Tuesday 2 June 2020

वाटर हार्वेस्टिंग को भी जनांदोलन बनाना होगा



कोरोना की बढ़ती चिंताओं के बीच केरल में मानसून का ठीक समय पर आ जाना राहत देना वाला है। मौसम विभाग का अनुमान है कि इस साल मानसून से 102 प्रतिशत वर्षा होगी। इसका आशय ये है कि औसत बरसात से ही संतोष नहीं करना पड़ेगा। अपितु नदियाँ लबालब होंगीं, जलाशय भर जायेंगे, कुओं में खूब पानी होगा और इसके कारण भूजल स्तर में भी सुधार होगा जिससे वर्षा उपरांत सिचाई और पीने के लिए भरपूर पानी उपलब्ध रहेगा। भारत में चूंकि अभी भी खेती का बड़ा हिस्सा मानसूनी बरसात पर निर्भर है इसलिए ज्योंही अच्छी बरसात की भविष्यवाणी होती है त्योंहीं उससे बाजार में भी उम्मीद की किरण नजर आने लगती है। इसकी वजह भारत की अर्थव्यवस्था का कृषि पर आधारित होना है। यद्यपि पहले जैसी हिस्सेदारी न रही हो लेकिन खेती न सिर्फ अर्थव्यवस्था अपितु सामाजिक गतिविधियों पर भी असर डालती है। अच्छी फसल मतलब अच्छा शादी सीजन और अच्छा शादी सीजन यानि बाजार में रौनक। सर्वविदित है कि कोरोना के कारण ग्रीष्मकालीन विवाह या तो रद्द हो गये या फिर बेहद सादगी से हुए जिससे कपड़ा, किराना, आभूषण, होटल, कैटरिंग से लेकर तो बैंड, घोड़ी और आतिशबाजी वालों तक का व्यवसाय ठप्प पड़ गया। अर्थव्यवस्था को लगे झटके का एक कारण ये भी है। अब चूँकि मानसून को लेकर अच्छी खबर आई है इसलिए किसान के साथ ही उद्योग-व्यापार जगत भी आने वाले भविष्य में सुखद एहसास की कल्पना करने लगा है। लेकिन अच्छे मानसून की खुशी तब जाकर कमतर हो जाती है जब ये खुलासा होता है कि कुदरत से मिलने वाली इस अमूल्य दौलत को हम सहेजकर नहीं रख पाते और जो भी अतरिक्त वर्षा होती है वह बाढ़ के रूप में तबाही मचाते हुए अंतत: सागर में जाकर समा जाती है। जहां तक बांधों का सवाल है तो उनमें जल एकत्र करने की एक सीमा है। तालाबों और कुओं की भी अपनी क्षमता होती है किन्तु वाटर हार्वेस्टिंग नामक वर्षा जल को संग्रहित करने की जो प्रणाली भवनों की छतों पर लगई जाती है उससे होने वाला जल संग्रहण सीधे भूजल स्तर को ऊपर उठाता है। आजकल घरों में पहले जैसे आंगन नहीं होते और होते भी हैं तो कच्चे  नहीं होने से वर्षा जल उसके जरिये घर के कुए या बोरिंग में न जाकर नालियों में बह जाता है। विकास के नये पैमाने के तहत अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सीमेंटेड सड़कें बनने से वर्षा जल जमीन में समाने के बजाय व्यर्थ चला जाता है। सौर उर्जा की तरह ही वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नये निर्माणों में अनिवार्य कर दी गई है। स्थानीय निकाय इस हेतु नक्शा स्वीकृत करते समय कुछ राशि बतौर सुरक्षा निधि जमा भी करवाते हैं जिसका उद्देश्य ये है कि निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद किये जाने वाले निरीक्षण के दौरान यदि ये पाया जाए कि वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली नहीं लगाई गई तब उस सुरक्षा निधि से वह काम करवा दिया जावे। लेकिन ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है। स्थानीय निकाय सुरक्षा निधि को बैंक में जमा रखते हुए ब्याज खाते हैं किन्तु इतने महत्वपूर्ण उद्देश्य की अनदेखी कर दी जाती है। मन की बात के पिछले प्रसारण में प्रधानमंत्री ने इस बारे में बात भी की लेकिन प्रचार माध्यमों ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया। हर साल मानसून के पहले इसकी जरूरत पर विमर्श होता है लेकिन जमीन पर पर्याप्त प्रयास नहीं होते। ऐसे में जरूरी है स्वच्छता मिशन की तरह से ही वर्षा जल संग्रहण को भी जनांदोलन बनाया जाए। देश में अन्न के भण्डार तो इतने होते हैं जिनसे एक वर्ष देश की खाद्यान्न जरूरतें पूरी की जा सकती हैं परन्तु जल के मामले में ये स्थिति नहीं बन पा रही। जल के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संगठनों को भी इस दिशा में आगे आना चाहिए। हालाँकि लोग अब इसकी जरूरत को समझने लगे हैं लेकिन अभी भी गम्भीरता का अभाव है। भारत में जल की बर्बादी को रोकने का जो संस्कार था वह आधुनिक जीवनशैली के चलते विलुप्त होता जा रहा है। उसे पुनर्जीवित करते हुए जल संग्रहण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। प्रकृत्ति से मिलने वाले अनमोल तोहफे को नालियों में बहने देना किसी अपराध से कम नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment