चीन से शांति होने पर भी ये क्रम रुकना नहीं चाहिए
भारत के इस कदम से दूसरे देशों का साहस भी बढ़ेगा
बीते वर्ष अगस्त महीने के आखिरी हफ्ते की बात है | दोपहर के समय जबलपुर स्थित होटल सत्य अशोका में एक बैठक से भाग लेकर मैं और होटल के संचालक Kamal Grover बाहर आ रहे थे | अचानक प्रवेश द्वार पर मंगोलियन नैन - नक्श वाली एक युवती भीतर आती हुई दिखी | रिसेप्शन पर अपने कमरे की चाभी लेने के दौरान श्री ग्रोवर ने उससे अंग्रेजी में पूछा क्या आप यहीं ठहरी हैं ? उसके सकारात्मक उत्तर के बाद मैंने जिज्ञासावश उसके देश का नाम पूछा तो उसने चीन बताया | ये सुनते ही हम लोग थोड़ा चौंके क्योंकि होटल में रुकने वाले जापानी मेहमानों से तो अक्सर लॉबी में मुलाक़ात होती रही | उसके एक साल पहले हांगकांग में निवासरत जबलपुर मूल के Sanjay Nagarkar चीन के कुछ युवा निवेशकों को यहाँ लाये थे | वे भी संयोगवश इसी होटल में रुके थे और उन्होंने उनसे मुलाकात करवाई थी | लेकिन चीनी नागरिक जबलपुर अपवादस्वरूप ही आते हैं | इसलिये उस युवती द्वारा अपने देश का नाम चीन बताये जाने से हमारा चौंकना स्वाभाविक था | होटल के संचालन में विदेशी पर्यटकों के बारे में अतिरिक्त जानकारी प्रबंधन द्वारा रखी जाती है | रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि वह युवती दो दिनों से ठहरी हुई थी और उसके दल में कुछ और युवतियां भी हैं ?
वह चूँकि होटल के प्रवेश द्वार से पैदल ही आई थी इसलिए पता करने पर बोली कि पास ही Dosa Crush में डोसा खाने गई थी | इस पर श्री ग्रोवर ने उससे कहा कि आपने होटल में ऑर्डर कर दिया होता | ये सुनकर उसके मुंह से निकला , अच्छा | अपनी भाषा के प्रति काफी आग्रही माने जाने वाले चीन के किसी व्यक्ति से सहसा हिन्दी का शब्द सुनकर हैरत हुई | और तब मैंने उससे हिन्दी में ही पूछा , आप हिन्दी जानती हैं तो उत्तर हाँ में मिला | कहाँ सीखी पूछने पर उसने बताया कि प्रारंभिक ज्ञान चीन में लेने के बाद महाराष्ट्र के वर्धा में बाकायदा हिन्दी का विधिवत अध्ययन किया और प्रख्यात कवियत्री स्व. महादेवी वर्मा पर शोध भी किया |
उसके इतना कहते ही वार्तालाप में मेरी रूचि और बढ़ी | जबलपुर आने का प्रयोजन पूछने पर उसने बताया कि वह और उसके साथी यहाँ Likee नामक एक app की मार्केटिंग के लिए आये हुए थे | और शहर के विभिन्न महाविद्यालयों के छात्र - छात्राओं को उसके बारे में जानकारी प्रदान करने सम्पर्क कर रहे थे | पता चला कि वे कुछ दिन और ठहरेंगे तो दो दिन बाद चीन पर चर्चा हेतु चाय के समय बैठना तय किया गया | मैंने सोचा कि उससे महादेवी जी के बारे में कुछ सवाल पूछूंगा ताकि मालूम हो सके कि वह सच बोल रही थी अथवा नहीं ?
दो दिन बाद नियत समय पर जब दोबारा भेंट हुई तब संवाद हिन्दी में ही शुरू हुआ और कुछ देर में ही स्पष्ट हो गया कि वर्धा में हिन्दी साहित्य की शिक्षा लेने की उसकी बात सही थी | उसके कार्य के बारे में पूछने पर पता चला कि वह जिस app की मार्केटिंग हेतु आई वह एक चीनी कम्पनी का था जिसका प्रधान कार्यालय नाम के लिए तो सिंगापुर में पंजीयत था लेकिन पूरा कारोबार मुम्बई से चलता था | उसका कारण उसने सिंगापुर में कार्पोरेट दफ्तर के लिए जरूरी स्थान का बहुत महंगा होना बताया | बात आगे बढ़ी तो ज्ञात हुआ वह app शैक्षणिक न होकर मनोरंजन आधारित था जिसका इस्तेमाल आमतौर पर युवा जन करते थे | इसीलिये उसने महाविद्यालयों को अपना केंद्र बनाया तथा कुछ के नाम भी हमसे पूछे | चाय के साथ कुछ और लेने के बारे में उसने स्पष्ट किया कि वह भारतीय व्यंजन बहुत पसंद करती है और तीखी मिर्च से भी उसे परहेज नहीं |
लेकिन मेरी रूचि उससे चीन के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण के बारे में जानने की थी | अपना app भारत में बेचने आई उस युवती ने बताया कि उसके देश में फेसबुक ,ट्विटर आदि प्रतिबंधित हैं तथा चीन ने अपना अलग सोशल मीडिया विकसित कर रखा है | जब उससे चीन और भारत के बीच मौलिक अंतर की बात जाननी चाही तो वह तपाक से बोली इन्फ्रास्ट्रक्चर ( बुनियादी ढांचा ) | सड़कों के गड्ढे और जगह - जगह भरे पानी का उसने विशेष उल्लेख किया | चीन के ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों के महंगा होने की बात कहते हुए उसने अनेक ऐसी बातें बताई जिनसे पता चला कि साम्यवाद की आड़ में वहां की सरकार भी लोगों से खूब कर् बटोरती है | उसके अनुसार शहरों में निजी मकान होने पर भी प्रति माह निश्चित राशि शासन को देनी होती है |
