लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार की रात हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20 सैनिकों की मौत से चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव में और गर्मी आ गई है | जैसी खबरें हैं उनके अनुसार घटना के बाद चीन ने तत्काल सैन्य अधिकारियों के बीच सुबह 7.30 बजे ही बात करने की पेशकश की | लेकिन दूसरी तरफ दबाव बनाने के लिए भारतीय सैनिकों पर उसकी सीमा में घुसने का आरोप लगाते हुए इकतरफा कार्र्वाई से बचने की चेतावनी भी दे डाली | भारतीय सेना के दावे को मानें तो चीन के भी 43 सैनिक मरे या घायल हुए हैं | यद्यपि चीन सरकार ने अपने सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि भले ही नहीं की किन्तु साफ - साफ़ खंडन भी नहीं किया | जिससे लगता है कि उसे भी भारी नुकसान हुआ है | मंगलवार की रात तक ये खबर भी आ गयी कि जिस जगह पर हिंसक झड़प हुई वहां से दोनों देशों की सेनाएं अपने - अपने इलाके तक लौट गईं हैं | उधर चीन के विदेश मंत्रालय ने चेतावनी देने के बावजूद बातचीत से मामला सुलझाने जैसी पेशकश भी कर दी | कल सुबह से ही दोनों देशों के विभिन्न स्तर के सैन्य अधिकारी बातचीत करते रहे किन्तु क्या नतीजा निकला उसके बारे में स्पष्ट जानकारी प्रतीक्षित है |
लेकिन उक्त घटना ने एक बार फिर चीन की धूर्तता उजागर कर दी | गलवान घाटी में चीन की घुसपैठ पर नजर रखने भारतीय सेना के गश्ती दल पर चीनी सेना की टुकड़ी ने धोखे से नुकीली कीलों वाले डंडों तथा कील लगे दस्ताने पहिनकर हमला कर दिया | चूँकि बीते डेढ़ माह से वास्तविक नियन्त्रण रेखा के बीच के निर्जन इलाके में चीन और भारत के सैनिकों के बीच अनेक मर्तबा हाथापाई और धक्का - मुक्की होती रही इसलिए गश्ती दल को शुरू में लगा कि फिर वही होगा लेकिन इस बार चीनी आये ही हिंसक इरादों से थे | कहते हैं रात के अंधेरे में कुछ सैनिक नदी में गिरकर भी मर गए | 14 हजार फीट से ऊपर शून्य से भी नीचे के तापमान में इस तरह का हमला अप्रत्याशित था | दोनों देशों के बीच 1975 के बाद से अभी तक गोली नहीं चली और न ही आमने - सामने की झड़प में किसी की जान गई | ऐसे में भारतीय सैनिकों को चीनी टुकड़ियों को संख्याबल में अपने से ज्यादा देखकर भी चिंता नहीं हुई | लेकिन जब उनके इरादे पता चले तब पीछे से और सैनिक भी बुलवाए गये | लेकिन इस दौरान हमारे लोगों को चीनी सैनिकों ने कीलों वाले डंडों सहित पत्थरों एवं अन्य नुकीली चीजों से मारना शुरू कर दिया | जैसी खबर है हमारे फौजियों ने भी जमकर लोहा लिया और उनके अनेक सैनिकों को भी मार गिराया | हालांकि चीन इसे मान नहीं रहा लेकिन घटना के कुछ घंटों बाद ही बातचीत की पेशकश और फिर शाम होते - होते तक सैनिक पीछे हटा लेने से ये संकेत मिला कि उसको भी भारतीय सैन्य क्षमता का एहसास हो गया |
लेकिन इतिहास गवाह है कि हमारा यह पड़ोसी धोखेबाजी का जीता - जागता प्रतीक है | भारत की सदाशयता का उसने सदैव गला घोंटा है | बीते कुछ समय से वह लद्दाख से सिक्किम तक की लम्बी सीमा पर अनेक स्थानों पर सैन्य जमावड़ा बनाकर दबाव डालने और भड़काने का प्रयास कर रहा है | भारत ने इसे कूटनीतिक बातचीत के अलावा स्थानीय सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता से सुलझाने की कोशिश की किन्तु बात नहीं बनी | इसी बीच लद्दाख में दो - तीन जगह चीन ने उन इलाकों में घुसपैठ की जो दोनों देशों की वास्तविक नियन्त्रण रेखा के बीच में निर्जन स्थान है और दोनों के गश्ती दल वहां की निगरानी करते रहते हैं |
लेकिन इस बार चीन इसी इलाके में डेरा जमाकर बैठ गया | भारत द्वारा सड़कों और पुलों का जाल फैलाये जाने से भन्नाया चीन उसी कारण गलवान घाटी में भारतीय अधिकार क्षेत्र में कब्जा जमाने आगे बढ़ा किन्तु भारत ने भी बराबरी से जवाब देते हुए अपने सैनिक और अस्त्र - शस्त्र , तोपें आदि मोर्चे पर लगा दिए | वायुसेना के लड़ाकू विमानों को भी तैयार कर दिया गया | सभी का सोचना था कि चीन हमेशा की तरह दबाव तो बनाएगा लेकिन आखिर में मामला ठंडा हो जाएगा | सैन्य स्तर की बातचीत से सेनाओं के पीछे हटने पर सहमति के बाद दोनों ने अपनी सेनाएं पीछे खिसकाना शुरू कर दिया | लेकिन जब पता चला कि गलवान घाटी में चीनी सैनिकों की मौजूदगी बनी हुई है तब भारतीय सेना का गश्ती दल कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में उनसे बात करने गया तब उन पर अपरम्परागत तरीके से जानलेवा हमला कर दिया गया | अभी तक दोनों पक्षों से ज्यादा जानकारी नहीं मिली और सरकारी तथा सैन्य बयान भी बड़े ही संयत आये हैं | लेकिन जिस तरह का गुस्सा देश की जनता में है उससे कहीं ज्यादा सेना में होगा |
