Tuesday 16 June 2020

आपदा में अवसर की तलाश झोपड़ पट्टियों से शुरू से हो



मुम्बई से आई ये खबर उत्साहवर्धक है कि धारावी नामक एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी में कोरोना के फैलाव पर नियन्त्रण कर लिया गया है। बीते कुछ दिनों से वहां नए संक्रमणों में काफी कमी आई है। बड़े पैमाने पर जांच भी की गयी है। ये भी ध्यान रखना होगा कि प्रवासी श्रमिकों के पलायन के कारण धारावी बस्ती खाली होने से भी संक्रमण की दर में कमी आई है। उलटे यहाँ से गए अनेक श्रमिकों ने अपने गाँव और कस्बों में लौटकर कोरोना की आमद दर्ज करवाई। बहरहाल ये तो साबित हो ही गया कि संक्रमण फैलने में घनी बसाहट बेहद सहायक साबित हुई है। हालांकि इसके विरोध में पूछा जा सकता है कि अमेरिका और यूरोप के जिन देशों में आबादी का घनत्व भारत की अपेक्षा काफी कम है, वहां कोरोना ने कहर क्यों बरपाया? लेकिन भारत की परिस्थितियाँ वहां से काफी भिन्न हैं। विकसित देशों में कोरोना संक्रमण फैलने के कारणों से भारत की तुलना नहीं की जानी चाहिए। भारत में अभी तक तीन लाख से ज्यादा संक्रमित निकले हैं लेकिन आधे से अधिक ठीक होकर घर जा पहुंचे। मृत्यु दर भी अभी तक तो काफी कम है। राजनीति से अलग हटकर इस बारे में सोचें तो हमारे यहाँ अब तक का आपदा प्रबन्धन उम्मीद से बेहतर रहा है। यद्यपि विशेषज्ञ इस बात के लिये चेता रहे हैं कि आगामी कुछ महीनों तक संक्रमण में और तेजी आयेगी। देश की राजधानी दिल्ली के अलावा तामिलनाडु में हालात जिस तरह खराब होते जा रहे हैं उसे देखते हुए उक्त आशंका को गलत नहीं माना जा सकता। प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने के बाद से कोरोना का प्रसार उन राज्यों में भी तेज हुआ है जो पहले इससे अछूते थे या फिर उन्होंने प्रारम्भिक दौर में ही उस पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया था। छत्तीसगढ़ इसका सबसे बेहतर उदाहरण है। दूसरी तरफ  ये भी सही है कि अब तक कोरोना कुछ राज्यों और उनमें भी कुछ शहरों तक सिमटा हुआ है। लेकिन दबी जुबान ही सही किन्तु ये बात तथ्यों के आधार पर साबित हो रही है कि घनी बस्तियों में एक व्यक्ति से दूसरे में फैलने की सम्भावना ज्यादा रहती है। कम जगहों पर ज्यादा लोगों के रहने के अलावा अड़ोस-पड़ोस से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होना भी संक्रमण के विस्तार को मदद देता है । देश भर में संक्रमित लोगों के आंकड़े उजागर होने पर ये बात सामने आ जायेगी कि गरीबों के अलावा घनी रिहायश वाली मुस्लिम बस्तियों में कोरोना का आक्रमण बहुत तेजी से हुआ। ये देखते हुए मुम्बई की धारावी और उस जैसी जो भी झोपड़ पट्टियां देश भर में हैं, उनमें रहने वालों के पुनर्वास की व्यवस्था नए सिरे से की जानी चाहिए। ऐसा करने के लिए ये समय सबसे उपयुक्त है। इन बस्तियों से जो लोग बाहर गये हैं उन्हें दोबारा वहां बसने से पूरी तरह रोका जाए। जो ठेकेदार, कारखाना मालिक अथवा अन्य नियोक्ता प्रवासी मजदूरों को वापिस बुला रहे हैं उनके आवास की व्यवस्था करने का दायित्व फिलहाल उन्हीं को सौंपा जाना चाहिए। कोरोना पर देर-सवेर जीत हासिल हो ही जायेगी। लेकिन इस महामारी से सबक लेकर हमें अपने शहरों ही नहीं अपितु कस्बों तक में लोगों के आवास की व्यवस्था में गुणात्मक सुधार करने के बारे में युद्धस्तर पर कार्य करना चाहिए। भारत की विशाल श्रमशक्ति के रहन-सहन के स्तर को सुधारने से उनकी कार्यक्षमता और सोच दोनों में अंतर आएगा। कोरोना के पहले चरण में जिस अनुशासन का पालन किया गया वह लॉक डाउन की वजह से सम्भव हो सका। लेकिन जबसे लॉक डाउन हटाया गया तबसे लोग बेहद लापरवाह नजर आ रहे हैं। ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि घनी आबादी वाली जिन बस्तियों से लोग बाहर चले गए वे फिर से पूर्व स्थिति में न आयें। तमाम आशंकाओं और अनुमानों के विपरीत अभी तक भारत में कोरोना का सामुदायिक स्तर पर नहीं फैलना संयोग है या सौभाग्य, ये विश्लेषण का विषय हो सकता है लेकिन आगे भी ऐसा बना रहे इसके लिए इन बस्तियों की पुनर्रचना जरूरी है क्योंकि कोरोना से ज्यादा लोग तो प्रतिवर्ष डेंगू, चिकिनगुनिया, डायरिया, पीलिया, जैसी बीमारियों से काल के गाल में समा जाते हैं। जिनमें बड़ी संख्या इन बस्तियों के निवासियों की ही रहती है। आपदा में अवसर तलाशने की बात इन झुग्गियों से ही शुरू हो तो अच्छा क्योंकि पंक्ति के अंतिम छोर वाला आम भारतीय भी इन्हीं में तो रहता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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