चाय पीकर वह किसी काम से चली गयी | अगले दिन उसके सभी साथियों से भेंट हुई | जिनकी हिन्दी - अंग्रेजी काम चलाऊ थी | लेकिन वे भारतीय फिल्मों और हीरो - हीरोइनों के दीवाने तो थे ही साथ में उन्हें दाल मखनी , बिरयानी , चिली पनीर जैसे भारतीय व्यंजन उनको बहुत पसंद थे और वे होटल में भारतीय भोजन ही करते रहे | उसी समय दिल्ली से आज तक चैनल के एग्जीक्यूटिव एडीटर Sanjay Sinha और उनकी धर्मपत्नी भी पधार गए | संयोगवश उसी समय श्री सिन्हा का नियमित शो टीवी पर प्रसारित होने लगा | तब उन्हें साथ में बैठा देखकर वे सभी बड़े रोमांचित हो उठे मानो किसी फ़िल्म स्टार से रूबरू मिल रहे हों | सिन्हा परिवार से मिलने आईं मेरी पत्नी भी उस वार्तालाप में शामिल हो गई |
मैंने अवलोकन किया कि जितना हमने दल की मुखिया से उसके व्यवसाय और चीन के बारे में पूछा उतना ही वह भी भारतीय समाज के बारे में पूछती रही | साम्यवादी शासन व्यवस्था में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने से उसने अनेक प्रश्नों के उत्तर या तो टाल दिए या घुमा - फिराकर दिए | यद्यपि उस दबाव को वह कुशलता पूर्वक छिपा गई , जो शायद मार्केटिंग के गुर जानते समय उसने सीखा हो |
बातचीत तो चाय और भारतीय व्यंजनों के साथ समाप्त हो गई | लेकिन उसके बाद से मैं सोचता रहा कि जो चीन दूसरे देशों के संचार माध्यम अपने यहाँ घुसने नहीं देता वह कितनी चालाकी से सहजता के साथ हमारे देश के भीतर अपने app युवाओं में बेचकर अपने व्यावसायिक कौशल का प्रदर्शन करता रहा | बात आई - गई हो चुकी थी | उस दौरान प्राप्त जानकारी जरूर बतौर पत्रकार मेरे स्मृति कोष में सुरक्षित हो गई | अचानक बीती शाम सुना कि भारत सरकार ने 59 चीनी app प्रतिबंधित कर दिए तो अचानक वह मुलाकात याद आ गई |
सूची देखने पर Likee भी नजर आया तब पूरा वृतान्त स्मृतिपटल पर सजीव हो उठा | इस सरकारी कार्रवाई का कारण वैसे तो इन app के जरिये उपयोगकर्ताओं ( Users ) की व्यक्तिगत जानकारी ( Data ) हासिल करना बताया गया , जो काफी ऊँची कीमत पर बिकती है | कहा जाने लगा है कि संचार क्रांति और बाजारवाद के इस युग में जिस देश के पास जितना डाटा होगा वह उतना ही ताकतवर और समृद्ध होगा |
और इसी से याद आया कि अक्सर सोशल मीडिया के विभिन्न स्तम्भों मसलन फेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम और व्हाट्स एप के माध्यम से उपयोगकर्ता की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करने के बाद मार्केटिंग और सर्वेक्षण एजेंसियों को बेची जाती है | बिना घर से निकले इन संस्थानों को दुनिया भर के करोड़ों लोगों के विचार ,अभिरुचियां , राजनीतिक झुकाव आदि का विवरण हासिल हो जाता है | चीन वैसे तो दुनिया भर के बाजारों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है लेकिन उसने अमेरिकी नियन्त्रण वाले सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी जनता का डाटा दुनिया भर में फैलने पर रुकावट पैदा कर रखी है किन्तु भारत में अपने app के जरिये देश के भीतरी हिस्सों में अपने युवाओं के दल भेजकर हमारे यहाँ की नौजवान पीढ़ी का पूरा डाटा बटोरने में कामयाब हो गया | ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि चीन सीमाओं पर शत्रुतापूर्ण व्यवहार न करता तो हमें इन app की खबर ही नहीं रहती | बावजूद इसके सरकार द्वारा इसे देर से उठाया गया सही कदम कहा जाएगा |
अब जब भारत सरकार ने चीन के आर्थिक हितों की कमर तोड़ने का मन बना ही लिया है तब ये क्रम रुकना नहीं चहिये | फिर चाहे सीमा पर विवाद का शांतिपूर्ण हल ही क्यों न हो जाए । देखने वाली बात ये भी है कि अग्रेजी में महारत नहीं होने से प्रारम्भ में साफ्टवेयर विकसित करने के बारे में भारत से पिछ्ड़ने के बाद चीन ने अपनी युवा पीढ़ी को न सिर्फ अंग्रेजी बल्कि हिन्दी भी सिखाना शुरू कर दिया जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैंने खुद देखा | 59 app पर रोक लगाने से चीन को कितना आर्थिक नुकसान होगा ये उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना ये कि कम से कम भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति को घर से निकल जाने के लिए कहने का साहस तो दिखा सका |
देखना ये है कि भारत में अब जिन धंधों में चीन का निवेश है उन्हें Get Out कब कहा जाएगा क्योंकि हमारे ऐसे साहसिक निर्णयों से दूसरे देशों की हिम्मत भी बढ़ेगी |
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