सरकार हालात की गम्भीरता को समझ रही है | देश महामारी से जूझ रहा है | अर्थव्यवस्था घुटनों के बल चल रही है | ऐसे में अचानक आ टपके युद्ध का सामना करना कठिन तो है | और वह भी तब, जब दुश्मन के दोस्त मुल्क भी हमें घेरकर मौके की तलाश में हों किन्तु गलवान में जो कुछ हुआ वह भले ही सैन्य लिहाज से युद्ध न हो लेकिन 20 फौजियों की जान जिस तरह गईं वह युद्ध न सही लेकिन उसका पूर्वाभ्यास तो कहा ही जा सकता है | दरअसल ताजा वैश्विक परिस्थितियों में चीन के लिए केवल भारत ही बच रहता है जिससे वह सीधे टकरा सके |
इसलिए ये मानकर चलना मूर्खता होगी कि चीन ने अपनी सेना को उस निर्जन और बंजर इलाके में गर्मियों की छुट्टियाँ मनाने भेजा होगा | इस समय घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर उसकी स्थिति खराब है | कोरोना के नये मरीज आये दिन निकलने से इस महामारी पर विजय पाने का उसका दावा फुस्स साबित हो गया | व्यापार के क्षेत्र में भी उसको जबरदस्त घाटा हो रहा है | अमेरिका सहित पश्चिमी जगत उससे चिढ़ा बैठा है | ऐसे में जब भारत ने भी उसके विरुद्ध मोर्चेबंदी की तो उसने जगह - जगह सीमा पर सैन्य दबाव बना दिया जिसकी दुखद परिणिति गलवान में हुई |
सवाल ये है कि आगे क्या होगा ? हमने उसके दोगुने फ़ौजी मारे ये तब संतोषजनक लगता जब युद्ध के बाद क्या खोया - पाया का हिसाब किया जावे | हमारी फौज के हौसले , हिम्मत और बलिदानी परम्परा के सामने चीन की सेना कहीं नहीं ठहरती | जो हुआ वह चीनी फौज की कायरता प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है | रही बात भारत के पलटवार की तो ऐसा लगता है सेना और सरकार हताशा में कोई कदम उठाने की बजाय स्थिति का गहराई से आकलन करने के बाद ही आगे बढ़ने की नीति पर चल रही हैं | वैसे भी युद्ध को अन्त्तिम विकल्प माना जाता है | और यहाँ अजीबोगरीब बात ये है कि चीन हमलावर बना रहने के बाद भी युद्ध से बच रहा है | उसे पता है कि भारत अपनी तरफ से आक्रमण नहीं करेगा | ऐसे में वह गलवान सरीखी छोटी - छोटी भिड़ंत और उसके बाद शांति की पहल जैसी रणनीति पर चलता दिख रहा है |
लेकिन भारत के लिए ये सही मौका है अपनी ताकत और दृढ इच्छा शक्ति दिखाने का | चीन से सटी हजारों किमी लम्बी सीमा पर सड़क , पुल , हवाई पट्टी का निर्माण कार्य न रोकने की बात कहकर भारत ने सही जवाब दिया | वैश्विक मंचों पर चीन की घेराबंदी भी अच्छी रणनीति कही जायेगी | सीमा पर चीन द्वारा फौजी जमावड़े के जवाब में उतनी ही सेना की तैनाती को भी साहसिक कदम माना गया | जबरदस्त तनाव और तल्खी भरी बयानबाजी के बीच भी मोर्चे पर तैनात सैन्य अधिकारियों से लेकर लेफ्टीनेंट जनरल रैंक के अधिकारी तक के बीच वार्ता करना भी शांति की दिशा में समझदारी भरा कदम था |
लेकिन अभी तक जो भी हुआ उसे हालात के मद्देनजर सही मान लें तो भी गलवान की घटना के बाद समूचा परिदृश्य बदल गया है | चीन ने अपनी आदतानुसार पीठ में छुरा भौंका है | लेकिन क्या हम भी अपनी आदतानुसार धोखा खाकर केवल इस बात पर उछलते फिरेंगे कि अपने 20 के बदले हमने उनके दोगुने सैनिक मारे या घायल किये |
बीती शाम सोशल मीडिया पर उठाये अपने इस सवाल को मैं यहाँ भी दोहराना चाहूँगा कि प्रश्न ये नहीं कि उनके कितने मरे , प्रश्न ये है कि हमारे क्यों मरे ?
महाभारत युद्ध को टालने के लिए श्री कृष्ण ने पांडवों को समझाया था कि शान्ति चाहे कितनी भी महंगी मिले उसे हासिल कर लेना चाहिए क्योंकि अंत में वह सस्ती ही पड़ती है | लेकिन बाद में उन्हीं श्री कृष्ण ने अर्जुन के असमंजस को दूर करते हुए आदेशित किया उत्तिष्ठ युद्धस्व भारत ( उठो अर्जुन युद्ध करो ) |
चीन के मामले में भी महंगी कीमत पर शान्ति खरीदने के प्रयास विफल होते दिखाई दे रहे हैं | ऐसे में यदि युद्ध ही विकल्प है तो डरना कैसा ?
सेना और अस्त्र - शस्त्र मात्र गणतंत्र दिवस की परेड में दिखाने के लिए नहीं हैं |
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