूच लोगों की आजादी को नैतिक समर्थन देना बहुत ही दूरदर्शी कूटनीतिक दांव है | यद्यपि कुछ लोगों का ये कहना भी है कि बलूचिस्तान की आजादी का खुला समर्थन पाकिस्तान को कश्मीर में दखल का अवसर प्रदान करेगा लेकिन दोनों मुद्दों में बुनियादी अंतर ये है कि कश्मीर को पाकिस्तान अपना हिस्सा बनाना चाहता है जबकि बलूचिस्तान की आजादी से भारत को कोई लाभ नहीं होगा | ऐसे में पाकिस्तान द्वारा गत दिवस हुए आतंकवादी हमले को भारत द्वारा प्रायोजित बताना उसक अपना अपराधबोध है | इस हमले ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है | बड़ी बात नहीं कोरोना संकट के बाद चीन के विरद्ध बन रहे वैश्विक जनमत के कारण अब विकसित देश बलूचिस्तान की आजादी के संघर्ष की तरफ ध्यान दें क्योंकि इसी प्रांत से होकर चीन ग्वादर बन्दरगाह तक पहुंचने का रास्ता बना रहा है | उस दृष्टि से इस घटना का समय बहुत ही महत्वपूर्ण है | ये भी हो सकता है कि अफगनिस्तान से निकलने के लिए अमेरिका भी किसी नजदीकी जगह पर डेरा ज़माने की फिराक में हो जो ईरान ,और अफगानिस्तान के अलावा चीन पर भी नजर रहने में सहायक होगा | बड़ी बात नहीं निकट भविष्य में बलूचिस्तान एशिया के साथ ही दुनिया भर की राजनीति क बड़ा केंद्र बन जाए | हालाँकि रूस ये पसंद नहीं करेगा कि मध्य एशिया के उसके पुराने हिस्सों के नजदीक अमेरिका का जमावड़ा हो | और चीन के लिए तो वैसा होना मुंह से निवाला छिन जाने जैसा होगा |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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