Saturday 27 June 2020

भारत को घेरने के फेर में खुद घिर गया नेपाल



आखिर वही  हुआ जिसकी आशंका थी | चीन के उकसावे पर भारत से बेवजह टकराव मोल बैठा नेपाल अब अपने ही बनाये जाल में फंसता जा रहा है | नक्शा और विदेशी पत्नी की  नागरिकता जैसे कानून तो राष्ट्रवाद की आड़ में प्रधानमंत्री  केपी शर्मा ओली ने भारी बहुमत से पारित करवा लिए किन्तु उसके बाद सत्तारूढ़ गठबंधन में ही गांठ पड़ने लगी | पूर्व प्रधानमंत्री  और नेपाल में सशस्त्र माओवादी संघर्ष के अग्रणी नेता रहे पुष्प  कमल दहल प्रचंड ने श्री कोली पर  इस्तीफा देने का दबाव बना दिया है | सुना है पार्टी संगठन की  जिस बैठक में श्री  कोली के भविष्य का फैसला होना है उसमें भी वे अल्पमत में हैं | गत दिवस दोनों नेताओं के बीच मुलाकात में गतिरोध टालने का प्रयास हुआ किन्त्तु जैसी जानकारी आई  उसके अनुसार तो श्री  प्रचंड ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बिना किसी समझौते से इंकार करते हुए धमकी दे  डाली कि वे गठबंधन से  अलग होने में भी संकोच नहीं करेंगे | विवाद के दौरान ये बात भी उछली  कि श्री ओली अफगानिस्तान , पाकिस्तान और बांगला देश मॉडल से देश  को चलाना चाहते है | कुछ लोग इसे श्री  प्रचंड की महत्वाकांक्षा से जोडकर देख  रहे हैं तो कुछ का कहना है श्री कोली ने चीन की भटैती करते  हुए अनावश्यक रूप से भारत से पंगा लेकर  खुद को पाकिस्तान की तरह उसका पिट्ठू बना लिया |  यद्यपि ये बात सही है कि नेपाल में राजतंत्र के खात्मे और माओवादी सत्ता बनने के बाद से  चीन का दबदबा बढ़ता गया | श्री प्रचंड का पूरा सशस्त्र संघर्ष भी चीन से मिले शस्त्रों और संसाधनों से सफलता के मुकाम पर पहुंच सका | जिस तरह कश्मीर के पत्थरबाजों को पाकिस्तान से पैसा मिलता है ठीक वैसे ही नेपाल में चला माओवादी  संघर्ष चीन  के पैसे से ही संभव और सफल हो सका । और ये भी कि श्री प्रचंड प्रधानमंत्री की अपेक्षा चीन के ज्यादा निकट और विश्वासपात्र हैं | नेपाल की गद्दी पर बैठते ही जिन माओवादी शासकों ने भारत के साथ सम्बन्धों में ज़हर घोला उनमें श्री प्रचंड अग्रणी थे | लेकिन जिस अंदाज में श्री कोली भारत के विरोध में  उतरकर दो - दो हाथ करने पर आमादा हो गये उससे श्री प्रचंड जरूर  बचे | बहरहाल भारत - नेपाल संबन्धों में मौजूदा दौर सबसे ज्यादा टकराहट का है | अपनी गद्दी बचाने के लिए चीन  के चरण चुम्बन करने का जो अंदाज श्री कोली ने दिखाया उससे देश में चिंता का माहौल है | गत दिवस संसद में हिन्दी भाषा के उपयोग को रोकने संबंधी जो कोशिश हुई उसका मधेशी महिला सांसद ने जोरदार विरोध करते हुए कहा कि ये एक करोड़ मधेशियों को मुख्य धारा से अलग - थलग करने का षड्यंत्र है | इसी तरह  नेपाल की आबादी का एक बड़ा तबका ये मानता है कि चीन से कितनी भी नजदीकी हो जाये लेकिन बिना भारत के नेपाल साँस नहीं  ले पायेगा | प्रश्न केवल जरूरी चीजों की भारत के रास्ते होने वाली आपूर्ति का नहीं वरन लाखों नेपालियों का भारत में रोजगार के सिलसिले में रहना है | भारतीय सेना में तो बाकायदा गोरखा रेजिमेंट अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रही है | इसके अलावा भी सामाजिक , सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर  दोनों देशों के बीच पुश्तैनी रिश्ते सामाजिक स्तर  पर कायम हैं | जिन्हें चीन के दबाव में आकर कोई भी सरकार आसानी से खत्म नहीं कर सकती | यद्यपि चीन ने नौजवानों में वामपंथी विचारधारा का प्रचार - प्रसार काफी हद तक कर दिया लेकिन अभी भी देश में एक वर्ग उससे न केवल अप्रभावित है बल्कि  इस बात के प्रति भी आशंकित है कि चीन देर सवेर नेपाल को भी तिब्बत की तरह हड़प लेगा | मौजूदा विवाद जिस तरह से अचानक बढ़ा उससे वहां के माओवादी भी नाराज है | उन्हें लग रहा है कि चीन का वैचारिक समर्थन और आर्थिक सहयोग गलत नहीं है लेकिन नेपाल के वामपंथियों के बीच एक वर्ग  ये भी सोचता है कि पूरी तरह चीन के अधीन चला जाना नेपाल की सार्वभौमिकता के लिए खतरनाक होगा |  इस बारे में ये  तर्क दिया जाता है कि जिस वियतनाम को अमेरिका  से लड़ने में  चीन ने पूरी मदद दी वह  भी उससे दूरी बनाकर चल रहा है | इसका कारण दक्षिण चीन के समुद्र पर चीन द्वारा एकाधिकार ज़माना है | उल्लेखनीय है वियतनाम भी साम्यवादी विचारधारा पर चलने वाला  देश है | उस दृष्टि से चीन को लेकर आशंका व्यक्त करने वाले नेपाली गलत नहीं हैं | ऐसा लगता है चीन ने पहले चरण में श्री  कोली को सत्ता में बनाये  रखने का लालच  देते हुए भारत विरोधी तमाम ऐसे फैसले करवा लिए जिनके कारण ये दोनों पड़ोसी एक दूसरे के  दुश्मन  बन जाएं | और जब उसका काम हो गया  तब वह खुद होकर नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता फैलाकर वहां  दखलंदाजी करने की जमीन तैयार कर  रहा है | ये जानते हुए भी कि नेपाल भारत के सामने  कहीं नहीं ठहरता उसने श्री कोली को ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ा दिया जिससे लौटना कठिन है और अब उन्हीं के लिए मुसीबतें खडी कर  रहा है | इस अंतर्कलह से भारत को खुश  होने की बजाय सतर्क हो जाना चाहिये क्योकि पड़ोसी के घर में  लगी आग से अपना घर भी जलने का खतरा पैदा हो जाता है | बांग्ला देश का उदाहरण सामने है जिसकी जलन आज तक हमें परेशान कर रही है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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